अवधभूमि

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कमिश्नर साहब आपका ध्यान किधर है:

आपके विभाग में भ्रष्टाचार इधर है:

लखनऊ। आबकारी आयुक्त इन दिनों भ्रष्टाचार रोकने के लिए पूरे प्रदेश में हाथ पांव मार रहे हैं लेकिन वही भ्रष्टाचार फल फूल रहा है जहां वह नियमित रूप से बैठते हैं। जी हां आपने सही समझा है आबकारी मुख्यालय में ना बैठकर लखनऊ के कैंप कार्यालय में बैठते हैं यहीं पर संयुक्त आबकारी आयुक्त विजिलेंस तथा संयुक्त आबकारी आयुक्त टास्क फोर्स सभी तैनात हैं बावजूद इसके धड़ल्ले से लखनऊ में अवैध वसूली जारी है। अवैध वसूली जिनके संरक्षण में हो रहा है वह सब आबकारी आयुक्त के बेहद करीबी बताए जाते हैं।

फर्जी परमिट लाइसेंस हो रहे हैं जारी:

लखनऊ में फर्जी लाइसेंस तक जारी हो रहा है। बीयर और वाइन की दुकानों पर पीने वालों की सुविधा के लिए 100 वर्ग फुट एरिया का एक परमिट रूम का लाइसेंस देने का प्रावधान आबकारी विभाग का है लेकिन लखनऊ में आबकारी के इंस्पेक्टर और बड़े अधिकारी लाइसेंसी दुकानदारों पर इस बात का दबाव बना रहे हैं कि वह नियमों का पालन न करें और अवैध रूप से किसी भी कमरे में चाहे वह मानक पूरा करें या ना करें पिलाने की व्यवस्था करें। सूत्रों का कहना है कि लाइसेंसी पर इस बात का दबाव इंस्पेक्टर बना रहे हैं कि अवैध रूप से दुकान पर पिलाने के बदले हर महीने 5000 और शुरू में ₹25000 खर्च करने पड़ेंगे इसके अलावा ₹25000 अधिकारी स्तर पर प्रतिवर्ष खर्च करने की भी बात चर्चा में आ रही है। इन खबरों में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद पता चलेगा लेकिन फिलहाल अवध भूमि न्यूज़ के पास कुछ ऐसी भुगतान संबंधी रसीद हाथ लगी हैं जो लखनऊ में व्यापक भ्रष्टाचार की ओर इशारा कर रहा है।

परमिट रूम अनुज्ञापन की फर्जी रसीद पर की जा रही वसूली:

अवध भूमि न्यूज़ के हाथ एक रसीद लगी है जिसे विभाग के पोर्टल से जारी न करके जिला आबकारी अधिकारी कार्यालय द्वारा लिपिक के स्तर से जारी किया गया है जो की पूरी तरह अवैध और फर्जी है। कहां जा रहा है कि इस तरह की रसीद काट कर लाइसेंसी को दिया जाता है और ₹25000 तक वसूला जाता है।

परमिट रूम के इस लाइसेंस के जांच की जरूरत है जिससे पता चल सके कि इस खेल में कौन-कौन लोग शामिल है। मिली जानकारी के मुताबिक बीयर और विदेशी शराब के तमाम दुकानदारों पर इसी तरह का फर्जी परमिट रूम लाइसेंस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस खेल में अब तक लाखों की वसूली हो चुकी है और इस वसूली में जॉइंट ईआईबी जॉइंट आबकारी आयुक्त लखनऊ जॉइंट आबकारी आयुक्त टास्क फोर्स और डिप्टी आबकारी आयुक्त लखनऊ के साथ-साथ जिला आबकारी अधिकारी राकेश सिंह की भूमिका सवालों के घेरे में है।

हैरानी की बात है कि जहां नियमित रूप से आबकारी आयुक्त बैठते हैं उनके बगल में जॉइंट की ईआईबी जैनेंद्र उपाध्याय बैठते हैं । जॉइंट आबकारी आयुक्त दिलीप मणि त्रिपाठी बैठते हैं उप आबकारी आयुक्त भी बैठते हैं तथा जिला आबकारी अधिकारी राकेश सिंह की तैनाती की गई है वहां इतना बड़ा खेल हो रहा है और लोग आंख मूंदे हुए हैं। क्या प्रवर्तन विभाग ऐसे ही कामों के लिए जैनेंद्र उपाध्याय को मिला है। क्या दिलीप मणि त्रिपाठी की यही काबिलियत है कि उन्हें जॉइंट आबकारी आयुक्त लखनऊ बनाया गया है इसके साथ-साथ वह जॉइंट आबकारी आयुक्त मुख्यालय भी बनाए गए हैं। फर्जी रसीद इन वर्क परमिट लाइसेंस आज की जारी हो रही हैं जॉइंट आबकारी आयुक्त टास्क फोर्स क्या कर रहे हैं क्या वह भी इसी सिंडिकेट का हिस्सा है। जिला आबकारी अधिकारी राकेश सिंह के हस्ताक्षर से यह रूम परमिट लाइसेंस अनुज्ञपि को जारी हुए हैं इसकी जांच कौन करेगा। यह अपने आप में बड़ा सवाल है।

असली लाइसेंस पोर्टल से इस तरह जारी होता है

क्योंकि सभी प्रकार के परमिट और लाइसेंस की फीस पोर्टल पर जमा होती है इसलिए सभी प्रकार के लाइसेंस ऑनलाइन जारी होते हैं। जबकि लखनऊ में जो परमिट रूम का लाइसेंस जारी हुआ है वह मैन्युअल जारी किया गया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस तरह के फर्जी परमिट लाइसेंस जारी करके आबकारी विभाग को चूना कौन लगा रहा है।

आबकारी आयुक्त डॉ आदर्श सिंह ने कहा कि इस प्रकरण को वह दिखवाएंगे। उन्होंने कहा कि चालान ट्रेजरी के माध्यम से ही जमा होता है और अगर चालान जमा होगा तो कोई बात नहीं है।

हालांकि दो तरह के परमिट रूम लाइसेंस जारी होना अपने आप में काफी विवादास्पद है।

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