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रासायनिक विस्फोट के ढेर पर आबकारी विभाग की मेरठ और लखनऊ प्रयोगशाला:

हर महीने होती है करोड़ों की वसूली:

कौन है अनिल वर्मा जिस पर फिदा है विशेष सचिव दिव्य प्रकाश गिरी और एडिशनल कमिश्नर ज्ञानेश्वर त्रिपाठी:

लखनऊ। आबकारी विभाग की क्षेत्रीय प्रयोगशाला मेरठ और लखनऊ में सैकड़ो लीटर स्पिरिट रासायनिक विस्फोट की शक्ल में पड़ा हुआ है जिसका निस्तारण अभी तक नहीं हुआ है। बताया जा रहा है कि स्पिरिट इतना खतरनाक है कि यदि इसमें गलती से भी विस्फोट हुआ तो आसपास का काम से कम 2 किलोमीटर एरिया पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा।

अनिल वर्मा के जिम में 90 डिस्टलरी, करता है करोड़ों की वसूली:

मेरठ और लखनऊ की क्षेत्रीय प्रयोगशाला के लैब सहायक को कल 90 डिस्टलरी का चार्ज दिया गया है। इसके बारे में कहा जाता है कि डिस्टलरी द्वारा उपलब्ध कराए गए प्रत्येक नमूने के लिए 8 से ₹10000 रिश्वत लेता है और जिस नमूने के लिए एडवांस पैसा नहीं मिलता उसे पेंडिंग छोड़ देता है। मिली जानकारी के मुताबिक मेरठ की क्षेत्रीय प्रयोगशाला में 17910 से अधिक नमूने बिना परीक्षण के पड़े हुए हैं और अब वह विस्फोटक के रूप में तब्दील हो गए हैं। इसी तरह लखनऊ में 485 से ज्यादा नमूने बिना परीक्षण के लंबित हैं और वह भी खतरनाक रसायन के रूप में देखे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कैसरबाग की जिस बिल्डिंग के तीसरी मंजिल पर यह प्रयोगशाला स्थापित है उसके ठीक नीचे डिप्टी एक्साइज कमिश्नर और जॉइंट डिसाइड कमिश्नर का भी कार्यालय है तथा पास में ही लखनऊ की कचहरी भी है ऐसे में कभी भी यहां विस्फोट हुआ तो बहुत बड़ा एरिया विस्फोट की चपेट में आएगा और भारी जनहानि  की भी संभावना है।

हर महीने होती है 3 करोड़ की वसूली:

बताया जा रहा है कि प्रत्येक महीने हजारों नमूने लखनऊ प्रयागराज और मेरठ तथा गोरखपुर की क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं में भेजे जाते हैं। इसमें सबसे ज्यादा 90% से अधिक नमूने लखनऊ और मेरठ के प्रयोगशाला में आते हैं। लखनऊ और मेरठ के लिए लैब टेक्नीशियन अनिल वर्मा डिस्टलरी से मोटी कमाई वसूल करता है। जानकारी मिली है कि लगभग 3 करोड रुपए तक हर महीने वसूली होती है। चर्चा के मुताबिक आबकारी विभाग के विशेष सचिव दिव्य प्रकाश गिरी एडिशनल कमिश्नर ज्ञानेश्वर त्रिपाठी और कई अन्य लोगों के नाम पर वसूली होती है। चर्चा में इसलिए भी दम है क्योंकि विशेष सचिव दिव्य प्रकाश गिरी और एडिशनल कमिश्नर ज्ञानेश्वर त्रिपाठी अनिल वर्मा जिनके पास लैब का कुल 90% काम है और  18 वर्षों से अंगद के पांव की तरह लखनऊ और मेरठ की क्षेत्रीय प्रयोगशाला से हटाने के सख्त खिलाफ हैं। बताया जा रहा है कि अनिल वर्मा जो वसूली करता है उसका बड़ा हिस्सा इन दोनों लोगों को मिलता है।

प्रमुख सचिव पहले भी जता चुकी हैं नाराजगी:

अभी हाल ही में लैब में बड़ी संख्या में नमूने लंबित रहने के प्रकरण पर प्रमुख सचिव नाराजगी जता चुकी हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा कि इसके पूर्व विभाग में तैनात रही वीना  रानी वर्मा पर कार्रवाई हुई थी और उनके पेंशन से अभी तक वसूली चल रही है लेकिन समझ से परे है कि इतने बड़े प्रकरण में अनिल वर्मा पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है और कमिश्नर एडिशनल कमिश्नर तथा प्रमुख सचिव किसी बड़ी घटना का ही इंतजार कर रहे हैं।

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