
प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ मेडिकल कॉलेज को लेकर उम्मीदें लगातार धाराशयी होती जा रही है। इमरजेंसी वार्ड से ही अराजकता की शुरुआत हो जाती है। यहां डॉक्टर के अलावा बड़ी संख्या में अराजक तत्व दिखाई पड़ते हैं। जो मरीजों पर दबाव बनाकर वसूली करने के लिए डॉक्टरों ने अपनी मदद के लिए रखा है।
कल स्थानीय सांसद के भाई दिनेश गुप्ता के साथ डॉक्टर और उनके साथ रहने वाले अराजक तत्वों ने जमकर दुर्व्यवहार किया। सांसद के भाई दिनेश गुप्ता को विवश होकर पुलिस को सूचित करना पड़ा तब जाकर अराजक तत्वों से उनकी जान बची।
कागज पर तैनात है 75 से ज्यादा प्रोफेसर:
मेडिकल कॉलेज में अराजकता का बोलबाला इस कदर है कि यहां पर 75 से अधिक प्रोफेसर तैनात है लेकिन ओपीडी में तीन या चार प्रोफ़ेसर ही नजर आते हैं। कहा जा रहा है कि प्रिंसिपल के साथ प्रोफ़ेसर की सेटिंग है। ज्यादातर प्रोफेसर अपनी निजी नर्सिंग होम चला रहे हैं और हॉस्पिटल में केवल सैलरी लेने के लिए ही आते हैं।
इमरजेंसी में दलालों का कब्जा:
मेडिकल कॉलेज में इमरजेंसी से ही मरीजों का शोषण शुरू हो जाता है। यहां दलाल मरीजों को अपनी सेटिंग वाले नर्सिंग होम में रिफर कराने के लिए परेशान रहते हैं। बताने की जरूरत नहीं कि मरीज उन्हीं नर्सिंग होम में रेफर किए जाते हैं जहां डॉक्टरों की सेटिंग होती है या प्रैक्टिस करते हैं। सर्जरी के 2 डॉक्टर इसके लिए बदनाम है।
फर्जी मेडिकल रिपोर्ट आसानी से बन जाती है
मेडिकल कॉलेज में दलाली इस प्रकार हावी है कि कोई भी व्यक्ति झूठी और फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनवा कर किसी को भी फंसा सकता है बशर्ते उसे इसके लिए मोटी कीमत चुकानी पड़ती है।
ज्यादातर जांच बाहर से करवाई जाती है
मेडिकल कॉलेज में तमाम सुविधाओं का अभाव है। हालात इतने खराब है कि अल्ट्रासाउंड जैसी सुविधा भी देने में आनाकानी की जाती है। अल्ट्रासाउंड बाहर से करवाया जाता है।
कमीशन की दवाएं लिखी जाती है
यहां ओपीडी में तैनात ज्यादातर डॉक्टर बाहर की दवाएं लिखते हैं जिन पर उन्हें मोटा कमीशन मिलता है। वैसे भी मेडिकल कॉलेज में एडमिट करने के बजाए रेफर करने को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
भ्रष्टाचार और अराजकता के आगे प्रिंसिपल लाचार
प्रतापगढ़ मेडिकल कॉलेज की बुनियाद भ्रष्टाचार से ही शुरू हुई है। भ्रष्टाचार और अराजकता फैलाने वाले लोगों के जाल में प्रिंसिपल बुरी तरह फंस गए हैं। प्रिंसिपल स्तर का काम कराने वाले दलालों का दावा है कि वह प्रिंसिपल के स्तर का कोई भी काम डंके की चोट पर करा लेंगे और अक्सर दलालों का दावा सही साबित होता है।
दवाओं और उपकरणों की खरीद में भी घपला
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डीडी आर्य अक्सर दलालों से घिरे रहते हैं। अस्पताल का निरीक्षण करने के बजाए वह दिन भर दलालों के साथ मीटिंग में ही व्यस्त रहते हैं। कई ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को भी उन्होंने वर्क ऑर्डर दे दिया। दवाओं और अस्पताल के उपकरणों की खरीद में भी मानक का ध्यान नहीं रखा गया है।
मेडिकल कॉलेज में एडमिट मरीजों को दिया जाता है घटिया खाना
मेडिकल कॉलेज में एडमिट लोगों को दिया जाने वाला भोजन पूरी तरह गुणवत्ता विहीन होता है। कागज पर ही उन्हें दूध अंडे और ब्रेड उपलब्ध कराया जाता है जबकि वास्तविकता में मरीजों के हाथ कुछ नहीं लगता।
जिला अस्पताल की व्यवस्था मेडिकल कॉलेज से बेहतर रही
मरीजों की माने तो उनका कहना है कि भले ही बड़ी बिल्डिंग नहीं बनी थी लेकिन जिला अस्पताल में ज्यादा बेहतर सुविधाएं उपलब्ध थी। मरीजों का कहना है कि जितना अराजकता मेडिकल कॉलेज में है इतनी अराजकता जिला अस्पताल में नहीं होती थी। सभी डॉक्टर अपने साथ गुंडे रखते हैं जो मरीजों को डराने और धमकाने का काम करते हैं।
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