
नई दिल्ली। संविधान और बाबा साहब अंबेडकर के प्रति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की घृणा और नफरत उसेसमय फिर जग जाहिर हो गई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय पहुंचे। हुआ दरअसल यू कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर में संघ मुख्यालय पहुंचने से पहले बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की दीक्षा भूमि स्मारक पहुंचे लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत या अन्य कोई भी संघ का स्वयंसेवक उनके साथ नहीं गया। बाबा साहब अंबेडकर और उनकी दीक्षाभूमि से स्वयंसेवकों ने क्यों दूरी बनाई यह जान लेना भी जरूरी है। प्राप्त विवरण के अनुसार मनुस्मृति की भेदभाव पूर्ण वर्ण व्यवस्था के विरोध में दलित और शोषितों के उत्पीड़न और अत्याचार से नाराज होकर बाबा साहब अंबेडकर ने नागपुर में ही हिंदू धर्म का त्याग करके बौद्ध धर्म अपना लिया। यहीं पर उन्होंने 22 प्रतिज्ञा ली थी और कहा था कि हिंदू धर्म के सभी संस्कारों से दूर रहेंगे। बाबा साहब अंबेडकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मनुस्मृति का प्रचारक बताया था और अपने समर्थकों को उनसे दूर रहने को कहा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दीक्षाभूमि और बाबा साहब अंबेडकर और यहां तक कि उनके संविधान को भी कभी मानता नहीं दी। मनुस्मृति स्मृति को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सनातन धर्म का आधार मानता रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में क्यों बनाई दूरी:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दीक्षा भूमि पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख केवल इसलिए नहीं गए क्योंकि वहां दो संदेश देना चाहते थे पहला संदेश या कि वह बाबा साहब अंबेडकर से अभी भी नाराज़ है और दूसरा संदेशा है यह है कि वह मनुस्मृति को नहीं छोड़ सकते। यदि संग प्रमुख मोहन भागवत दीक्षाभूमि पर जाते तो अपने स्वयं सेवकों के बीच सवालों के घेरे में आ जाते जो वह नहीं चाहते थे।
प्रधानमंत्री भी सवालों के घेरे में:
अंबेडकर की दीक्षा भूमि पर पहुंच कर उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नमन जरूर किया लेकिन संघ के हेड क्वार्टर में पहुंचकर उन्होंने अपने आप को स्वयंसेवक बताया जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी भी दीक्षा भूमि का सम्मान नहीं किया ऐसे में अपने को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बताकर प्रधानमंत्री भी दलित शोषितों और अंबेडकरवादियों के निशाने पर आ गए हैं। के बीच यही संदेश गया है कि दीक्षाभूमि और अंबेडकर तथा उनके संविधान के प्रति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके स्वयंसेवकों की एक ही सोच है। महत्वपूर्ण राज्य बिहार और बंगाल में 2025 और 26 में लगातार चुनाव होने हैं ऐसे में यदि यह मामला तूल पकड़ता है तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है।
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