लखनऊ। पूरे देश में आबकारी नीति घोषित हो गई है लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी तक शराब पॉलिसी लटकी हुई है जिसके चलते हजारों लाइसेंसी और उनसे जुड़े परिवार की आजीविका संकट में है। आबकारी नीति में विलंब का सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि अभी तक आबकारी नीति बनाने के लिए विभाग के पास कोई भी योग्य अधिकारी नहीं है। आबकारी नीति बनाने का जिम्मा जिन हरिश्चंद्र श्रीवास्तव को दी गई है वह विभाग के सबसे भ्रष्ट एडिशनल कमिश्नर लाइसेंस के पद से अवकाश प्राप्त करने के बाद ठेके पर काम कर रहे हैं। हरिश्चंद्र श्रीवास्तव के बारे में कहा जाता है कि उनकी शराब कारोबारी ललित खेतान और वेव ग्रुप से संबंध रहे हैं। अभी तक वेब ग्रुप ने अपना एक आदमी जोगिंदर सिंह को अवैध रूप से स्टैटिक डिपार्मेंट में पोस्टिंग कर रखी थी उसके रिटायर होने के बाद आबकारी नीति निर्धारित करने में शराब माफिया को दिक्कत आने लगी है। भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि आबकारी आयुक्त शराब माफिया के हित में पॉलिसी बनाना चाहते हैं। आबकारी आयुक्त थोक दुकानों में शराब माफिया का दबदबा चाहते हैं लेकिन फुटकर दुकानदारों के प्रति आयुक्त का रवैया बहुत ही क्रूर और गैर जिम्मेदार है।
बताया जा रहा है कि आबकारी नीति 1 फरवरी को घोषित होने वाली थी लेकिन इस बीच कुछ बड़े शराब कारोबारी के दबाव में आबकारी नीति को लटका दिया गया।
तय नही हो पा रही शीरा नीति:
आबकारी नीति लटकाने के पीछे सबसे बड़ी वजह शीरे की नीति का निर्धारण नहीं हो पाना है। उत्तर प्रदेश में आईजीएल रेडिको और वेब ग्रुप की डिस्टलरी देसी शराब का उत्पादन बड़े पैमाने पर यूपीएमएल से तैयार करने लगी है ऐसी स्थिति में उन्हें आवंटित शीरे में कटौती नहीं करने से विभाग गंभीर सवालों के घेरे में खड़ा है। बताया जा रहा है कि देसी शराब का उत्पादन के कुल हिस्से में लगभग 40% यूपीएमएल से तैयार होने लगा है तो ऐसे में आबकारी विभाग ने इन कंपनियों को आवंटित शीरे में कोई कटौती नहीं की जबकि कंपनियों ने सब्सिडी वाले शीरे से महंगी शराब तैयार की और उसे अवैध रूप से बेचकर मोटा मुनाफा कमाया कमाई का बड़ा हिस्सा बड़े अधिकारियों तक पहुंचा इसकी वजह से ही शीरे आवंटन की ऑडिट सीएजी द्वारा आज तक नहीं हुई। मामला यहां फंसा हुआ है कि एक तरफ यूपीएमएल से बनने वाली शराब को बढ़ावा देना है वहीं दूसरी ओर इन कंपनियों को शीरे के आवंटन में कोई कटौती भी नहीं करनी है। लाखों कुंतलशीरे का मामला है इससे होने वाली सैकड़ो करोड़ की अवैध कमाई का बड़ा हिस्सा आबकारी आयुक्त और शासन के अधिकारियों को मिलता रहा है। सूत्रों का मानना है कि नहीं आबकारी नीति अटकने का सबसे बड़ा कारण यही है। बड़ी कंपनियों को शिरा कितना दिया जाएगा और कितनी कटौती की जाएगी इसको लेकर शराब कंपनियों का आबकारी विभाग पर बड़ा दबाव है। शराब कंपनियों नहीं चाहती कि उनके शीरे के आवंटन में कोई कमी हो। आबकारी विभाग के अधिकारी विभाग के राजस्व को लेकर उतना चिंतित नहीं है जितना शराब कंपनियों के राजस्व और मुनाफे को लेकर चिंतित है।
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