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नजरिया: भाजपा के लिए गंभीर चिंता का विषय है सनातन बनाम दलित विमर्श: राजनीति के केंद्र में आ सकता है दलित आदिवासी और पिछड़े वर्ग का शोषण और अत्याचार

नई दिल्ली। 2024 की लड़ाई के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इस बीच अयोध्या में भव्य राम मंदिर के सहारे 2024 में हिंदुओं में आस्था जागृत कर तीसरी बार सत्ता में वापसी की तैयारी कर रही भाजपा को द्रविड़ पार्टी डीएमके के नेता उदय निधि स्टालिन ने एक नए विमर्श में उलझा दिया है। दरअसल चेन्नई में प्रोगेसिव रायटर्स एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में सनातन धर्म पर यह कहते हुए हमला बोल दिया कि यह दलितों पिछड़ों और आदिवासियों के लिए कोरोना डेंगू और मलेरिया जैसा हानिकारक है और इसका उन्मूलन होना चाहिए।

द्रविड़ पार्टी के एजेंडे में फंसी भाजपा

भारतीय जनता पार्टी की योजना थी कि भव्य राम मंदिर के उद्घाटन अवसर पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक असम से गुजरात तक सभी हिंदुओं को एकजुट कर आसानी से 2024 के लिए राम के नाम के सहारे आसानी से बेड़ा पार कर लेगी लेकिन डीएमके नेता के सनातन विरोधी बयान में उलझ कर भाजपा ने पूरे मामले को सनातन धर्म बनाम दलित की स्थिति पैदा कर ली है। सनातन धर्म के बचाव में भाजपा जिस कदर इंडिया गठबंधन की पार्टी के नेताओं पर हमले बोल रही है उस दलित पिछड़ी और आदिवासियों में सनातन धर्म और अतीत में दलितों आदिवासियों और पिछड़ों पर हुए अत्याचार पर भी विमर्श शुरू हो गया है। यदि यह विमर्श निचले स्तर पर घर-घर पहुंचा तो इससे भाजपा को फायदा होने के बजाय नुकसान भी हो सकता है।

जानकारों का मानना है कि पिछड़े दलित और आदिवासियों में तमाम ऐसे लोग हैं जो सनातन धर्म को उच्च वर्ग खास तौर पर ब्राह्मण और क्षत्रियों का धर्म मानते हैं। पिछड़े दलित और आदिवासी अब भी मानते हैं कि उनके साथ सनातन धर्म के मानने वाले लोगों ने अतीत में अत्याचार किए थे। इन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया था हजारों सालों तक छुआछूत के भी शिकार थे। तमाम दलित चिंतक आज भी यह मानते हैं कि सनातन धर्म की मान्यता के आधार पर ही उनके साथ भेदभाव छुआ छूत और अत्याचार होता रहा ऐसे में सनातन धर्म के पक्ष में अगर भाजपा मजबूती से खड़ी होती है तो उसके समर्थन में उच्च वर्ग की जातियां लामबंद होगी लेकिन दलित आदिवासी और पिछड़े समाज में भाजपा को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हो सकता है कि राम मंदिर के मुद्दे पर वह पिछड़ी दलित और आदिवासी समूह का भी समर्थन खो सकती है।

आज भी दलितों पिछड़ों और आदिवासियों पर होता है अत्याचार

दलित और आदिवासी समाज के चिंतकों का कहना है कि हजारों वर्षों तक सनातन धर्म के आधार पर उनके साथ अत्याचार होता आया है। उनके हाथ से कोई पानी तक नहीं पीता है। इनके बर्तन अलग रखे जाते हैं। कई इलाकों में आज भी उच्च वर्ग के व्यक्ति के सामने दलित वर्ग का व्यक्ति चारपाई पर नहीं बैठ सकता। शादी विवाह में घुड़ चढ़ी और पगड़ी जैसे उच्च वर्ग जैसी परंपराओं का पालन नहीं कर सकता। गुजरात मध्य प्रदेश राजस्थान हरियाणा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जब तब दलितों पर अत्याचार की घटनाएं होती रही हैं।

गुजरात में उना कांड जैसी घटनाओं के विरोध में आंदोलन करने वाले जिग्नेश मेवानी और सहारनपुर में दलितों पर अत्याचार के बाद संघर्ष करने वाले चंद्रशेखर रावण जैसे दलित नेताओं का अभ्युदय हुआ।

मायावती के लिए भी मुश्किल

अक्सर भारतीय जनता पार्टी के लिए नरम को न रखने वाली बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के लिए भी इस मुद्दे पर उदय निधि स्टालिन का विरोध करना मुश्किल दिखाई दे रहा है। अतीत में सनातन धर्म और मनुवाद के विरोध में ही उनका राजनीति में अभ्युदय हुआ था।

सनातन धर्म को संदेह की दृष्टि से देखते हैं दलित पिछड़े और आदिवासी

सनातन धर्म जिसमें कर्मकांड और मूर्ति पूजा की प्रधानता है और जिसको प्रधान रूप से ब्राह्मण संपन्न करवाते हैं और उनके द्वारा दलितों पिछड़ों और आदिवासियों के घर पूजा करने अथवा भोजन करने से बचा जाता है और इसी आधार पर छुआछूत और भेदभाव भी होता है जिसके चलते इन वर्गों में सनातन धर्म को लेकर काफी संदेह है।

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