
🔴 अवध भूमि न्यूज़ स्पेशल रिपोर्ट 🔴
लखनऊ में कमिश्नर, इलाहाबाद में निजी सहायक—आख़िर चल क्या रहा है?
यह प्रशासन नहीं, समानांतर सत्ता और वसूली तंत्र का शक़ है
आबकारी विभाग में इन दिनों जो कुछ हो रहा है, वह सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था से कहीं आगे निकल चुका है। लखनऊ में तैनात कमिश्नर, जो न तो अवकाश पर हैं और न ही विधिवत रूप से अनुपस्थित घोषित किए गए हैं, वे मुख्यालय से लगभग गायब हैं। वहीं दूसरी ओर, उनका निजी सहायक अमित अग्रवाल इलाहाबाद मुख्यालय में बैठकर न सिर्फ सक्रिय है, बल्कि आदेश, चेतावनी और दबाव की भूमिका में नजर आ रहा है। यही स्थिति अब पूरे विभाग में भय, असमंजस और सवालों का तूफान खड़ा कर रही है।
❗ सवाल नंबर 1: कमिश्नर मौजूद नहीं, फिर प्रशासन कौन चला रहा है?
नियम स्पष्ट हैं—
कमिश्नर की अनुपस्थिति में या तो
✔️ विधिवत चार्ज किसी वरिष्ठ अधिकारी को सौंपा जाता है
✔️ या लिखित आदेश से कार्य विभाजन होता है
लेकिन यहां न तो चार्ज आदेश सामने है, न ही कोई अधिसूचना। इसके बावजूद फाइलें चल रही हैं, निर्देश दिए जा रहे हैं और लोगों को चेताया जा रहा है। यह स्थिति सीधे-सीधे अराजक प्रशासन की ओर इशारा करती है।
❗ सवाल नंबर 2: निजी सहायक किस हैसियत से आदेश दे रहा है?
निजी सहायक (PS) का कार्य—
➡️ पत्राचार
➡️ शेड्यूल
➡️ गोपनीय कार्यों का समन्वय
तक सीमित होता है।
लेकिन यहां आरोप है कि अमित अग्रवाल—
- निस्तारण योग्य पत्रावलियों पर “निर्देश” दे रहा है
- अधिकारियों-कर्मचारियों को “ऊपर से आदेश” बताकर दबाव बना रहा है
- न मानने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहा है
यह सब पद की मर्यादा और सेवा आचरण नियमों का खुला उल्लंघन है।
❗ सवाल नंबर 3: लखनऊ में कमिश्नर, इलाहाबाद में PS—यह दूरी क्यों?
इलाहाबाद मुख्यालय को लेकर विभागीय सूत्र साफ कहते हैं—
👉 यहां फील्ड से सीधा संपर्क होता है
👉 शराब कारोबारियों और डिस्टलरी प्रतिनिधियों की आवाजाही अधिक रहती है
👉 निगरानी अपेक्षाकृत कम है
यानी यह जगह “ऑपरेशन” के लिए सुविधाजनक है।
ऐसे में सवाल उठता है कि
क्या लखनऊ में बैठकर सीधे सामने आने से बचा जा रहा है और इलाहाबाद से खेल चलाया जा रहा है?
❗ सवाल नंबर 4: डिस्टलरी प्रतिनिधियों से मुलाकातें क्यों?
सूत्रों और कथित सीसीटीवी फुटेज के अनुसार—
कमिश्नर की गैरमौजूदगी में
➡️ डिस्टलरी के लोग
➡️ शराब कारोबार से जुड़े प्रतिनिधि
➡️ बार-बार अमित अग्रवाल से मिलते देखे गए
यदि सब कुछ पारदर्शी है, तो
✔️ ये मुलाकातें कमिश्नर के सामने क्यों नहीं?
✔️ लिखित प्रक्रिया से क्यों नहीं?
यहीं से वसूली और डील का शक गहराता है।
❗ सवाल नंबर 5: ट्रांसफर सीजन खत्म, फिर भी मनपसंद तैनाती कैसे?
ट्रांसफर सीजन समाप्त होने के बाद—
➡️ बिना मुख्यमंत्री कार्यालय की स्पष्ट मंजूरी
➡️ बिना सार्वजनिक आदेश
➡️ टास्क फोर्स जैसी संवेदनशील पोस्ट से हटाकर
अमित अग्रवाल को निजी सहायक बना दिया गया।
जबकि
👉 वह इंस्पेक्टर संपर्क से आया अधिकारी है
👉 उसकी फील्ड पोस्टिंग होनी चाहिए थी
तो सवाल उठता है—
क्या नियम सिर्फ दूसरों के लिए हैं?
❗ सवाल नंबर 6: पुराना विवादित इतिहास, फिर भी भरोसा क्यों?
यह भी कोई रहस्य नहीं कि
अमित अग्रवाल पहले भी मोलासेस और वसूली से जुड़े मामलों में बदनाम रह चुका है।
तो फिर—
👉 क्या यही उसकी “काबिलियत” थी?
👉 क्या इसी वजह से उसे PS जैसी ताकतवर कुर्सी दी गई?
विभागीय गलियारों में यही चर्चा है कि
फील्ड से हटाकर PS बनाना उसे ढाल भी देता है और ताकत भी।
❗ सबसे बड़ा सवाल: कमिश्नर चुप क्यों हैं?
इन तमाम आरोपों, सवालों और चर्चाओं के बावजूद—
❌ कमिश्नर का कोई बयान नहीं
❌ कोई स्पष्टीकरण नहीं
❌ कोई दस्तावेज सार्वजनिक नहीं
यह चुप्पी ही अब सबसे बड़ा संदेह बन चुकी है।
🔥 निष्कर्ष (अवध भूमि न्यूज़)
लखनऊ में कमिश्नर और इलाहाबाद में निजी सहायक—यह प्रशासनिक संयोग नहीं, बल्कि सोची-समझी व्यवस्था प्रतीत होती है।
एक ऐसी व्यवस्था जिसमें—
✔️ फैसले परदे के पीछे हों
✔️ दबाव फ्रंटलाइन पर पड़े
✔️ और जवाबदेही धुंधली रहे
अब सरकार और शासन को तय करना होगा—
क्या यह केवल अफसरशाही की अराजकता है,
या फिर आबकारी विभाग में वसूली और सेटिंग का संगठित तंत्र?
क्योंकि अगर अब भी जवाब नहीं आए,
तो यह सवाल और तेज होगा—
क्या विभाग नियमों से नहीं, ‘निजी सहायकों’ से चल रहा है?




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