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आबकारी विभाग में नियमों की अनदेखी! मंत्री की मंजूरी बिना 30 करोड़ का प्रस्ताव, कमिश्नर स्तर से मनमानी पर उठे सवाल


आबकारी विभाग में नियमों की अनदेखी! मंत्री की मंजूरी बिना 30 करोड़ का प्रस्ताव, कमिश्नर स्तर से मनमानी पर उठे सवाल

अवध भूमि न्यूज़ | लखनऊ

उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग में वित्तीय वर्ष 2025-26 के आय-व्ययक पुनर्वितरण को लेकर जारी पत्र ने विभागीय प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और वैधता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। दस्तावेज़ों के अनुसार कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव बिना अनिवार्य अनुमोदन के आगे बढ़ा दिए गए, जिनमें 30 करोड़ रुपये के भूमि खरीद तथा कमांड ऑफिस लखनऊ के निर्माण का प्रस्ताव सबसे बड़ा मुद्दा है।


सबसे बड़ा सवाल: क्या विभागीय मंत्री की मंजूरी ली गई?

पत्र में शामिल 30 करोड़ रुपये के निर्माण/भूमि से जुड़े प्रस्तावों में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि विभागीय मंत्री ने इसे मंजूरी दी है, जबकि इतने बड़े वित्तीय प्रस्तावों पर मंत्री स्तर की स्वीकृति अनिवार्य होती है।
यही बात प्रस्ताव की वैधता को संदिग्ध बनाती है।


प्रस्ताव में किन-किन नियमों का उल्लंघन हुआ — बड़ा खुलासा

दस्तावेज़ और विभागीय मैनुअल के अनुसार इस प्रस्ताव में निम्न प्रमुख नियमों की अनदेखी सामने आई है:


1️⃣ वित्तीय नियमावली (Financial Handbook) खंड-6 का उल्लंघन

नियम:

  • कोई भी नया निर्माण कार्य, भवन निर्माण, या भूमि खरीद विभागीय मंत्री की पूर्व स्वीकृति के बिना प्रस्तावित नहीं किया जा सकता।
  • विभागाध्यक्ष केवल नियमबद्ध मदों में सीमित पुनर्वितरण कर सकते हैं।

उल्लंघन:

  • पत्र में 30 करोड़ रुपये का प्रस्ताव कमिश्नर स्तर से भेज दिया गया, जबकि मंत्री की स्वीकृति का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

2️⃣ शासनादेश संख्या 1028/XXVII-7 — प्रमुख कार्यों की स्वीकृति नियम

नियम:

  • 5 करोड़ से अधिक के प्रस्तावों को मंत्रिस्तरीय अनुमोदन और वित्त विभाग की पूर्व सहमति आवश्यक है।
  • निर्माण व भूमि क्रय को “मुख्य मद” माना जाता है, जिन पर विशेष स्वीकृति अनिवार्य है।

उल्लंघन:

  • भूमि खरीद और कमांड ऑफिस निर्माण, दोनों मद 14 करोड़ और 30 करोड़ के हैं—
    लेकिन न मंत्री की स्वीकृति, न वित्त विभाग की पूर्व अनुमति का उल्लेख है।

3️⃣ बजट वर्ष के मध्य में नए कार्य जोड़ने पर प्रतिबंध

नियम:

  • वित्तीय वर्ष के दौरान नया कार्य या नई मद जोड़ना निषिद्ध है, जब तक कि वित्त विभाग इसे विशेष रूप से मंजूर न करे।

उल्लंघन:

  • पत्र में वित्तीय वर्ष 2025-26 के मध्य में 30 करोड़ का नया प्रस्ताव जोड़ दिया गया—
    बिना यह बताए कि इसे शासन ने विशेष अनुमति दी है या नहीं।

4️⃣ कार्यदायी संस्था/भवन निर्माण बोर्ड अनुमोदन प्रक्रिया की अनदेखी

नियम:

  • भवन निर्माण प्रस्ताव पहले
    1. विभागीय मंत्री
    2. वित्त विभाग
    3. निर्माण एजेंसी (जैसे PWD/राज्य निर्माण निगम)
      से क्रमवार स्वीकृति लेकर ही आगे बढ़ सकता है।

उल्लंघन:

  • पत्र में न एजेंसी का नाम है,
  • न तकनीकी स्वीकृति,
  • न मंत्री-स्तरीय अनुमोदन।
    यह पूरा प्रक्रिया-चक्र बाईपास किया गया है।

5️⃣ कमिश्नर स्तर से एकतरफा निर्णय लेना नियम विरुद्ध

नियम:

  • आबकारी आयुक्त के स्तर से केवल वे प्रस्ताव भेजे जा सकते हैं जिन्हें प्रशासनिक विभाग से अनुमोदन प्राप्त हो।

उल्लंघन:

  • पत्र में कमिश्नर स्तर से सीधे भारी-भरकम प्रस्ताव शासन को भेजे गए हैं, जो नियमों के विपरीत है।

कमांड ऑफिस लखनऊ के निर्माण में भी कई अस्पष्टताएँ

पत्र में कमांड ऑफिस लखनऊ के लिए 30 करोड़ रुपये का व्यय प्रस्तावित है, पर दस्तावेज़ में—

  • न उसकी DPR,
  • न मंत्री की स्वीकृति,
  • न शासनस्तर की अनुमति,
  • न किसी विशेषज्ञ एजेंसी की रिपोर्ट
    का कोई उल्लेख है।

यह प्रस्ताव भी नियमों के अनुसार “अपूर्ण व अमान्य” माना जाएगा।


उच्च स्तरीय जांच की मांग तेज

विभागीय सूत्रों के अनुसार—

  • प्रस्ताव तैयार करने में न प्रक्रिया का पालन हुआ,
  • न मंत्री कार्यालय को सूचना दी गई,
  • न वित्त विभाग को पूर्वानुमति भेजी गई।

इस वजह से पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग उठ रही है।


मुख्य सवाल जो अब भी अनुत्तरित हैं:

  1. क्या मंत्री कार्यालय को जानबूझकर इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया?
  2. क्या कमिश्नर स्तर से नियमविरुद्ध तरीके से करोड़ों का प्रस्ताव भेजा गया?
  3. क्या वित्त विभाग को प्रस्ताव भेजने से पहले अनुमति ली गई?
  4. क्या नए निर्माण/भूमि प्रस्ताव बजट के मध्य में जोड़ना वैध है?
  5. क्या यह पूरा मामला वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है?

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