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गन्ना संस्थान में आबकारी विभाग के कैंप कार्यालय में बिना किसी आदेश के आबकारी विभाग के कई कार्यालय स्थानांतरित :

लखनऊ। आबकारी विभाग पिछले कई वर्षों से गन्ना संस्थान में  कैंप कार्यालय चला रहा है लेकिन अब विभाग की मुश्किल बढ़ने वाली है। ताजा जानकारी के मुताबिक 12 राणा प्रताप मार्ग स्थित गन्ना संस्थान के प्रथम द्वितीय और तृतीय तल  पर आबकारी आयुक्त कैंप कार्यालय  कथित रूप से किराए पर चल रहा है। कैंप कार्यालय में प्रथम तल पर कमिश्नर द्वितीय तल पर आबकारी विभाग का टास्क फोर्स और तीसरे तल पर अन्य अधिकारी बैठते हैं मतलब मुख्यालय के सारे अधिकारी अवैध रूप से चल रहे इसी कैंप कार्यालय पर बैठ रहे हैं। मजे की बात यह है कि किराया आबकारी विभाग को चुकाना है लेकिन एक निजी कंपनी ओएसिस को आबकारी आयुक्त की कृपा से यहां एक फ्लोर में   जगह दी गई है। गन्ना संस्थान में आबकारी आयुक्त का कैंप कार्यालय में  आबकारी विभाग के कई कार्यालय जो प्रयागराज से स्थानांतरित हैं उन्हें इसलिए फर्जी बताया जा रहा है क्योंकि इसके   लिए आज तक कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिली बावजूद इसके पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी जो गन्ना और चीनी तथा आबकारी विभाग के प्रमुख सचिव थे उन्होंने अपनी दबंगई से गन्ना संस्थान में आबकारी आयुक्त का कैंप कार्यालय में आबकारी मुख्यालय के कई विभागों को बिना लिखित आदेश शिफ्ट कर दिया । राज्य संपति विभाग ने  जब इसका संज्ञान लिया तो बताया गया कि गन्ना संस्थान की यह बिल्डिंग किराए पर दी गई है। किराया तय होने के बाद अभी तक 3 करोड़ 78 लाख रुपया इस बिल्डिंग पर बकाया है। नियम अनुसार गन्ना संस्थान को आबकारी विभाग से यह किराया वसूल करना है लेकिन मुश्किल यह है कि इस बिल्डिंग को किराए पर लेने के लिए आबकारी विभाग ने प्रस्ताव कैबिनेट से मंजूर नहीं कराया है। यही किराया अब विभाग के गले की  फ़ांस बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि विभाग के पास पैसे की कोई कमी है विभाग के सामने सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि इस बिल्डिंग को किराए पर लेने के लिए कभी भी शासन और कैबिनेट स्तर से मंजूरी मिली या  नहीं इसका ठोस जवाब देने से विभाग हमेशा बचता रहा है । ऐसे में गन्ना संस्थान और आबकारी विभाग दोनों फंसे हुए हैं। गन्ना संस्थान भी बिना कैबिनेट मंजूरी के आबकारी आयुक्त को यहां कैंप कार्यालय बनाने की अनुमति दे दी और आबकारी विभाग इसलिए फस गया है क्योंकि आबकारी विभाग ने भी  बिना कैबिनेट मंजूरी के आबकारी मुख्यालय से अपने तमाम कार्यालय लखनऊ स्थित गन्ना संस्थान की आबकारी आदित्य कैंप कार्यालय में शिफ्ट कर दिया। घर राजस्व विभाग तथा राज्य संपति विभाग के ऑडिट में यह मामला फंसा हुआ है।

बिना कैबिनेट की मजबूरी के गन्ना आबकारी विभाग को अपनी बिल्डिंग में आबकारी आयुक्त का कैंप कार्यालय बनाने की अनुमति देना और आबकारी विभाग द्वारा बिना शासन की लिखित मंजूरी के अपने तमाम कार्यालय यहां स्थानांतरित कर देना ऐसा मामला है जिसकी जांच होने के बाद पूर्व प्रमुख सचिव और कमिश्नर तथा वर्तमान कमिश्नर की फजीहत होना सुनिश्चित है। 3 करोड़ 78 लख रुपए का बकाया नहीं देने की स्थिति में गन्ना संस्थान आबकारी आयुक्त के कैंप कार्यालय पर ताला जड़ सकता है। इस कैंप कार्यालय की स्थापना संबंधी पत्रावली कि यदि जांच की गई तो पूर्व प्रमुख सचिव समेत एक पूर्व आबकारी आयुक्त वह वर्तमान आबकारी आयुक्त पर भी  गाज गिर सकती है ।

आखिर किस शासनादेश से आबकारी मुख्यालय छोड़कर कैंप कार्यालय में बैठ रहे हैं कमिश्नर और एडिशनल कमिश्नर:

एक और अहम  सवाल यही है कि आखिर वह कौन सा शासनादेश है जिसके अंतर्गत आबकारी मुख्यालय के तमाम विभाग जिसमें स्टैटिक टेक्निकल टास्क फोर्स ईआईबी शामिल है उनको लखनऊ स्थित कैंप कार्यालय स्थानांतरित किया गया।

हजारों रुपए की रोज फिजूल खर्ची:

क्योंकि एडिशनल कमिश्नर और कमिश्नर दोनों आबकारी मुख्यालय छोड़कर लखनऊ में रहते हैं तो फिर इनको हाउस अलाउंस क्यों दिया जाता है और दूसरी बात एडिशनल कमिश्नर और कमिश्नर आबकारी प्रकरण की जब सनी लखनऊ में करते हैं तो आबकारी मुख्यालय से एक गाड़ी में पत्रावली प्रतिदिन लखनऊ जाती है और आती है जिस पर हजारों रुपए का रोज खर्च होता है आखिर इस खर्च पर ऑडिट ऑब्जेक्शन क्यों नहीं हुआ। इसके अलावा बहुत से गोपनीय रिकॉर्ड लेकर कर्मचारी लखनऊ जाते हैं ऐसे में क्या उन्हें पत्रावली गायब कर देने या कुछ हेरा फेरी करने का मौका नहीं लग जाता। सबसे अहम सवाल यह है कि एडिशनल कमिश्नर और कमिश्नर जिनकी आबकारी विभाग में मूल पोस्टिंग है वह मुख्यालय में क्यों नहीं बैठ रहे हैं और उनके सुख सुविधा पर सरकार करोड़ों रुपया लखनऊ में अनावश्यक क्यों लुटा रही है।

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