तो क्या शराब माफिया तय करेंगे 2024 -25 की आबकारी पॉलिसी:
प्रयागराज। आबकारी नीति 2024 – 25 जो दिसंबर में ही घोषित हो जानी चाहिए थी आज तक घोषित नहीं हो पाई है। बताया जा रहा है कि आबकारी नीति इसलिए नहीं घोषित हो पा रही है क्योंकि आबकारी विभाग के पास राजस्व आंकड़ों की गणना करने के लिए कोई सांख्यिकी अधिकारी ही नहीं है। विभाग में फर्जी जॉइंट डायरेक्टर स्टैटिसटिक्स रहे जोगिंदर सिंह जिन्होंने फर्जीवाडा करते हुए करीब 10 से 12 हजार करोड रुपए का फर्जी राजस्व आंकड़े जारी जारी किया था अब उसकी पोल खोलने वाली है। आबकारी नीति इसलिए भी लटकी हुई है क्योंकि इसे जारी करने के लिए आबकारी विभाग के पास कोई भी विशेषज्ञ अधिकारी मौजूद नहीं है। कमिश्नर आदर्श सिंह ने फर्जी आंकड़े जारी करने के लिए अपने ही विभाग के एक विवादित डिप्टी एक्साइज कमिश्नर प्रदीप दुबे को फर्जी बैंक डायरेक्टर स्टैटिक के पद पर नियम विरुद्ध तैनाती दी है। विभाग के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि प्रदीप दुबे आबकारी नीति के लिए जरूरी आंकड़े को विशेषज्ञ के रूप में आबकारी नीति के लिए विशेषज्ञों के पैनल में शामिल नहीं हो सकते। जबकि एक शराब माफिया की सिफारिश पर पूर्व एडिशनल कमिश्नर लाइसेंस हरिश्चंद्र श्रीवास्तव और एक अन्य जॉइंट एक्साइज कमिश्नर को आबकारी पॉलिसी बनाने वाली टीम का हिस्सा बनाया गया है। हरिश्चंद्र श्रीवास्तव और दूसरे जॉइंट एक्साइज कमिश्नर फिलहाल आबकारी विभाग में ठेके पर काम कर रहे हैं।
बिना नियम रिन्युअल होती रही शराब नीति:
पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी के इशारे पर वर्तमान में पोर्टल की जिम्मेदारी संभाल रहे पूर्व एडिशनल कमिश्नर हरिश्चंद्र श्रीवास्तव बिना किसी नियम के वेव ग्रुप के जिसकी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में fl2 और cl2 पर मोनोपोली है और लगभग 80% गोदाम पर कब्जा है। उसकी मोनोपोली बनी रहे इसीलिए पूर्व कमिश्नर पी गुरु प्रसाद पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी पूर्व कमिश्नर सेंथिल पांडियन सी और वर्तमान कमिश्नर आदर्श सिंह केवल कंपनी यानी वेब ग्रुप के गोदाम और दुकानों को लॉटरी से बचने के लिए एक साजिश करके लगातार 2020 से आबकारी नीति में लॉटरी का प्रावधान होने के बावजूद सभी दुकानें और गोदाम का नवीनीकृत किया जाता रहा है।
दुकानों के नवीनीकरण पर प्रतिवर्ष 200 करोड रुपए की वसूली चर्चा;
आबकारी मुख्यालय से जुड़े एक सूत्र का दावा है कि अधिकारी किसी भी दशा में दुकानों की लॉटरी के पक्ष में नहीं है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जब भी दुकानों का रिनुअल होता है तो अधिकारियों का निजी राजस्व पूरी तरह सुरक्षित रहता है। बताया जा रहा है कि प्रत्येक दुकान के नवीनीकरण पर लाइसेंसी से करीब 60000 रुपए वसूले जाते हैं। आंकड़े पर यदि विश्वास किया जाए तो पूरे प्रदेश में करीब 24000 फूट कर देसी विदेशी शराब की दुकान हैं। वसूली गई रकम आबकारी मुख्यालय में विभिन्न पटेल से होते हुए तमाम वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचती है इसलिए कोई भी अधिकारी दुकानों के लॉटरी के पक्ष में नहीं है। मिली जानकारी के मुताबिक वेव ग्रुप का केवल गोदाम पर ही नहीं बल्कि फुटकर दुकान पर भी वर्चस्व स्थापित हो गया है। कहां जा रहा है कि लगभग 18000 दुकान वेव ग्रुप या उसके सिंडिकेट से जुड़े लोगों के पास है।
