
लखनऊ में तस्करी पर करारा प्रहार, लेकिन बड़ा सवाल बरकरार…
लखनऊ। राजधानी के गोसाईगंज थाना क्षेत्र में पुलिस और आबकारी विभाग की संयुक्त कार्रवाई ने एक बार फिर शराब माफियाओं की नाक में दम कर दिया। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे सर्विस लेन पर चेकिंग के दौरान एक किया (KIA) कार से करीब 300 बोतल विदेशी शराब बरामद की गई। आरोपी कृष्णा, जो हरियाणा से यह खेप लेकर बिहार जा रहा था, पुलिस की जद में आ गया।
बीते एक महीने में लखनऊ की आबकारी टीम ने लाखों की तस्करी की शराब पकड़कर यह साबित किया है कि उनकी सक्रियता और सतर्कता वाकई काबिले-तारीफ है। इस कार्रवाई से यह साफ होता है कि तस्करों के हौसले चाहे जितने बुलंद हों, लखनऊ की चौकसी से बचना आसान नहीं है।
लेकिन, यहां एक बड़ा सवाल खड़ा होता है—आखिरकार हरियाणा बॉर्डर से लेकर लखनऊ तक इतनी बड़ी खेप बिना रोके-टोक कैसे पहुंच गई? रास्ते में मौजूद चेकपोस्ट, हाईवे पेट्रोलिंग और विभागीय निगरानी तंत्र पर सवालिया निशान लगना लाजमी है। क्या यह लापरवाही है या फिर कहीं न कहीं तस्करों को रास्ता साफ करने में मिलीभगत का फायदा मिल रहा है?
इस बरामदगी ने न केवल आबकारी विभाग और पुलिस को साख बचाने का मौका दिया है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि शराब तस्करी का नेटवर्क कितना गहरा और संगठित है। ऐसे में, अब जरूरत इस बात की है कि सिर्फ खेप पकड़ने तक कार्रवाई सीमित न रहे, बल्कि उस नेटवर्क की जड़ तक पहुंचा जाए जो हरियाणा से लेकर बिहार तक फैला हुआ है।
लखनऊ की इस बड़ी कामयाबी से जहां कानून-व्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है, वहीं जनता को यह जानने का हक भी है कि आखिर सिस्टम की चूक कहां हो रही है?




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