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लखनऊ। नई आबकारी पॉलिसी के तमाम प्रावधान अब सवालों के घेरे में है। मिली जानकारी के मुताबिक रिटेल प्रीमियम की दुकानों को लॉटरी से मुक्त रखा गया है । बताया जा रहा है कि शासन में बैठे एक शक्तिशाली अधिकारी के दबाव में ऐसा किया गया है जबकि आबकारी नीति के अनुसार सभी तरह की फुटकर दुकानों को लॉटरी के माध्यम से व्यवस्थापित किया जाना था। यह भी अपने आप में हैरान करने वाली बात है की पॉलिसी बनने से पहले ही इसके प्रावधान बड़े शराब माफिया को लीक कर दिए गए थे। इससे ज्यादा हैरानी की बात क्या है कि आबकारी नीति पर 6फरवरी को हस्ताक्षर किया जाता है जबकि लॉटरी समय सारणी 5 फरवरी को ही जारी हो जाती है।
लॉटरी की समय सारणी का पीडीएफ 5 फरवरी से ही व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल होने लगा इसके बाद आबकारी पॉलिसी की गोपनीयता का मजाक बन गया
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आबकारी में नहीं है कोई सांख्यिकी अधिकारी किसने जारी किए आंकड़े:
आबकारी आयुक्त ने एक बड़ा खेल कर दिया है। मन माफिक आबकारी नीति बनाने के लिए उन्होंने संख्या निदेशालय से विभाग में अधिकारी नियुक्त करने का अधियाचन तक नहीं भेजा जबकि विभाग में तैनात अधिकारी नवंबर में ही रिटायर हो चुका था। ऐस पहली बार हुआ है कि आबकारी विभाग में बिना सांख्यिकी अधिकारी के आंकड़े के आबकारी नीति तय कर दी गई।
मंत्री के साथ कमिश्नर और सचिव ने किया खेल:
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लोकायुक्त की जांच में भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए कमिश्नर आदर्श सिंह और प्रमुख सचिव ने मंत्री के साथ भी खेल कर दिया। एक तरफ पॉलिसी की गोपनीयता को लेकर मंत्री को अंधेरे में रखा गया वहीं दूसरी ओर बड़े शराब कारोबारी को आबकारी नीति के सभी बिंदुओं से पहले ही अवगत करा दिया गया यहां तक कि आबकारी नींति से संबंधित कैबिनेट नोट्स की कॉपी कुछ बड़े शराब माफिया को 15 जनवरी से पहले ही मिल गए थे। जबकि शासन की मंजूरी के लिए कैबिनेट नोटस 25 जनवरी के बाद भेजे गए। अब तो एक सवाल यही उठ रहा है कि क्या आबकारी मंत्री की गैर जानकारी में ही यह पॉलिसी तैयार हुई। आबकारी पॉलिसी लीक कैसे हो गई। क्या आबकारी विभाग के बड़े अधिकारी शराब कारोबारी के प्रति जरूरत से ज्यादा वफादार हो गए हैं इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं।
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