
लखनऊ। निष्पक्षता और पारदर्शिता का दावा करने वाले आबकारी विभाग में संयुक्त निदेशक सांख्यिकी जैसे पद पर बिना किसी पोस्टिंग आदेश के डिप्टी एक्साइज कमिश्नर प्रदीप दुबे विभाग के राजस्व आंकड़े जारी कर रहे हैं। ऐसे में सबसे गंभीर सवाल यही है कि इनके द्वारा जारी आंकड़े क्या वैध है। अगर प्रदीप दुबे की नियुक्ति हुई ही नहीं है तो फिर वह शासन की समीक्षा बैठक में सांख्यिकी विभाग के आंकड़े कैसे रख रहे हैं और तमाम डिस्टलरी और अन्य कार्य कैसे संपादित कर रहे हैं। यह अपने आप में बहुत बड़ा स्कैम है जिसका जवाब फिलहाल प्रमुख सचिव और कमिश्नर के पास नहीं है। आबकारी आयुक्त आदर्श सिंह की जवाब देही इसलिए ज्यादा है क्योंकि वह प्रदीप दुबे के अवैध क्रियाकलाप पर उन्हें दंडित करने के बजाय परदेदारी कर रहे हैं जबकि प्रमुख सचिव समीक्षा बैठक में इस झोलाछाप जॉइंट डायरेक्टर की खुली तारीफ कर चुकी हैं। इस प्रकरण को लेकर लोग कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।
प्रदीप दुबे की पोस्टिंग से शराब माफिया की चांदी:
प्रदीप दुबे की पोस्टिंग से प्रदेश के बड़े शराब माफिया की चांदी है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पूर्व जॉइंट डायरेक्टर स्टैटिक जोगिंदर सिंह ने अपने रिटायरमेंट से पहले आबकारी विभाग के अधिकृत पोर्टल IESCMS से सारे डेटा रिमूव कर दिए थे ऐसा क्यों किया इसकी कोई जानकारी विभाग को नहीं दी गई। सूत्रों के हवाले से खबर है कि 1 अप्रैल 24 से 14 अप्रैल 24 तक विभाग के अधिकृत पोर्टल पर कोई रेवेन्यू आंकड़े उपलब्ध नहीं है। एक आरटीआई के जवाब में डिप्टी कार्मिक कुमार प्रभात चंद्र ने स्पष्ट कहा है कि जॉइंट डायरेक्टर के रूप में प्रदीप दुबे की नियुक्ति का किसी प्रकार का कोई आदेश नहीं है ऐसे में गंभीर सवाल उठता है कि उनके द्वारा फिर आंकड़े कैसे जारी हो रहे हैं और इन आंकड़ों को विभाग स्वीकार कैसे कर रहा है। यह अपने आप में बहुत बड़ा स्कैम है जिसकी शासन स्तर से जांच की जानी चाहिए। माना जा रहा है कि पूर्व जॉइंट डायरेक्टर जोगिंदर सिंह द्वारा ऑफिशल पोर्टल से आंकड़े रिमूव करने का सबसे ज्यादा फायदा शराब माफिया को हुआ है और जॉइंट डायरेक्टर के रूप में प्रदीप दुबे की स्वयंभू तैनाती उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है । शराब कंपनियों के उत्पादन आंकड़ों की सत्यता की जांच अब संभव नहीं है ऐसे में कंपनियों द्वारा उत्पादन आंकड़ों में लाखों लीटर शराब की हेरा फेरी की संभावना व्यक्त की जा रही है जिससे विभाग को बहुत बाद राजस्व क्षति हुआ है।

प्रभारी तकनीकी अधिकारी भी झोलाछाप:

डिप्टी कार्मिक में आरटीआई में यह भी जानकारी दी है कि तकनीकी सेवा का वरिष्ठ प्राविधिक अधिकारी का पद भी झोलाछाप है। फिलहाल यहां स्वयंभू तैनात नॉन टेक्निकल सहायक आबकारी आयुक्त संदीप मोदवेल की नियुक्ति का भी कोई शासनादेश नहीं है बावजूद इसके संदीप मोदवेल ने न केवल कई डिस्टलरी का तकनीकी निरीक्षण किया बल्कि अपनी रिपोर्ट से दर्जन वर्सेस ज्यादा डिस्टलरी स्थापित करने को तकनीकी मंजूरी दे दी जबकि इनकी पोस्टिंग ही अवैध है। मजेदार बात यह है की प्रमुख सचिव और कमिश्नर की जानकारी में यह दोनों कार्य कर रहे हैं।

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