अवधभूमि

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नई दिल्ली। पिछले 9 वर्षों से केंद्र सरकार हजारों करोड़ का इवेंट आयोजित कर हमें यह समझने की कोशिश करती रही कि मोदी सरकार आने के बाद दुनिया भर में हमारी धाक बढ़ी है। अभी हाल ही में जी-20 सम्मेलन में सरकार ने अपनी कामयाबियों के कसीदे पढ़े और हजारों करोड रुपए लूट दिए। इसी बीच एक खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के मामले में कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगा दिया इसके बाद कनाडा और भारत के रिश्ते बेहद तल्ख हो गये। कनाडा ने भारतीय उच्च आयोग के वरिष्ठ सदस्य को कनाडा छोड़ने का आदेश दिया जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत में भी ऐसा ही किया लेकिन इस मामले में भारत को तब बड़ा झटका लगा जब दुनिया भर में उसके सबसे विश्वसनीय और गहरे मित्र राष्ट्रों ने उससे पल्ला झाड़ लिया। ऑस्ट्रेलिया अमेरिका ब्रिटेन फ्रांस इटली जर्मनी हॉलैंड डेनमार्क न्यू जीलैंड और g20 के सभी देशों ने भारत से किनारा किया और कनाडा के सुर में सुर मिलाया। इस स्थिति के बाद भारत की विदेश नीति की विश्व मंच पर तथा कथित रुतबे की पोल खुल गई। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी समर्थक मीडिया पूरे देश में यह प्रोपेगेंडा कर रही थी कि मोदी के आने के बाद पूरी दुनिया में भारत की ताकत बड़ी है और बड़े राष्ट्र भारत की बात सुनने को मजबूर हुए हैं लेकिन कनाडा से विवाद के बाद इस दावे की हकीकत सामने आ गई है। अमेरिका ने जहां कनाडा का खुलकर साथ दिया है वहीं ऑस्ट्रेलिया-न्यू हॉलैंड डेनमार्क फ्रांस इटली जर्मनी नीदरलैंड जैसे राष्ट्र जिसे भारत का बेहद नजदीकी संबंध है उनके सुर भारत के खिलाफ हो गए हैं। लगभग सभी देशों ने कनाडा का समर्थन करते हुए कनाडा के आरोपी की जांच के लिए भारत पर दबाव बढ़ा दिया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल या उठ रहा है कि आखिर पिछले 9 सालों में विदेश नीति के मोर्चे पर भारत ने क्या किया।

रूस ने भी दिया भारत को झटका

एशिया और पूरी दुनिया में भारत का एकमात्र विश्वसनीय सहयोगी सुपर पावर रूस में भी इस मामले में भारत को झटका दिया है। वह भी तब जब भारत इस समय रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बना हुआ है। रूस ने इस मामले में तब भी भारत का साथ नहीं दिया है जबकि वह संकट की घड़ी में रूस की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ रखने में बड़ी मदद किया है। आज भी रूस से गैस और तेल का सबसे बड़ा आयातक देश भारत ही है।

निर्गुट मंच से अलग होने का नुकसान उठा रहा भारत

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐसी ही कठिन परिस्थिति से निपटने के लिए निर्गुट मंच का गठन किया था। जब शीत युद्ध के दौरान पूरी दुनिया रूस और अमेरिका समर्थक लॉबी में बट गई थी उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मध्य मार्गी रास्ता अपनाते हुए इस मंच का गठन किया जिसमें दुनिया के करीब 98 देश शामिल हो गए थे। जब भारत ने निर्गुट आंदोलन का नेतृत्व किया तो अमेरिका और रूस दोनों ही भारत की ताकत को बखूबी समझने लगे और दोस्ती के लिए बाहें पसारने लगे। निर्गुट मंच का लाभ भारत को उसे समय मिला जब भारत का पाकिस्तान से युद्ध हुआ।

फिलहाल भारत की विदेश नीति सवालों के घेरे में है और दुनिया भर में हमारा डंका बजाने का जो दावा किया जा रहा था इस विवाद के बाद उसकी पोल खुल गई है।

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