आबकारी नीति में नवीनीकरण अपवाद नियम नहीं:
आबकारी विभाग द्वारा लगातार 6 सालों से फुटकर दुकानों का नवीनीकरण नियम विरुद्ध किया जा रहा है। आबकारी पॉलिसी के अनुसार उन्हें दुकानों का रिनुअल हो सकता है जिन पर किसी प्रकार से विवाद हो या वित्तीय वर्ष के मध्य सत्र में संचालन बाधित हुआ। आबकारी आबकारी पॉलिसी के इसी प्रावधान को बहाना बनाते हुए पूर्व प्रमुख सचिव ने वेव ग्रुप की हजारों दुकानों को लॉटरी से मुक्त रखने के लिए नवीनीकरण की अनुमति दे दी। कहां जा रहा है कि यह सौदा हजारों करोड़ का है।
रेडिको और वेब का याराना: लुट गया आबकारी विभाग का खजाना:
संजय भूस रेड्डी की मदद से वेव ग्रुप का पूरे उत्तर प्रदेश पर वर्चस्व स्थापित हो गया। सबसे पहले वेव ग्रुप ने संजय भूस रेड्डी से मिलेगी भगत करके हर जिले में कई गोदाम की पॉलिसी को खत्म कर दिया और अधिकांश जनपद में अपनी गोदाम स्थापित किया। प्रदेश भर में जो भी फुटकर की दुकान थी उसमें आपूर्ति बाधित कर दी। कोटा नहीं उठा पाने वाली दुकान पर संजय भूस रेड्डी की मदद से कार्रवाई शुरू कराई। इसके बाद घबराए कई लाइसेंसी ने वेव ग्रुप के सामने सरेंडर कर दिया। लाइसेंसी दुकानों के साथ वेव ग्रुप ने एक सौदेबाजी की। सौदेबाजी के तहत दुकानों पर लाइसेंसी का नाम मात्र का दखल रह गया। सैकड़ो की संख्या में दुकान वेव ग्रुप संचालित करने लगा।
दुकानों पर वेब ग्रुप का वर्चस्व बढ़ने के बाद रेडिको जो सबसे अधिक देसी विदेशी शराब उत्पादन करता है उसकी मुश्किलें बढ़ गई क्योंकि वेब ग्रुप के पास सबसे ज्यादा गोदाम थे और वेव ग्रुप ने रेडी को को झंडे के नीचे लाने के लिए रेडिको में इंडेंट लगाना बंद कर दिया। रेडिको और वेब ग्रुप में भी समझौता हुआ। रेडिकों ने वेव ग्रुप की तमाम दुकानों को उधारी दिया कहा जा रहा है कि यह उधारी लगभग 5000 करोड़ से ज्यादा हो गई है। ऐसी स्थिति में यदि आबकारी नीति के अनुसार लॉटरी आती है तो संभावना है कि वेब ग्रुप की हजारों लाइसेंसी दुकान उसके नियंत्रण से मुक्त हो जाएगी। वेव ग्रुप ने भी अपनी दुकानों पर हजारों करोड़ का उधारी बांट रखा है और वह भी डूबने की स्थिति में आ जाएगा। इन दोनों शराब कंपनियों की स्थिति को देखते हुए आबकारी आयुक्त जिनको रेडी को और वेब ग्रुप का सेल्समेन भी कहा जाता है वह चिंतित हो गए हैं और चाहते हैं कि पहले से चली आ रही अवैध रूप से नवीनीकरण की नीति जारी रहे। फिलहाल कल बुधवार को कैबिनेट मीटिंग है देखना है आबकारी नीति कैबिनेट के बैठक में रखी जाती है या नहीं।
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