अहंकार ही भगवान का आहार है:
प्रतापगढ़ रामानुज आश्रम महाकुंभ का पावन पर्व चल रहा है। सरकार की ओर से लगातार बयान बाजी की जा रही थी मैंने यह किया है मैंने वह किया है ऐसा अभी तक कभी नहीं हुआ है ना आगे संभावना है। यह 144 वर्ष बाद आया है। कई मंत्रियों के भी ऐसे बयान भी आए किंतु किसी ने यह नहीं कहा यह भगवान बेणी माधव , श्री हनुमान जी और मां गंगा जी की कृपा से हो रहा है। मेला अभी बीता भी नहीं था कि लोग पिछली सरकार से इसकी तुलना करने लगे। पिछले कुंभ में वह घटना हो गई है यह घटना हो गई इसमें कुछ नहीं हुआ।
इस संबंध में दास को एक कथा याद आई। केन उपनिषद में गाथा है। एक समय स्वर्ग के देवताओं ने परमात्मा के प्रताप से असुरों पर विजय प्राप्त किया। देवों की कीर्ति और महिमा सब तरफ छा गई। विजय में मतवाले देवता भगवान को भूलकर कहने लगे कि हमारी ही जय हुई है। देवताओं के अभिमान को नष्ट करने के लिए भगवान श्रीमन्नारायण ने अपनी लीला से एक ऐसा अद्भुत रूप प्रकट किया जिसे देखकर देवताओं की बुद्धि चकरा गई।
उस यक्ष रूपी पुरुष का पता लगाने के लिए देवताओं ने अग्नि को भेजा ,अग्नि ने कहा मैं जिसको चाहूं उसको जला सकता हूं। उस महापुरुष ने एक तिनका सामने रखकर कहा इसे जला कर दिखाओ। अग्नि देवता उसे जला नहीं सके। इसके पश्चात देवताओं ने वायु देव को भेज। उनकी भी वही दुर्गति हुई उस तिनके को हिला तक न सके। अंत में इंद्र उस यक्षमहा पुरुष के पास गए उनको देखते ही वह महापुरुष गायब हो गए और सामने जगत जननी उच्चालंकारों से विभूषित हिमवान की कन्या भगवती पार्वती उमा खड़ी हुई दिखाई दीं। इंद्र ने विनय भाव से पूछा यह एक कौन थे।मां ने कहा वह परम ब्रह्म हैं अर्थात श्रीमन नारायण हैं। तुम लोगों ने जो विजय प्राप्त किया था वह भगवान श्रीमन्नारायण की कृपा से प्राप्त किया था लेकिन तुम लोगों में ऐसा अभिमान आ गया कि तुम अपनी ही विजय मानने लगे। जो कुछ करते हैं वही श्रीमन्नारायण ही करते हैं। इंद्र की आंखें खुल गई अग्नि और वायु ब्रह्म को जान लिया ।इसीलिए तीन देवता यह श्रेष्ठ माने गए।
गीता में भगवान ने कहा देवताओं में मैं इंद्र हूं ,पवित्र नदियों में भागीरथी गंगा जी हूं, पक्षियों में गरुड़, दैत्यों में प्रहलाद, वृक्षों में पीपल तथा ऋषियों में नारद एवं सिद्धों में कपिल मुनि वेदों में सामवेद एकादश रूद्रो में मैं शंकर हूं। आदित्य के 12 पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में सूरज तथा नक्षत्र में अधिपति चंद्रमा हूं। इसलिए ठाकुर जी ने अहंकार का दमन किया। क्रोध ईर्ष्या और अहंकार भगवान का आहार है। जो भी यह अपने अंदर लाएगा उसका नुकसान उसे उठाना पड़ेगा।
इसलिए जो कुछ करते हैं ठाकुर जी करते हैं। यह मानकर और जो कुछ करते हैं सब अच्छा करते हैं उसे स्वीकार करना चाहिए। किसी पर टीका टिप्पणी किसी को अपमानित करना किसी को बड़ा किसी को छोटा बनाने का अधिकार हमको आप सबको नहीं है ।हां लोकतंत्र में एक अधिकार आपको मिला है मत देकर किसी को आप बड़ा भी बना सकते हैं और छोटा भी बना सकते हैं।
मोक्ष पर दास एक दो दिन बाद चर्चा करेगा।
धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास रामानुज आश्रम संत रामानुज मार्ग शिवजीपुरम प्रतापगढ़
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