टपरी शराब कांड में ज्वाइंट ईआईबी जैनेंद्र उपाध्याय और लखनऊ के जॉइंट दिलीप मणि त्रिपाठी समेत आधा दर्जन अधिकारियों को दी गई चार्ज शीट:
आरोपी अधिकारियों को निलंबित न करने पर कमिश्नर की भूमिका सवालों के घेरे में:
प्रयागराज। सहारनपुर के टपरी शराब कांड में आखिरकार शासन की जांच में जॉइंट ईआइबी जैनेंद्र उपाध्याय जॉइंट एक्साइज कमिश्नर लखनऊ दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी समेत आधा दर्जन से ज्यादा अधिकारी प्रशासन की गाज गिरी है। आबकारी विभाग में शासन को पता था कि कमिश्नर आदर्श सिंह गुनहगार जैनेंद्र उपाध्याय और दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी समेत सभी आरोपीय अधिकारियों के संरक्षक हैं इसीलिए इस मामले की जांच उस डिवीजन के मंडला आयुक्त से कराई गई जहां के मंडल के जनपदों में टपरी की शराब अवैध रूप से बेची गई। इस मामले में बदायूं जनपद में सर्वाधिक 10 ट्रक से अधिक शराब अवैध रूप से डिस्टलरी से निकाल कर बेची गई और उस समय वहां के जिला आबकारी अधिकारी सुशील मिश्रा को भी चार्ज सीट दी गई है। इस प्रकरण में पूर्व एडिशनल कमिश्नर लाइसेंस हरिश्चंद्र श्रीवास्तव की भूमिका की भी शासन जांच करेगा कि आखिर फर्जी बारकोड कैसे जारी हुए। प्रकरण में पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी की भूमिका भी सवालों के घेरे में है बताया जा रहा है कि उनके ही संरक्षण में टपरी से अवैध शराब का उत्पादन और बिक्री हो रही थी जिसके चलते कम से कम 200 करोड रुपए का राजस्व क्षति आबकारी विभाग को हुआ था। संजय भूस रेड्डी पर यह आरोप है कि उन्होंने टापरी में किसी भी इंस्पेक्टर या सहायक आबकारी आयुक्त की तैनाती ही नहीं होने दी जिसकी वजह से 1 वर्ष से अधिक समय तक लगातार अवैध शराब की निकासी होती रही।
सबसे मजे की बात यह है कि तत्कालीन आबकारी आयुक्त पूरे प्रदेश की सभी डिस्टलरी का दौरा करके अपनी निरीक्षण रिपोर्ट शासन को भेजते रहे लेकिन सहारनपुर स्थित टपरी की डिक्शनरी का निरीक्षण या मुआयना कभी किया ही नहीं। इस मामले में पूर्व कमिश्नर सेंथिल पांडियन सी और पी गुरु प्रसाद की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। वर्तमान कमिश्नर डॉक्टर आदर्श सिंह लंबे समय से आरोपी अधिकारियों को बचाने की कोशिश कर रहे थे और कहा जा रहा है कि सौदेबाजी की गई थी और इसकी बड़ी कीमत भी आरोपी अधिकारियों ने चुकाई है बावजूद इसके शासन की गार्ड आरोपीय अधिकारियों पर गिरी। इस प्रकरण में यह भी काम हैरानी वाली बात नहीं है कि 200 करोड़ की शराब अगर अवैध रूप से बिकी और आरोप साबित हुआ तो फिर इसका मतलब लाखों कुंतल अधिक शीरे का अवैध रूप से उत्पादन और आवंटन हुआ तो इस पर तत्कालीन आबकारी आयुक्त जो की शीरा नियंत्रक भी होते है उन्होंने अपने स्तर से कोई कार्रवाई क्यों नहीं की और यदि नहीं की तो उन्हें टपरी कांड में आरोपी क्यों नहीं बनाया गया।
इस मामले में सबसे ज्यादा संदिग्ध भूमिका फर्जी जॉइंट डायरेक्टर सांख्यिकी जोगिंदर सिंह की मानी जा रही है क्योंकि उनके स्तर पर इस मामले में गंभीर लापरवाही बरती गई यदि सांख्यिकी विभाग ने सतर्कता बरती होती तो इस बड़े घोटाले से बचा जा सकता था।
