नई दिल्ली। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था अपनी अधोगति को प्राप्त होगी वैसे-वैसे बैंकिंग सेक्टर चरमराता चला जाएगा…यह होना तो बहुत पहले से ही आरंभ हो गया था लेकिन सरकार 2014 से ऐसे नगाड़े बजाती आ रही है कि लोग बेसुध हैं..!!! यह पहला ऐसा मुल्क है जिसके बाशिंदे अपनी ही आसन्न विभीषिकाओं का स्वागत तालियां बजाकर और थोथेबाजी करके कर रहे हैं। बैंकों में नकदी की कमी की वजह से, ब्याज़ दरें बढ़ा दी गई हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि एक आम आदमी को लोन लेने में जबरदस्त दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। चूंकि बैंकों के पास नकदी की जबरदस्त शार्टेज हो गई है इसलिए इसका सबसे बुरा असर , बाज़ार पर पड़ रहा है।
मैं अपने पूर्व के लेखों में भी लगातार कहता आया हूं कि आम आदमी की आमदनी तेजी से घटी है…इसका असर उसकी पर्चेजिंग पावर पर ही नहीं पड़ा है बल्कि उसकी बचत खत्म हुई है।
एसोचैम के एक अध्ययन में यह बात निकल कर सामने आई है कि महानगरों में रहने वालों की बचत में 40 % की गिरावट आई है। इसकी वजह से एक आम भारतीय की शुद्ध वित्तीय बचत घटी है और उसकी खरीद क्षमता बहुत ही तेजी से घटी है। महंगाई, वाहन के लिए फ्यूल, महंगी हो चुकी शिक्षा व हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम ने आम आदमी को तोड़ कर रख दिया है। उस पर सरकार द्वारा रोज-ब-रोज नया टैक्स और जीएसटी ने जीना हराम कर रखा है।
एसोचैम के महासचिव डी एस रावत के अनुसार मिडिल क्लास तो बुरी तरह से तबाह हुआ है। उनकी खरीदी क्षमता काफी तेजी से घटी है और उनकी बचत घट रही है। इसका असर ये हुआ है कि भारत की शुद्ध वित्तीय बचत घटी है। परिणामस्वरूप बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास जमा, नकदी, शेयरों, डिबेंचरों तथा छोटे बचत उत्पादों में कमी आई है। एसोचैम के सर्वेक्षण में शामिल 82 % लोगों ने कहा कि पिछले साल उनकी वेतनवृद्धि जीवनस्तर की लागत में बढ़ोतरी की तुलना में कम रही। लाइफस्टाइल की लागत 40 से 45 % बढ़ी और जीवन स्तर की लागत इस दौरान 40 से 45 % तक बढ़ी। सर्वेक्षण के अनुसार ज्यादातर भारतीय अपना खर्च कम कर रहे हैं और सस्ती दुकानों से खरीदारी कर रहे हैं। वे
बैंकों में नकदी की कमी की अन्य भी अनेक वजहें हैं जैसे- टैक्स भुगतान, विदेशी मुद्रा बाज़ार में आरबीआई का हस्तक्षेप, एडवांस टैक्स जमा करना, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगातार डॉलर बेचना….इन सबका असर बैंकों पर पड़ा है और इसका असर यह हुआ है कि ब्याज़ दरें बढ़ीं हैं लोन लेने में दिक्कत आ रही है और बाज़ार में निवेश कम हो रहा है… अर्थव्यवस्था की हालत छिपी नहीं है..!!! लोग बैंकों/पोस्ट आफिसों के खातों में पैसा जमा नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें बंद करा रहा हैं…प्रभात खबर के अनुसार -बिहार के लगभग 10 हजार डाकघरों में पिछले तीन साल में विभिन्न योजनाओं के 1.91 करोड़ खाते बंद हुए हैं। बिहार सर्किल डाक विभाग के 25 डिवीजन में वर्ष 2019-20 के दौरान बचत खाता, रेकरिंग डिपॉजिट, टाइम डिपॉजिट स्कीम, सुकन्या समृद्धि स्कीम, पब्लिक प्रोविडेंट फंड, सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम के तहत 3,16,30,292 खाते थे लेकिन इनमें से 1.91 करोड़ बंद हो गये।
वर्ष 2021-2022 में यह आंकड़ा और भी भयावह हुआ है जब खाते घटकर केवल 1,50,54,098 और वर्ष 2022- 23 में 1,25,26,686 रह गये। लोग नये खाते नहीं खुलवा ही नहीं रहे हैं।
कमोबेश यही हालत उत्तर प्रदेश की भी है.. लेकिन आंकड़े उपलब्ध न हो पाने के कारण मैं इसका जिक्र नहीं कर सकता…!! स्थितियां रोज-ब-रोज खराब होती जा रही हैं वह आर्थिक स्तर पर ही नहीं सामरिक लिहाज से भी… सामरिक विषय पर फिर लिखूंगा.. फिलहाल नदी नहायें और पुण्य कमायें…
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