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मोडवेल के खेल में फसी  शराब कंपनी और आबकारी विभाग:

लखनऊ। आबकारी विभाग की तकनीकी सेवा में अवैध रूप से तैनाती पाने के बाद सहायक आबकारी आयुक्त सन्दीप मोडवेल ने एक से बढ़कर एक हैरान करने वाले कारनामे किए हैं। पता चला है कि उन्होंने गोरखपुर स्थित आईजीएल डिस्टलरी की 200 kl तक उत्पादन क्षमता वृद्धि के लिए लाइसेंस निर्गत करने की तकनीकी मंजूरी जारी कर दी जबकि डिस्टलरी की शराब उत्पादन क्षमता वृद्धि की मंजूरी का अधिकार शासन को है। यही मामला विभाग के गले की फांस बन गया है। आईजीएल प्रदेश की अग्रणी देसी शराब उत्पादन करने वाली डिस्टीलिटी है। यह भी तथ्य सामने आया है कि सन्दीप मोडवेल नॉन टेक्निकल सहायक आबकारी आयुक्त हैं और वह तकनीकी रूप से इतनी दक्ष नहीं है कि किसी डिस्टलरी की उत्पादन क्षमता वृद्धि जैसी पत्रावली के लिए अपनी आख्या रख सके और डिस्टलरी का मुआयना कर सकें। सबसे बड़ा ब्लेंडर यह हुआ है कि यह पत्रावली अपने फर्जीवड़े तथा फर्जी पत्रावली बनाकर वसूली करने वाले विवादित लिपिक अनिल यादव जिसके माध्यम से तकनीकी विभाग में वसूली का काम होता है उसने ही आईजीएल की फर्जी पत्रावली तैयार की व तथाकथित प्राविधिक अधिकारी यानी सन्दीप मोडवेल जिन्होंने डिस्टलरी का कभी कोई निरीक्षण ही नहीं किया फिर भी अपनी तकनीकी रिपोर्ट तथा संस्तुति   के साथ कमिश्नर को प्रस्तुत की। यह भी तथ्य सामने आया है कि शराब कंपनी ने 200 kl अतिरिक्त शराब उत्पादन के लिए  फर्मेंटर और रिसीवर और स्टोरेज की व्यवस्था ही नहीं की अर्थात  इस पर कोई निवेश ही नहीं किया फिर भी उसको 200 किलो लीटर अतिरिक्त उत्पादन क्षमता वृद्धि की तकनीकी मंजूरी दे दी गई। मामला हाइलाइट होने के बाद अब डिस्टलरी प्रबंधन से इसकी शासन से मंजूरी लेने के लिए आवेदन करने को कहा गया है। डिस्टलरी हैरान और परेशान है क्योंकि तकनीकी मंजूरी में उसकी जमकर शोषण किया गया और जब अब बात नहीं बनी तो उसे शासन की मंजूरी के लिए कहा जा रहा है। इसका मतलब जब तक डिक्शनरी  फर्मेंटर और रिसीवर नहीं लगा लेती  वह शासन में कैसे जाएं। एक सवाल और खड़ा हो रहा है कि कमिश्नर जानते थे कि किसी भी डिस्टलरी की उत्पादन क्षमता वृद्धि की मंजूरी शासन से मिलती है तो उन्होंने अपने स्तर से यह लाइसेंस कैसे निर्गत किया। फिलहाल यदि इस मामले की जांच होगी तो कमिश्नर समेत कई अधिकारी नप जाएंगे।

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