
लखनऊ। आबकारी की चुप्पी से फलता अल्कोहल डायवर्जन, विभागीय मंत्री का ध्यान अपेक्षित
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में टिंचर आयोडीन, सर्जिकल स्पिरिट और अत्यधिक अल्कोहल वाली होम्योपैथी मदर टिंचर (Q) को लेकर एक गंभीर सवाल खड़ा हो गया है—क्या दवा की आड़ में शराब/अल्कोहल की समानांतर तस्करी चल रही है? उपलब्ध तथ्यों, पैटर्न और प्रशासनिक चुप्पी को देखें तो यह आशंका निराधार नहीं लगती।
70–90% अल्कोहल, लेकिन आबकारी निगरानी शून्य
मदर टिंचर और कुछ औषधीय उत्पादों में 70 से 90 प्रतिशत तक एथाइल अल्कोहल (ENA) होता है—वही अल्कोहल जो देशी-विदेशी शराब में इस्तेमाल होता है। इसके बावजूद:
ये उत्पाद आबकारी लैब परीक्षण से बाहर हैं,
परमिट, सील और ट्रैकिंग लागू नहीं,
और JAT/आबकारी ऑडिट के दायरे से मुक्त हैं।
यह स्थिति कानूनी मजबूरी नहीं, प्रशासनिक निर्णय का परिणाम मानी जा रही है।
2% की सीमा और आबकारी की जिम्मेदारी
आबकारी कानून की मूल भावना यह है कि 2% से अधिक अल्कोहल वाले पदार्थ के दुरुपयोग की रोक और नियंत्रण आबकारी की जिम्मेदारी में आता है। सवाल यह है कि जब:
दुरुपयोग के संकेत स्पष्ट हों,
ग्रामीण/गरीब इलाकों में खपत असामान्य हो,
ड्राई-डे या छापों के समय मांग अचानक बढ़े,
तो आबकारी इंटेलिजेंस और प्रवर्तन क्यों निष्क्रिय दिखता है?
तस्करी का संभावित मॉडल: दवा का लेबल, शराब का उपयोग
सूत्र बताते हैं कि:
होम्योपैथी फार्मेसियां Medicinal Use के नाम पर बड़ी मात्रा में ENA खरीदती हैं,
कागजों में उत्पादन “मदर टिंचर” दिखता है,
लेकिन वास्तविक खपत/बिक्री नशे के विकल्प के रूप में होती है।
450 ml और 1 लीटर जैसी Bulk पैकिंग इस शक को और गहरा करती है।
जन-स्वास्थ्य और राजस्व—दोनों पर चोट
इन रसायनों के सेवन से:
लिवर फेल्योर, आंतरिक रक्तस्राव, अंधत्व तक के मामले सामने आए हैं।
वहीं दूसरी ओर:
बिना आबकारी शुल्क बिकने से राज्य राजस्व को नुकसान,
और अवैध बाजार को संरक्षण मिलता है।
‘दवा’ कहकर जिम्मेदारी से बचाव?
जब सवाल उठते हैं तो तर्क दिया जाता है—“यह ड्रग्स विभाग का विषय है।”
लेकिन हकीकत यह है कि:
अल्कोहल की निगरानी आबकारी का विषय है,
और जब वही अल्कोहल नशे के रूप में इस्तेमाल हो,
तो आबकारी की जिम्मेदारी स्वतः शुरू हो जाती है।
विभागीय मंत्री से अपेक्षा
यह मुद्दा केवल नियमों का नहीं, जन-स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था और राजस्व—तीनों से जुड़ा है। ऐसे में:
Excise–Drug संयुक्त SOP तत्काल जारी हो,
2% से अधिक अल्कोहल वाले औषधीय उत्पादों की अनिवार्य आबकारी लैब टेस्टिंग हो,
Bulk पैकिंग और बिक्री पर नियंत्रण लगे,
और Alcohol Procurement बनाम Production का ऑडिट कराया जाए।
निष्कर्ष
मदर टिंचर स्वयं दोषी नहीं, लेकिन उसकी आड़ में अल्कोहल डायवर्जन और ‘केमिकल नशा’ एक खतरनाक समानांतर व्यवस्था का संकेत दे रहा है।
अब सवाल सिस्टम से है—क्या आबकारी अपनी जिम्मेदारी निभाएगी, या ग्रे-ज़ोन यूं ही फलता रहेगा?
इस पूरे मामले पर विभागीय मंत्री का तत्काल संज्ञान और स्पष्ट निर्देश न सिर्फ आवश्यक है, बल्कि देर से लिया गया कदम महंगा भी साबित हो सकता है।




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