घोटाले में हरिश्चंद्र की बड़ी भूमिका:
टपरी शराब कांड में तत्कालीन जॉइंट एक्साइज कमिश्नर टास्क फोर्स और वर्तमान में आदर्श सिंह कमिश्नर आबकारी आयुक्त से सेटिंग करके फिर से पोर्टल की जिम्मेदारी संभाल रहे हरिश्चंद्र श्रीवास्तव को पूरे मामले का मास्टरमाइंड कहा जा सकता है लेकिन प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी पूर्व कमिश्नर सेंथिल पांडियन सी और वर्तमान में कमिश्नर आदर्श सिंह का करीबी होने का फायदा मिला किसी तरह की कोई चार्ज शीट तक नहीं दी गई और इसको दोबारा पोर्टल में हेरा फेरी करने के लिए वापस संविदा पर रखा गया। संविदा पर रखने की संस्कृति कमिश्नर ने दी और इसके पीछे भी सौदेबाजी का खेल समझ में आ रहा है। टपरी शराब कांड का घोटाला केवल इसलिए हो पाया क्योंकि इस घोटाले में मैटर कंपनी शामिल थी और मेंटल कंपनी को ही अवैध रूप से ट्रैक और ट्रैस सिस्टम की अवैध रूप से जिम्मेदारी दी। मैटर पोर्टल के जरिए ही टपरी शराब कांड के बारकोड जारी हुए लेकिन फिर भी पोर्टल की जिम्मेदारी संभालने वाले हरीशचंद्र श्रीवास्तव को इस मामले में आरोपी क्यों नहीं बनाया गया चर्चा तो यह तक है कि अपने कार्यकाल में हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने अपने फर्जी पोर्टल मैटर के जरिए लगभग 1200 करोड रुपए के अवैध बारकोड जारी किए थे और इससे होने वाली कमाई में तत्कालीन प्रमुख सचिव और कमिश्नर भी साझेदार थे। वर्तमान कमिश्नर भी हरिश्चंद्र श्रीवास्तव के ऊपर काफी फिदा है।
वर्तमान कमिश्नर की भूमिका इसलिए भी सवालों के घेरे में है क्योंकि जिस गबन के मामले में कमिश्नर को आरोपी अधिकारियों की सेवा समाप्त करने की संस्तुति शासन को भेजनी थी उसे गंभीर आरोप में इन्होंने निलंबन तक नहीं किया जिससे साफ साबित होता है कि इन्होंने अपने स्तर से आरोपीय अधिकारियों को बचाने की भरपूर कोशिश की है। आदर्श सिंह की भूमिका इसलिए भी संदेह के दायरे में है क्योंकि चार्ज शीट देने के बाद भी आरोपी अधिकारियों को अभी तक हटाया नहीं गया है।
बता दें कि अवध भूमि न्यूज़ में बार-बार इस प्रकरण को लगातार उठाया है जिसका संज्ञान शासन स्तर पर लिया गया अवध भूमि न्यूज़ नहीं लिखा था कि कमिश्नर टपरी कांड के गुनहगारों के संरक्षक हैं इसके बाद शासन स्तर पर इस प्रकरण की जांच संबंधित क्षेत्र के मंडल युक्त से भी कराई गई सभी मंडल आयुक्त ने आरोपियों को अपनी जांच में दोषी पाया मंडला आयुक्त की रिपोर्ट शासन को मिलने के बाद निलंबन की कार्रवाई न करके केवल चार्ज शीट दिए जाने से ऐसा प्रतीत होता है कि लोकायुक्त की रिपोर्ट में पहले ही भ्रष्ट अधिकारी घोषित किया जा चुके आबकारी आयुक्त अपने पहचान के मुताबिक एक बार फिर खेल करना शुरू कर दिए हैं लेकिन बताया जा रहा है कि इस मामले में दोषी अधिकारियों का बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
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