
लखनऊ। प्रवर्तन कार्य को सुदृढ़ बनाने के नाम पर एक बड़ा खेल हो गया है। बताया जा रहा है कि विभाग के प्रवर्तन दायित्व को सुदृढ़ और प्रभावी बनाने के लिए उत्तर प्रदेश को दो भागों में बांट दिया गया है। पूर्वी भाग का दायित्व दिलीप मणि त्रिपाठी को जिसमें वाराणसी गोरखपुर और लखनऊ जोन शामिल है इसका दायित्व उन दिलीप मणि त्रिपाठी को दिया गया है जो टपरी शराब कांड में संदेह के दायरे में है और जिनके डिप्टी एक्साइज कमिश्नर वाराणसी रहते हुए करोड़ों रुपए की अवैध शराब जौनपुर में बेची गई और इनके स्तर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। पश्चिमी जोन का दायित्व जॉइंट स्कंद सिंह को दिया गया जिन पर गंभीर मामले चल रहे थे और कई सालों तक उन्हें साइड लाइन रखा गया था।

क्यों उठ रहे हैं सवाल:
जानकारों का मानना है कि आबकारी आयुक्त द्वारा जारी या आदेश व्यावहारिक नहीं लग रहा है ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि जारी आदेश में उत्तर प्रदेश में आबकारी के प्रवर्तन विभाग को सुदृढ़ बनाने की बात कही गई लेकिन यह बात गले से नहीं उतर रही है कि अगर 6 जोन के जॉइंट एक्साइज कमिश्नर यह दायित्व नहीं निभा पा रहे हैं तो फिर दो जॉइंट एक्साइज कमिश्नर वह भी ऐसे जॉइंट एक्साइज कमिश्नर जो शराब माफियाओं के दोस्त हैं वह भला प्रवर्तन दायित्व को और सुदृढ़ कैसे कर सकते हैं। आबकारी आयुक्त द्वारा जारी आदेश के हिसाब से तो ऐसा प्रतीत होता है की जॉइंट ईआइबी की पोस्ट समाप्त कर दी गई है। अगर यह पोस्ट समाप्त कर दी गई तो क्या इसकी कैबिनेट से मंजूरी ली गई है और सबसे बड़ी बात यह की क्या इतने बड़े फैसले में मंत्री जी का अनुमोदन प्राप्त हुआ है।
कहीं यह गोपनीय फंड लूटने का तो प्लान नहीं:
विभाग के जानकार लोगों का मानना है कि प्रवर्तन को दो भागों में बांटने का उद्देश्य शराब माफियाओं से निपटने का उद्देश्य कम लेकिन प्रवर्तन कार्य के लिए जारी होने वाले हर महीने करोड़ों रुपए के फंड की लूट का मामला ज्यादा समझ में आता है। गोपनीय फंड पूरी तरह से आबकारी आयुक्त का एटीएम बन चुका है ऐसा कहा जा रहा है कि यह रकम सर्कल लेवल तक नहीं जा रही है बल्कि मुख्यालय पर ही बंदर बांट हो जा रहा है। चर्चा के मुताबिक प्रतिमाह प्रवर्तन कार्य के लिए करोड़ों रुपए आता है और कमिश्नर और उनके करीबी लोगों के बीच बट जाता है। पूर्व जॉइंट एक्साइज कमिश्नर ईआईबी जैनेंद्र उपाध्याय जब तक अपने पोस्ट पर थे इस फंड के बंदर बांट में कोई दिक्कत नहीं होती थी लेकिन उनके रिटायर होने के बाद आबकारी आयुक्त को कुछ दिक्कत होने लगी और उन्होंने इस फंड को पहले की तरह बिना किसी अड़चन के उपभोग करने के लिए अपने चमचों को महत्वपूर्ण दायित्व दे दिया है। गोपनील फंड लगभग वर्ष में 10 से 12 करोड़ रूपया आता है जिसका कभी ऑडिट नहीं कराया जा रहा है। यह पूरी रकम बंदर बांट कर ली जाती है।
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