
लखनऊ। आबकारी विभाग ने पूर्व जॉइंट एक्साइज कमिश्नर जीसी मिश्रा और पूर्व एडिशनल कमिश्नर लाइसेंस हरिश्चंद्र श्रीवास्तव को विभाग नहीं बल्कि माफियाओं की मदद के लिए चोर दरवाजे से तैनाती दी है। चोर दरवाजा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इन दोनों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन नही हुआ। सवाल उठ रहा है कि यदि आबकारी विभाग ने सीधे संविदा पर नियुक्ति की तो इसके लिए वैकेंसी समाचार पत्रों में क्यों नहीं जारी की गई। विभाग यह नहीं बता पा रहा है कि संविदा के लिए कितने लोगों ने आवेदन किया यदि संविदा पर नियुक्ति की गई तो इस संबंध में विभागीय मंत्री का अनुमोदन लिया गया या नहीं। कुल मिलाकर विज्ञापन और नियुक्ति प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में है।
यदि उपरोक्त दोनों लोगों की नियुक्ति जेम पॉर्टल से हुई तो इन प्रश्नों का जवाब आबकारी विभाग को हर हाल में देना होगा।
1- हरिश्चंद्र श्रीवास्तव और जीसी मिश्रा की किस पद पर तैनाती हुई तथा इनकी नियुक्ति प्रस्ताव शासन में भेजने की संस्तुति करने वाले विभगीय अधिकारी तथा शासन में मंजूरी देने वाले अधिकारी कौन थे।
2- आबकारी विभाग को यह बताना होगा कि हरिश्चंद्र श्रीवास्तव और जीसी मिश्रा जी पद पर कार्यरत हैं उसकी वित्त विभाग से कोई मंजूरी है या नहीं। यह पद शासन स्तर का है तो क्या इस पद पर नियुक्ति के प्रस्ताव को विभगीय मंत्री का अनुमोदन है या नही।
3- यदि जेम पोर्टल से तैनाती की गई तो इस संबंध में विज्ञापन कब जारी किया गया।
4- नियुक्ति प्रक्रिया के लिए क्या कोई समिति गठित की गई थी। यदि हां तो कमेटी में शामिल अधिकारियों का नाम भी सार्वजनिक करना चाहिए।
5- यह भी बताना चाहिए कि उक्त पदों के लिए कितने लोगों ने आवेदन किया और लोगों की पात्रता निरस्त की गई और इसका कारण क्या रहा।
6- एक और अहम सवाल यह है कि वर्तमान में हरिश्चंद्र श्रीवास्तव और जीसी मिश्रा को किस मद से भुगतान किया जा रहा है।
जब तक इन सवालों के जवाब सामने नहीं आ जाते विभाग और दोनों संविदा कर्मी सलाहकार सवालो के घेरे में रहेंगे।
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