छोटी मछलियों का शिकार कर बचाए जा रहे बड़े जालसाज अधिकारी:

लखनऊ। गोंडा के नवाबगंज डिस्टलरी में लगभग 85000 लीटर ईएनए घोटाले के बड़े मास्टरमाइंड को बचाने की कोशिश आबकारी मुख्यालय और शासन स्तर पर शुरू हो गई है। आबकारी विभाग इस बात से डर गया है कि इस घोटाले का तार मध्य प्रदेश और नेपाल से भी जुड़ रहा है। आबकारी विभाग को डर सता रहा है कि यदि यह मामला जोर पकड़ेगा तो इसकी जांच एक बार फिर प्रवर्तन निदेशालय को जा सकती है। यदि प्रवर्तन निदेशालय इसकी जांच करेगा तो इसकी जद में शासन प्रशासन में बैठे कई बड़े लोग आ जाएंगे।
जिसने किया पर्दाफाश वही है मास्टरमाइंड:
85000 लीटर ईएनए घोटाले का अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में पर्दाफाश कर अपनी पीठ थपथपाने वाले आलोक कुमार ही दरअसल इस पूरे खेल के मास्टरमाइंड है। उन्होंने अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में एक तरफ जहां आबकारी विभाग को गुमराह किया है वहीं दूसरी ओर पुलिस की जांच को भी प्रभावित करने की कोशिश की है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जब 58000 लीटर ईएनए के गबन का मामला जून 2024 में ही सामने आ गया था तो इन्होंने 10 अक्टूबर 2024 को गोदाम संख्या दो और टैंक संख्या 13 से गायब 27610 लीटर ईएनए की निरीक्षण रिपोर्ट में इसका उल्लेख क्यों नहीं किया।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि देवीपाटन मंडल में अपनी नियुक्ति के त्रैमासिक रिपोर्ट में जो कि अगस्त में आनी थी उसमें उन्होंने स्टार लाइट डिस्टलरी के वेयरहाउस और उसके समस्त टैंक की निरीक्षण रिपोर्ट में 58000 लीटर ईएनए जो कि जून में ही गायब हो गया था कोई उल्लेख क्यों नहीं किया। आखिर ऐसी कौन सी बात है जो डिप्टी एक्साइज कमिश्नर आलोक कुमार छुपाना चाहते हैं।
आलोक कुमार ने अपनी निरीक्षण आख्या में यह कहा है कि उन्होंने जिला सहायक आबकारी आयुक्त के साथ निरीक्षण वेयरहाउस संख्या दो और टैंक संख्या 13 सहित समस्त टैंक का निरीक्षण किया था और उसकी रिपोर्ट मुख्यालय में भेजी थी फिर ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि उन्होंने इस रिपोर्ट में 58000 लीटर ईएनए के गबन का मामला क्यों छुपाया और पुनः 2 दिसंबर की अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में इसे स्वीकार कैसे कर लिया।
फर्जी है आलोक कुमार की निरीक्षण रिपोर्ट:
सूत्रों ने दावा किया है कि आलोक कुमार ने जो निरीक्षण आख्या मुख्यालय को भेजी है वह किस्सा कहानी और गप्प के अलावा कुछ भी नहीं है। सच्चाई तो यह है कि इस घोटाले की जानकारी जॉइंट एक्साइज कमिश्नर दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी, पूर्व जॉइंट डायरेक्टर स्टैटिक जोगिंदर सिंह तथा वर्तमान डिप्टी एक्साइज कमिश्नर और अपनी निरीक्षण रिपोर्ट से सबको गुमराह करने वाले आलोक कुमार को अच्छी तरह से थी।
जानकार सूत्रों का दावा है कि आयात परमिट पर एक दो बार नहीं बल्कि कई बार कई टैंकर ईएनए लखनऊ कानपुर झांसी होकर मध्य प्रदेश के नौगांव तक पहुंचे लेकिन आबकारी विभाग की जिले की प्रवर्तन इकाइयां जो कि पूर्व जॉइंट एक्साइज कमिश्नर ईआईबी जैनेंद्र उपाध्याय के अधीन काम करती रही उन्होंने रोकने की कोई कोशिश नहीं की।
डिप्टी और जॉइंट स्तर के अधिकारियों पर क्यों नहीं हो रही कार्रवाई:
कहा जा रहा है कि डिप्टी एक्साइज कमिश्नर आलोक कुमार कमिश्नर और एडिशनल कमिश्नर तथा शासन में बैठे दिव्य प्रकाश गिरी के लाडले हैं और उनकी कई तरह से निजी सेवाएं भी करते हैं। कुछ यही हाल जॉइंट एक्साइज कमिश्नर दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी का भी है। आरोपी बड़े अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी इसका संकेत बीते मंगलवार को भी हो गया था जब कमिश्नर ने पहले तो तेवर दिखाते हुए पूछा कि उस समय का डिप्टी एक्साइज कमिश्नर कौन है तब किसी ने बताया कि वर्तमान जॉइंट एक्साइज कमिश्नर दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी यह सुनकर प्रमुख सचिव और कमिश्नर दोनों के ही तेवर ढीले पड़ गए आखिर इसका क्या मतलब निकलता है। इतने बड़े घोटाले और अनियमितता में जिनकी भूमिका संदिग्ध है ऐसे अधिकारियों के प्रति नरमी दिखाने यह बता रहा है कि कोई बड़ी कार्रवाई नहीं होगी बस छोटी मछलियों को ही शहीद का दर्जा मिलेगा।
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