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देश में 51 हजार प्राइमरी स्कूल बंद:


पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की एक खबर‌ ने चौंकाया, जब एक धर्म स्थल के मठाधीश ने स्कूल के रास्ते में चहरदीवारी (बाउंड्री वाल) उठा दी और बच्चे स्कूल नहीं जा सके। बच्चे सड़क पर ही बैठ गये..जिला प्रशासन भी बीच में आया… लेकिन उसका नतीजा क्या रहा नहीं पता..!! लेकिन हिंदी भाषी राज्यों व पश्चिम बंगाल में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर जो रिपोर्ट आई है, वह शर्मनाक भी है और दुखी करने वाली भी। UDISE, स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट की एक यूनिट है जो हर साल भारत के स्कूलों से संबंधित डेटा उपलब्ध एकत्र करती है।
विगत कुछ सालों में देश के तमाम सरकारी स्कूलों में ताला लग चुका है। इसके खुलासा यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE Report 2018-19) की एक रिपोर्ट में हुआ। यह रिपोर्ट बताती है कि देश में सरकारी स्कूलों की संख्या में बहुत तेजी से कमी आ रही है। इसके उलट निजी स्कूलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
यूडीआईएसई (UDISE) की साल 2018-19 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 50 हजार से अधिक सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों की संख्या 2018-19 में जहां 10 लाख 83 हजार 678 थी वहीं 2019-20 में यह संख्या घटकर 10 लाख 32 हजार 570 हो गई, इस लिहाज से समूचे कि देशभर में 51 हजार 108 सरकारी स्कूल निपटा दिए गये। उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 26,074 स्कूलों की गिरावट देखी गई। साल 2018 में सितंबर में उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या 1 लाख 63 हजार 142 थी जो सितंबर 2020 में घटकर 1 लाख 37 हजार 068 हो गई। रिपोर्ट के अनुसार जबकि मध्य प्रदेश में 22 हजार 904 सरकारी स्कूल कम हुए। मध्य प्रदेश में सितंबर, 2018 में कुल स्कूलों की संख्या 1 लाख 22, हजार 56 थी जो सितंबर 2020 में घटकर 99 हजार 152 रह गई। रिपोर्ट कहती है कि बिहार और बंगाल दो ऐसे राज्य हैं जहां तेजी से निजी स्कूल खुले हैं।
इस लेख को लिखने का मन 12 सितंबर, 2023 को दैनिक हिन्दुस्तान में छपी खबर को पढ़ने के बाद किया। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के ब्लाक बैतालपुर के परिषदीय विद्यालय बरारी प्रथम का एक मामला प्रकाश में आया। यहां स्कूल के पास ही एक धर्मस्थल है। इस धर्मस्थल के मठाधीश ने रातों-रात बाउंड्री उठवा दी। रविवार के अवकाश के बाद सोमवार की सुबह बच्चे जब स्कूल पहुंचे तो देखा रास्ता बंद था। बच्चे सड़क पर ही धरने पर बैठे गए। पुलिस पहुंची और बच्चियों को समझाया। स्कूल के प्रधानाध्यापक के अनुसार उन्होंने इसकी शिकायत विभाग से की गई थी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई…अब आगे वहां क्या हुआ मुझे नहीं पता…!!!!
सरकारी स्कूल जो बचे भी हैं, उनकी हालत जर्जर है।‌ बरसात में पानी टपकता है। छतों व दीवारों का प्लास्टर टूटा हुआ है। पूरे स्कूल में ज्यादातर एक ही शिक्षक है। सरकारों ने स्मार्ट क्लासेज़ के नाम पर कुछ जिलों में भवन बनाए हैं और डिजिटल क्लासेस शुरू खींच लेकिन उसका सच यह है कि शिक्षक हैं नहीं और नेटवर्क आता नहीं…!! इस तरह की योजनाओं में फटाफट पैसा रिलीज होता है क्योंकि आगे “इंस्टेंट रिलीफ” जो मिलनी होती है..और इसके बाद सब हवाओं के हवाले छोड़ दिया जाता है।
बच्चे तो छोटे हैं अब गांवों-कस्बों के युवाओं और बुजुर्गों को सोचना है कि उन्हें धर्म स्थल चाहिए‌ या स्कूल्स…!! स्कूल मतलब स्कूल..प्रापर बिल्डिंग, शिक्षक और सुविधाएं…!!! बेसिक स्कूलों की हालात बुरी तरह से बिगड़ी है। शिक्षा एक मौलिक अधिकार है और राज्य सरकारें हों या केंद्र सरकार, कोई भी शिक्षा पर बजट खर्च नहीं करना चाहता..?? सरकारों के पास अरबों-खरबों का बजट धार्मिक आयोजनों के लिए होता है लेकिन स्कूलों के लिए नहीं। गांवों-कस्बों व गरीबों के बच्चे निजी स्कूलों की फीस दे नहीं सकते और सरकारी स्कूलों के हालात भयावह हैं..। बेसिक शिक्षा हमारे देश की बुनियाद है..इस ओर सभी राज्यों की सरकारों को गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
एक घटना का जिक्र करता हूं -द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के करीब था..। तमाम ब्रिटिश सांसद चाहते थे कि शिक्षा बजट भी कम किया जाए और रक्षा बजट में जोड़ा जाए। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि आज नहीं तो कल युद्ध रूक जाएगा। युद्ध से जो तबाह हो जाएगा वह फिर बन जाएगा लेकिन अगर शिक्षा बर्बाद हुई तो हमारी पीढियां बर्बाद हो जायेंगी। उन्होंने शिक्षा का बजट कम नहीं किया।
फिलहाल, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने धर्म स्थलों के विकास पर 6 अरब डॉलर खर्च कर डाले। केंद्र सरकार ने पिछले दशक में दर्जनों धार्मिक स्थलों को विकसित करने के लिए लगभग 120 मिलियन डॉलर खर्च किए हैं। अब तय आपको करना है कि आपकी पीढ़ी के लिए जरूरी क्या है?

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