नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाव सियासी मझधार में फंस गई है। एक तरफ जहां उनकी पार्टी के ही नेता उनका साथ छोड़ रहे हैं वही जैसे-जैसे समय बीत रहा है राष्ट्रीय जनता दल की ताकत बढ़ती जा रही है और इसका अंदाजा नीतीश कुमार को बखूबी हो गया है ।
काफी समय से वह भारतीय जनता पार्टी के साथ अपनी दोस्ती का हवाला देकर राष्ट्रीय जनता दल को ब्लैकमेल करते रहे हैं लेकिन लग रहा है कि अब राष्ट्रीय जनता दल भी नीतीश कुमार की ब्लैकमेलिंग को गंभीरता से नहीं ले रही है।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार को और ज्यादा दबाव में ला दिया। नीतीश कुमार की ताकत अति पिछड़े समाज की 20 से अधिक जातियां रही हैं और यह जातियां कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा के साथ गोल बंद रहे हैं और यही नीतीश कुमार की ताकत रही है उन्हें लगता है कि अगर यह जातियां भाजपा के पक्ष में चली गई तो उनकी राजनीति का आकस्मिक अंत हो जाएगा।
क्या है नीतीश की रणनीति
जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार दूर की कौड़ी खेल रहे हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को फसाने के लिए एक जल बुना है। वहा भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा में कम से कम 20 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनकी गणित यही है कि वहां भाजपा के संसाधन समर्थक और मतदाताओं के बल पर आसानी से कम से कम 20 सीट पर जीत दर्ज करना चाहते हैं। वह एक तीर से दो निशाने करना चाहते हैं। अपने इस रणनीति से वह अपने उन विरोधियों को जो एनडीए में उनके विरोध के नाम पर फल फूल रहे हैं उन्हें नेस्त नाबूत करना चाहते हैं। लोक जनशक्ति पार्टी चिराग पासवान उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी का भी स्पेस एनडीए में समेटना चाहते हैं। जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद यदि अच्छी खासी संख्या में उनकी पार्टी के सदस्य चुनाव जीत जाते हैं तो आवश्यकता पड़ने पर वह एक बार फिर पाला बदल लेंगे और इंडिया का हिस्सा होंगे तथा यदि बंद पड़ेगा तो प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी हो जाएंगे। नीतीश कुमार को लगता है कि यदि पार्टी की ताकत नहीं बढ़ेगी तो ज्यादा दिन तक उन्हें लोग बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।
भाजपा के साथ कहां अटकी है बात
भारतीय जनता पार्टी के साथ बातचीत केवल मुख्यमंत्री पद को लेकर अटकी हुई है। नीतीश कुमार चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा जाए जबकि भारतीय जनता पार्टी इस मामले में उन पर भरोसा नहीं कर पा रही है। भारतीय जनता पार्टी का प्रस्ताव है कि जनता दल यूनाइटेड मुख्यमंत्री का पद छोड़ें और बदले में दो उपमुख्यमंत्री का पद ले तथा केंद्र की राजनीति करें। इस प्रस्ताव पर जनता दल युग के अधिकांश नेता सहमत नहीं है और खुद नीतीश कुमार भी सहमत नहीं है। नीतीश कुमार को लगता है कि यदि मुख्यमंत्री का पद भाजपा के पास गया तो उनकी पार्टी टूटने में मिनट भी नहीं लगेगा। नीतीश कुमार महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी की टूट से काफी चौकन्ने हैं। उन्हें अमित शाह पर जरा भी भरोसा नहीं है। फिलहाल जनता दल और भारतीय जनता पार्टी एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
क्या है लालू की रणनीति:
बिहार की सियासत के धुरंधर लालू प्रसाद यादव अपनी गोटिया सावधानी से लगा रहे हैं। वह अपने राजद कांग्रेस और कम्युनिस्ट विधायकों की एकता पर फोकस कर रहे हैं और साथ ही साथ जनता दल यू के भी उन विधायकों को भी आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार में सियासी हलचल के बीच बड़ी खबर.
आरजेडी का विधानसभा अध्यक्ष नीतीश और भाजपा के लिए चिंता का विषय
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जनता दल यूनाइटेड के 20 से अधिक विधायक बगावत की राह पर हैं और यदि मामला विधानसभा में पहुंचा तो राष्ट्रीय जनता दल का विधानसभा अध्यक्ष होने से लाल की राह आसान हो जाएगी और जनता दल यूनाइटेड के बागी गुट को आसानी से मान्यता मिल जाएगी। और यदि ऐसा हुआ तो खेल बिगाड़ सकता है।
विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी नहीं कर सकते नीतीश कुमार
नीतीश कुमार सियासी भंवर में इस कदर फंसे हुए हैं कि वह भाजपा के साथ भी आसानी से नहीं जा सकते यदि वह जाते हैं तो उन्हें भाजपा को मुख्यमंत्री की कुर्सी शोपनी पड़ेगी ऐसा करने के बाद उनका पद और कद दोनों खतरे में पड़ जाएगा. विधानसभा में संख्या बल इतना काम है कि वह अकेले विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी नहीं कर सकते और कैबिनेट की मीटिंग भी नहीं बुला सकते क्योंकि कैबिनेट में आधी से ज्यादा संख्या राष्ट्रीय जनता दल कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी की है. सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से विधानसभा भंग कर लोकसभा और विधानसभा साथ करने का प्रस्ताव रखा है जिसके लिए लालू प्रसाद यादव फिलहाल तैयार नहीं है. लालू प्रसाद यादव को ऐसा लगता है कि इस समय सामाजिक न्याय के मोर्चे पर नीतीश कुमार की लोकप्रियता अति पिछड़ी जातियों में चरम पर है यदि विधानसभा भंग कर चुनाव हुए तो उनकी ताकत में भारी इजाफा हो जाएगा जो राष्ट्रीय जनता दल की भविष्य की राजनीति के लिए ठीक नहीं होगा.
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