लालगंज, प्रतापगढ़। राज्यसभा मे विपक्ष के उपनेता, वरिष्ठ कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने नये संसद भवन के प्रधानमंत्री के द्वारा उदघाटन को लेकर कांग्रेस समेत विपक्षी दलो के विरोध के कदम को राष्ट्रपति पद की गरिमा तथा लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा एवं भारतीय संसद के अपमान को बचाने के लिए उठाया गया सशक्त कदम है। उन्होनें कहा कि कांग्रेस सहित टीएमसी, आप, जेडीयू, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, शिवसेना (उद्धव), झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, सीपीएम, सीपीआई, आरजेडी आदि उन्नींस दलों द्वारा संसद भवन के उदघाटन करने के प्रधानमंत्री को तानाशाहीपूर्ण निर्णय के खिलाफ समारोह के बहिष्कार का ऐलान संसदीय मान्यताओ व परम्पराओं की गरिमा की रक्षा के लिए ही लिया गया निर्णय है। राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने कहा कि विपक्षी दल समारोह का इसलिए बहिष्कार कर रहे हैं ताकि यह दल नही चाहते कि संविधान और संसद की गरिमा को नष्ट करने में इन दलों की जरा सा भी साझीदारी या भागीदारी अथवा मूकदर्शक बने रहने की असहज स्थिति सामने आये। उन्होने कहा कि राष्ट्रपति संसद और संविधान के संरक्षक तथा वह देश के संवैधानिक मुखिया है। प्रमोद तिवारी ने कहा है कि राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री को मनोनीत करके शपथ दिलाते हैं और वहीं संसद द्वारा पारित कानूनों को मान्यता देने के साथ साल मे पहली बार लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों सदनों को समवेत संबोधित किया करते हैं। वरिष्ठ सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के हाथों नए संसद भवन का उदघाटन न कराना देश में एक महिला तथा आदिवासी व दलित समुदाय की राष्ट्रपति को उपेक्षित कर महिलाओं तथा दलितों व आदिवासियों की भी भावनाओं का सीधा सीधा अपमान किया जाना है। विपक्ष के उपनेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि जिस सदन को यह अधिकार है नियम बनाये और संविधान मे संशोधन करे किन्तु वह तब तक कानून का रूप नही ले सकता जब तक उसे राष्ट्रपति स्वीकृत नही कर दें। तब ऐसे में भी जब प्रधानमंत्री एक दल विशेष का होता है और राष्ट्रपति देश के प्रथम नागरिक होते हैं, कानून निर्मात्री संसद के भवन का उदघाटन राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप राष्ट्रपति से ही कराया जाना चाहिए। उन्होनें कहा कि प्रधानमंत्री नए संसद भवन का सारा श्रेय खुद लेने में संविधान तथा परम्पराओं की इस कदर अवहेलना करा रहे हैं कि देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के दलित होने के कारण उनसे भी संसद भवन का शिलान्यास नही कराया गया। राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता प्रमोद तिवारी ने उदघाटन समारोह में एक तरफ लोकसभा अध्यक्ष को विधिविधान से आसीन किये जाने और वहीं दूसरी तरफ राज्यसभा के सभापति को न तो आमंत्रित करने और न ही उन्हें बैठाये जाने की व्यवस्था करने पर भी कडी प्रतिक्रिया मे कहा कि यह भी सर्वोच्च सदन का अपमान है। उन्होने कहा कि संविधान के अनुसार राज्यसभा के सभापति प्रोटोकाल मे लोकसभा अध्यक्ष से ऊपर होते हैं। श्री तिवारी ने यह भी तंज कसा कि प्रधानमंत्री के संसद भवन के उदघाटन में लोकसभा अध्यक्ष को भी मात्र बैठाये रखने का प्राविधान किया जाना लोकसभा और अध्यक्ष की गरिमा के खिलाफ है। उन्होने लोकतांत्रिक प्रणाली मे संसदीय मान्यताओं व परम्पराओं को अपमानित करने के सत्तारूढ़ दल के इस प्रयास को सफल न होने देने के लिए विपक्ष के उपनेता के रूप मंे सभी राजनैतिक दलों से राष्ट्रपति एवं उप राष्ट्रपति की गरिमा की मजबूती बनाए रखने के लिए उदघाटन समारोह के बहिष्कार का भी आहवान किया है। मीडिया प्रभारी ज्ञानप्रकाश शुक्ल के हवाले से बुधवार को यहां जारी बयान में प्रमोद तिवारी ने भाजपा की इस दलील को सिरे से खारिज किया है कि पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों द्वारा किसी लाइब्रेरी अथवा एनेक्सी जैसे कार्यालय के उदघाटन की तुलना भारतीय संसद के उदघाटन से भाजपा जोड़ रही है। उन्होनें देश के गृहमंत्री को यह सलाह दी है कि वह पीएम को परामर्श दे कि वह अपने निर्णय पर पुर्नविचार करे और यह उदघाटन समारोह एक दिन पूर्व पं. नेहरू की पुण्यतिथि अथवा गांधी जी या सरदार पटेल अथवा अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर आयोजित कर इसे यादगार बना सकते है। वहीं राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में देश की उन चार बेटियों जिन्होने प्रथम द्वितीय तथा तृतीय व चतुर्थ स्थान हासिल किया है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की देश में चौथा स्थान हासिल करने वाली बेटी को बधाई देते हुए इस सफलता को इन्दिरा गांधी के महिला सशक्तीकरण के नारे के लिए गर्व का क्षण करार दिया है। उन्होने यूपीएससी मे गृह जनपद प्रतापगढ़ के रानीगंज तहसील क्षेत्र के बसीरपुर गांव के मेधावी अनिरूद्ध पाण्डेय की सफलता को भी सराहते हुए इसे बेल्हा की मेधाशक्ति की एक और स्वर्णिम सफलता कहा है। वहीं राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने आस्टेªलिया दौरे से पीएम मोदी के स्वदेश वापसी के बाद जतायी गयी प्रतिक्रिया में कहा कि पिछले कुछ दिनों से आस्टेªलिया की धरती पर मन्दिरों एवं उनकी मूर्तियों को खण्डित किया जा रहा है और भारतवासियों विशेषकर वहां हिन्दुओं पर अकारण हिंसक हमले हो रहे है, इस पर आस्टेªलियाई प्रधानमंत्री द्वारा देश के प्रधानमंत्री को संयुक्त पत्रकार सम्मेलन में कोई आश्वासन न देने पीएम की आस्टेªलियाई यात्रा की सबसे बड़ी विफलता कहा है। उन्होने कहा कि आस्टेªलिया मे खालिस्तान की हिंसक गतिविधियों का भी वहां से संचालन होना चिंताजनक है। श्री तिवारी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि उन्होने इस मसले पर आस्टेªलिया के प्रधानमंत्री का ध्यान आकृष्ट कराया है फिर भी वहां के प्रधानमंत्री का इन मसलों पर भारत को सार्वजनिक आश्वासन न मिलना देश के लिए निराशाजनक है।
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