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नजरिया: आखिर किसके कहने पर शपथ ग्रहण समारोह में संघ के नेताओं को नहीं बुलाया गया:

तो क्या प्रधानमंत्री के दबाव में शपथ ग्रहण समारोह में संघ के नेताओं को नहीं बुलाया गया:

नई दिल्ली। राष्ट्रपति भवन में हुए भव्य शपथ ग्रहण समारोह में देश-विदेश के हजारों लोगों को निमंत्रण भेजा गया लेकिन भारतीय जनता पार्टी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं को शपथ ग्रहण समारोह में नहीं बुलाया गया। पहली बार यह परंपरा टूटी है इसके पहले जब भी केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है तो शपथ ग्रहण समारोह जैसे कार्यक्रम में संघ के प्रमुख नेताओं को आदर और सम्मान के साथ आमंत्रित किया गया। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री के दबाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किसी भी नेता को सरकार के शपथ ग्रहण समारोह से दूर रखा गया।

बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी में अब तक का सबसे खराब दौर चल रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उसने इस चुनाव में संघ से कोई मदद नहीं मांगी। हालांकि सॉन्ग ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा उपेक्षा किए जाने के बावजूद दिल्ली में सातों लोकसभा क्षेत्र जितवाने के लिए संघ के 2 लाख से अधिक कार्यकर्ता सक्रिय रहे जिसका परिणाम भी देखने में आ रहा है।

आरएसएस का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ने उसके साथ समन्वय बनाकर काम नहीं किया अन्यथा आज पूर्ण बहुमत की सरकार होती। फिर भी आरएसएस ने बीजेपी को जीत दिलाने की कोशिश की।

किस बात को लेकर है संघ और भाजपा में मतभेद

कहां जा रहा है कि कई ऐसे मुद्दे आए जब सॉन्ग ने केंद्र सरकार को सलाह दी लेकिन संघ की सलाह को केंद्र सरकार ने तवज्जो नहीं दी।

सबसे पहले किसान आंदोलन के समय संघ ने केंद्र सरकार को सलाह दी थी कि किसानों से बातचीत होनी चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन संघ की इस बात का उस समय किसी ने संज्ञान नहीं लिया और ना ही कोई तवज्जो दी।

दूसरी बार अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट के जमीन के घपले घोटाले की खबर सामने आने के बाद जब चित्रकूट में विश्व हिंदू परिषद के नेता संपत राय को चेतावनी दी गई तो यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खराब लगी और उन्होंने चंपत राय को संघ की किसी मीटिंग में न जाने का आदेश सुना दिया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अयोध्या में राम मंदिर को लोकसभा चुनाव के बाद उद्घाटन करने की सलाह दी थी। संघ का कहना था कि इस समय राम मंदिर का उद्घाटन करने को लोग राजनीति से जोड़ेंगे और इसका महत्व कम हो जाएगा इसका लाभ भाजपा को भी नहीं मिलेगा और कई दशक चले इस महान आंदोलन का भी महत्व घट जाएगा लेकिन उनकी इस बात को अनसुनी कर दी गई।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने समय-समय पर महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे पर भी सरकार का ध्यान आकर्षित किया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनके बयान को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया।

लोकसभा चुनाव में संघ और भारतीय जनता पार्टी के बीच के रिश्ते सतह पर आ गए जब जेपी नड्डा ने कहा कि अब भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जरूरत नहीं है। जेपी नड्डा के इस बयान के बाद अधिकांश स्वयंसेवक के घर बैठ गए जिसका सबसे बड़ा असर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश पर पड़ा।

भाजपा से अपने स्वयंसेवक वापस बुला सकता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

संघ मुख्यालय नागपुर से जुड़े सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की ओर से उपेक्षा किए जाने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय जनता पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर काम करने वाले स्वयंसेवकों को वापस संघ में बुला सकता है। भारतीय जनता पार्टी में जिला संगठन मंत्री से लेकर राष्ट्रीय संगठन मंत्री जैसे बड़े पद संघ से आए स्वयंसेवकों के पास होते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही भारतीय जनता पार्टी के लिए पन्ना प्रमुख और अलग-अलग अनुसांगिक संगठनों के माध्यम से विभिन्न जाति वर्गों और समूह में सक्रिय रहता है। अगर संघ के लोग सक्रिय न हो तो भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई भी चुनावी बैतरणी पर करना लगभग असंभव हो जाएगा।

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