
अवध भूमि विशेष | आबकारी विभाग में नियमों की खुली अवहेलना
लखनऊ/प्रयागराज।
उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग में प्रशासनिक प्रक्रिया को मज़ाक बना दिए जाने का एक बेहद गंभीर और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। 15 मई 2024 को कमिश्नर के कैम्प कार्यालय में चार आबकारी निरीक्षकों से जुड़े प्रकरण की सुनवाई स्वयं आबकारी आयुक्त डॉ. आदर्श सिंह ने की थी, लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया।
सुनवाई के उपरांत प्रकरण की पत्रावली की नोटशीट आबकारी निरीक्षक शैलेंद्र कुमार तिवारी द्वारा तैयार की गई, जबकि
उनकी तैनाती थोक अनुज्ञापन (Wholesale License) प्रयागराज में है,
और सबसे अहम बात—उन्हें यह नोटशीट तैयार करने का कोई लिखित या मौखिक आदेश ही नहीं था।
सुनवाई किसकी, नोटशीट किसकी?
सूत्रों के अनुसार—
चार आबकारी निरीक्षकों के प्रकरण की सुनवाई आबकारी आयुक्त डॉ. आदर्श सिंह ने स्वयं की,
लेकिन सुनवाई के बाद तैयार होने वाली आधिकारिक नोटशीट एक ऐसे निरीक्षक ने लिख दी,
जो
न तो इस प्रकरण से अधिकृत था,
न ही सुनवाई शाखा से संबद्ध था,
और न ही उसकी तैनाती ऐसी प्रक्रिया की अनुमति देती है।
यानी निर्णय एक अधिकारी का और दस्तावेज़ किसी दूसरे, अनधिकृत अधिकारी का—यह सीधे-सीधे प्रशासनिक अराजकता का उदाहरण है।
मामला क्यों है अत्यंत गंभीर
यह प्रकरण केवल प्रक्रिया की त्रुटि नहीं, बल्कि कानूनन गंभीर अनियमितता है—
बिना आदेश नोटशीट लिखना गंभीर कदाचार
सरकारी पत्रावली पर बिना प्राधिकरण नोटशीट तैयार करना सेवा नियमों का खुला उल्लंघन है।
सुनवाई की निष्पक्षता पर सवाल
जब नोटशीट लिखने वाला अधिकारी ही अधिकृत नहीं है, तो यह संदेह पैदा होता है कि
क्या नोटशीट में वही दर्ज है जो आयुक्त ने कहा?
या फिर उसमें मनमाने ढंग से तथ्यों को मोड़ा गया?
पूरी कार्यवाही की वैधानिकता संदिग्ध
ऐसी नोटशीट के आधार पर पारित कोई भी आदेश न्यायालय में टिक नहीं पाएगा।
प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन
प्रभावित पक्ष को यह जानने का अधिकार है कि
सुनवाई किसने की
और निर्णय का दस्तावेज़ किसने और किस अधिकार से तैयार किया।
आबकारी आयुक्त डॉ. आदर्श सिंह की जिम्मेदारी
इस पूरे प्रकरण में आबकारी आयुक्त डॉ. आदर्श सिंह की भूमिका भी सवालों के घेरे में है—
यदि सुनवाई आयुक्त ने की, तो
नोटशीट किसी अनधिकृत निरीक्षक से क्यों लिखवाई गई?
क्या यह प्रशासनिक लापरवाही है
या फिर अधीनस्थ अधिकारियों को नियम तोड़ने की खुली छूट?
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में उत्तरदायित्व से बचा नहीं जा सकता।
क्या कार्रवाई होनी चाहिए
प्रशासनिक जानकारों के अनुसार—
15 मई 2024 की पूरी पत्रावली की स्वतंत्र जांच
बिना आदेश नोटशीट तैयार करने पर शैलेंद्र कुमार तिवारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही
यह स्पष्ट किया जाए कि
किसके निर्देश पर नोटशीट लिखी गई
संपूर्ण सुनवाई प्रक्रिया को शून्य (Null & Void) घोषित किया जाए
पूर्व में ऐसे सभी मामलों की विशेष ऑडिट
निष्कर्ष
यह मामला साबित करता है कि आबकारी विभाग में
सुनवाई और दस्तावेज़ी प्रक्रिया दो अलग-अलग हाथों में सौंप दी गई है, जो कानून, पारदर्शिता और जवाबदेही—तीनों के लिए घातक है।
अब सवाल यह नहीं कि गलती हुई या नहीं,
सवाल यह है कि इस अराजकता के लिए जिम्मेदार कौन है और उस पर कार्रवाई कब होगी?




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