आबकारी आयुक्त की भूमिका भी सवालों के घेरे में:
लखनऊ । आबकारी विभाग में लगभग एक अरब रुपए के मोलासेस घोटाले की खबर आ रही है। मिली जानकारी के मुताबिक अकेले शुगर फेडरेशन की चीनी मिल में ही 95000 कुंतल से अधिक अवैध शीरा पाया गया है। मजे की बात यह है कि प्रमुख सचिव आबकारी वीना कुमारी मीणा ने गन्ना विभाग के अधिकारियों से चीनी मिलों में स्टॉक का वेरिफिकेशन कराया था जिसमें यह घोटाला सामने आया। सूत्रों का मानना है कि सभी चीनी मिलों में लगभग दो लाख कुंतल मोलासेस अवैध रूप से पकड़ा गया है। इतनी बड़ी मात्रा में अवैध रूप से मोलासेस पकड़े जाने के बाद खुद प्रमुख सचिव सवालों के घेरे में आ गई है।27हजार कुंटल संपूर्णानगर और 15हजार कुंटल सठियांव आजमगढ़ में चोरी का शीरा बरामद हुआ है।
बावजूद इसके डिप्टी जॉइंट और जिला आबकारी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई ऐसा क्यों हुआ।
जब घोषित मात्रा से अधिक शीरा बरामद हुआ तो इसका मतलब गन्ने की घटतौली प्रमाणित हुई जब गन्ना अधिक पेरा गया तो सिर्फ शीरा ही थोड़ी बना, शीरे की मात्रा से दोगुनी मात्रा चीनी की भी बनी, बगास, प्रेस्मेड तो जाने ही दीजिए, यह घोटाला पकड़े जाने से पहले तमाम शीरा आसवनियों तक पहुंच गया जिससे अवैध अल्कोहल बना जिससे अवैध शराब बनकर बिकी राजस्व का चूना लगा, तमाम चीनी दो नंबर में बिकी जिसमें 100/-रुपए कुंटल जीएसटी चोरी हुई, पैसे मिल मालिकों और अफसरों की जेब में गया, किसान गन्ना मूल्य भुगतान के लिए चक्कर लगा रहे हैं।
त्रैमासिक मुआयना करने वाले अधिकारियों को क्यों मिली क्लीन चिट:
प्रमुख सचिव इसलिए सवालों के घेरे में है कि जब इतनी बड़ी मात्रा में अवैध मोलासेस पकड़ा गया तो यह निश्चित हो गया कि इस घोटाले में उनका ही एक और विभाग गन्ना विभाग भी शामिल है। गन्ना विभाग के अधिकारियों ने किसानों के गन्ने की घटतौली की तभी अधिक मोलासेस का उत्पादन हुआ। ऐसे में सवाल या उठना है कि जब यह रिपोर्ट प्रमुख सचिव को मिली तो उन्होंने अपने गन्ना विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों से जवाब तलब क्यों नहीं किया।
मैडम प्रमुख सचिव इसलिए भी सवालों के घेरे में है क्योंकि उन्होंने आबकारी विभाग के जॉइंट डिप्टी और डीईओ जो कि गन्ने की पेराई सत्र के बाद आरोपी चीनी मिलों का मुआयना किया थे उन्होंने यह गड़बड़ी क्यों नहीं पकड़ी और जब गन्ना विभाग के अधिकारियों ने यह गड़बड़ी पकड़ी है तो यहां पर आबकारी विभाग के अधिकारियों की संलिप्तता साबित हो गई है तो फिर दोषी डिप्टी जॉइंट और जिला आबकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
आबकारी आयुक्त दोषी:
आबकारी आयुक्त डॉ आदर्श सिंह भी अपनी जवाब देही से नहीं बच सकते। आबकारी विभाग में महा भ्रष्ट परशुराम दुबे जैसे लोगों की मोलासेस जैसे महत्वपूर्ण विभाग में डिप्टी के रूप में तैनाती करना इस घोटाले की साजिश का अहम हिस्सा है। कमिश्नर डॉक्टर आदर्श सिंह ने खुद कई चीनी मिलों का मुआयना किया और जब उन्होंने यह गड़बड़ी पकड़ी तो त्रैमासिक मुआयना करने वाले अधिकारियों से जवाब तलब करने के बजाय चीनी मिलों के अधिकारियों को बुलाकर वसूली की तैयारी की जा रही है और इसकी सहमति खुद आबकारी आयुक्त ने दी है।
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