अवधभूमि

हिंदी न्यूज़, हिंदी समाचार


📰 आबकारी आयुक्त का आदेश बना विवाद – वेतन वृद्धि रोकने का फैसला कर्मचारियों के भविष्य पर भारी

प्रयागराज, 15 सितम्बर।
आबकारी आयुक्त कार्यालय से जारी ताज़ा आदेश ने विभागीय कर्मचारियों और अधिकारियों में हलचल मचा दी है। आदेश में वित्तीय नियमावली संहिता खंड-2 भाग (ii-iv) के नियम-24 का हवाला देते हुए कहा गया है कि यदि किसी कर्मचारी की सेवा “संतोषजनक” नहीं है, तो उसकी वार्षिक वेतन वृद्धि रोकी जाएगी। इसी आधार पर एक आबकारी सिपाही की वेतन वृद्धि तत्काल प्रभाव से रोक दी गई है।


📌 आदेश का मूल

  • आदेश पर हस्ताक्षर आबकारी आयुक्त, उत्तर प्रदेश (प्रयागराज) (श्री आदर्श सिंह) द्वारा किए गए हैं।
  • इसमें नियम-24 का हवाला देते हुए कहा गया है कि विभाग को यह अधिकार है कि वह असंतोषजनक सेवाओं वाले कर्मचारी की इन्क्रिमेंट रोक सकता है।
  • आदेश की प्रतियां वित्त विभाग, महालेखाकार, उप आबकारी आयुक्त और संबंधित सिपाही को भेजी गई हैं।

⚖️ आदेश पर सवाल

इस आदेश को लेकर विभागीय कर्मचारियों में गहरी नाराज़गी है।

  1. अस्पष्ट आधार – आदेश में यह कहीं स्पष्ट नहीं है कि कर्मचारी की सेवा किन बिंदुओं पर असंतोषजनक पाई गई।
  2. मनमानी की संभावना – “संतोषजनक कार्य” जैसा शब्द बेहद सामान्य और अधिकारी के विवेक पर निर्भर है, जिससे पक्षपात और मनमानी का खतरा बढ़ जाता है।
  3. भविष्य पर असर – वार्षिक वेतन वृद्धि रुकने से कर्मचारी की सैलरी, प्रमोशन और पेंशन तीनों प्रभावित होंगे।
  4. पारदर्शिता का अभाव – बिना विभागीय जांच या लिखित कारण बताए इस तरह का आदेश सेवा सुरक्षा के सिद्धांतों के खिलाफ है।

👥 कौन-कौन प्रभावित होंगे?

यह आदेश सिर्फ एक सिपाही तक सीमित नहीं है। इसके व्यापक असर होंगे –

  • सिपाही और मुख्य आरक्षी वर्ग – सबसे ज्यादा प्रभावित, क्योंकि उन पर प्रत्यक्ष दबाव बनेगा।
  • निरीक्षक और उप-निरीक्षक वर्ग – आदेश उन पर भी लागू हो सकता है, जिससे संगठनात्मक नेतृत्व पर दबाव बढ़ेगा।
  • उच्च अधिकारी वर्ग – भले ही आदेश उनके खिलाफ तुरंत लागू न हो, लेकिन यह संदेश साफ है कि सभी स्तरों पर सेवाएं जांच के घेरे में रहेंगी।

🔥 कर्मचारियों की प्रतिक्रिया

कर्मचारी संगठनों का मानना है कि आदेश पूरी तरह तानाशाही है।

  • एक वरिष्ठ कर्मचारी नेता ने कहा – “अगर इन्क्रिमेंट रोकने जैसे कठोर फैसले बिना जांच और ठोस कारण बताए लिए जाएंगे तो विभाग में भय और असंतोष का माहौल पैदा होगा।”
  • कर्मचारियों का यह भी कहना है कि यह कदम ईमानदार कर्मचारियों को भी अधिकारियों की व्यक्तिगत नाराज़गी का शिकार बना देगा।

🏛️ निरीक्षक संगठन के सामने बड़ी चुनौती

इस आदेश से सबसे ज्यादा दबाव आबकारी निरीक्षको के नवगठित संगठन के अध्यक्ष और कार्यकारिणी पर पड़ा है। आबकारी निरीक्षक शैलेंद्र तिवारी जैसे लोग जो कमिश्नर के सम्मान की लड़ाई लड़ रहे थे और एक न्यूज़ पोर्टल को निशाना बना रहे थे उनको भी अब जवाब देना पड़ेगा। क्या आबकारी आयुक्त ने ऐसे ही लोगों के राय पर यह फैसला किया है। फिलहाल आबकारी निरीक्षक संवर्ग के लिए यह किसी काला कानून से कम नहीं है।

  • संगठन को अपने सदस्यों के हित में मोर्चा खोलना होगा क्योंकि आदेश सीधे-सीधे उनके भविष्य और सेवा सुरक्षा से जुड़ा है।
  • संगठन के सामने यह चुनौती होगी कि वे इस आदेश को या तो उच्च स्तर पर चुनौती दें या इसके खिलाफ ठोस रणनीति तैयार करें।
  • यदि संगठन चुप रहता है तो उसकी साख कर्मचारियों के बीच गिर सकती है और यह संदेश जाएगा कि नेतृत्व अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करने में नाकाम है।

⚡ आलोचना

विश्लेषकों का मानना है कि आबकारी आयुक्त का यह आदेश कर्मचारियों को अनुशासन में लाने की बजाय डर और असंतोष का माहौल बनाएगा।

  • यह निर्णय विभाग की लोकतांत्रिक और पारदर्शी कार्यप्रणाली के खिलाफ है।
  • इससे कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच का विश्वास कमजोर होगा।
  • यह कदम भ्रष्टाचार और दबाव की राजनीति को और बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि अधिकारी “संतोषजनक” की परिभाषा अपने हिसाब से गढ़ सकते हैं।

✍️ निष्कर्ष

आबकारी आयुक्त का यह आदेश केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं है, बल्कि विभागीय राजनीति और कर्मचारी-नेतृत्व के लिए अग्निपरीक्षा जैसा है। यह आदेश आने वाले दिनों में कर्मचारी आंदोलन, संगठनात्मक टकराव और कानूनी लड़ाई का कारण बन सकता है। अब सबकी नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि निरीक्षक संगठन और उसकी कार्यकारिणी इस चुनौती का सामना कैसे करती है।


About Author