बिना शासन की मंजूरी के मनमानी ढंग से दिए गए अतिरिक्त चार्ज:
दिलीप मणि के लिए अवैध रूप से क्रिएट की गई जॉइंट आबकारी आयुक्त शीरा की पोस्ट:
प्रयागराज। आबकारी मुख्यालय में खेल लगातार जारी है। लखनऊ के जॉइंट दिलीप मणि त्रिपाठी को जॉइंट आबकारी आयुक्त शीरा का चार्ज दिया गया है और साथ ही जॉइंट मुख्यालय भी होंगे। दिलीप मणि त्रिपाठी के प्रति यह दरिया दिली अब सवालों के घेरे में है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह बहुचर्चित टपरी शराब कांड में संदेह के दायरे में है। वाराणसी में इनके डिप्टी रहते जौनपुर में बड़ी मात्रा में सहारनपुर के टपरी कोऑपरेटिव सोसाइटी के डिस्टलरी की लाखों रुपए की शराब पकड़ी गई थी और इस संबंध में वर्तमान प्रमुख सचिव ने आबकारी मुख्यालय को एक पत्र लिखकर पर्यवेक्षण अधिकारी के रूप में दिलीप मणि त्रिपाठी की जवाब देही क्यों नहीं तय हुई थी इसको लेकर एक पत्र मुख्यालय को भेजा था लेकिन यहां आबकारी आयुक्त के बेहद नजदीकी इंस्पेक्टर प्रसेन रॉय ने दिलीप मणि त्रिपाठी से लाभान्वित होकर इस पत्र को न केवल दबा दिया बल्कि दिलीप मणि त्रिपाठी की एसीपी और एसीआर में इस प्रकरण की एंट्री नहीं की इसी का फायदा उठाकर दिलीप मणि त्रिपाठी का प्रमोशन जॉइंट पर हो गया। वर्तमान आबकारी आयुक्त की कृपा से ही इनका प्रमोशन हुआ और अब यही कमिश्नर महोदय दिलीप मणि त्रिपाठी पर इस कदर फिदा है कि शीरे महकने का भी जॉइंट बना दिया इतना ही नहीं अब कोई भी मोलासेस से संबंधित पत्रावली एडिशनल कमिश्नर के पास जाने से पहले जॉइंट मोलासेस के टेबल से गुजरेगी जबकि आबकारी पॉलिसी में इस तरह की किसी प्रकार की कोई पोस्टिंग या व्यवस्था नहीं है। कमिश्नर ने ऐसा क्यों किया समझ से परे है। जॉइंट मुख्यालय बना दिया माना जाता है कि जॉइंट मुख्यालय कमिश्नर की नाक का बाल होता है। अब सवाल उठ रहा है कि दिलीप मणि त्रिपाठी पर इतनी मेहरबानी क्यों
तुलसीदास जी ने इस संबंध में कहा है कि
स्वारथ लाइ करें सब प्रीती
दिलीप मणि त्रिपाठी और आबकारी आयुक्त की या दोस्ती इस समय पूरे विभाग में चर्चा का विषय बनी हुई है। मजे की बात यह है कि इस आदेश के लिए प्रमुख सचिव की मंजूरी को भी जरूरी नहीं समझ गया।
विवादित डिप्टी राजेंद्र कुमार भी आबकारी आयुक्त की कृपा
मुख्यालय के डिप्टी आबकारी आयुक्त राजेंद्र कुमार की भी लॉटरी लग गई है यह वही राजेंद्र कुमार हैं जिनकी पत्नी कोटक महिंद्रा में पॉलिसी एजेंट है। इनके बारे में पता चला है कि जो भी आबकारी विभाग का इंस्पेक्टर और अधिकारी मुसीबत में फसता है कोटक महिंद्रा की पॉलिसी ले लेता है और उसका संकट दूर हो जाता है। कोटक महिंद्रा की पॉलिसी खरीद कर लोग विभाग और अपना भला करते रहे । इन्होंने उन लोगों को राहत प्रदान की जिन्होंने पॉलिसी खरीदी। इसकी जांच होनी ही चाहिए। क्या पॉलिसी के बदले डिप्टी कार्मिक द्वारा चार्ज सीट में शिथिलता बरती गई यदि ऐसा हुआ है तो यह एक गंभीर किस्म का घोटाला और अराजकता है इसकी पूरी जवाब दे ही आबकारी मुख्यालय की है।
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