अपने बेटे को मलाईदार पोस्टिंग दिलाने के मामले में पूर्व प्रमुख सचिव फिर चर्चा में:

लखनऊ। उत्तर प्रदेश रेरा में पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी की नियुक्ति के बाद अराजकता अपने चरम सीमा पर पहुंच गई है। जानकारी मिली है कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलटी में उत्तर प्रदेश के रियल एस्टेट 196 प्रोजेक्ट जो लगभग 20000 करोड मूल्य के हैं डिफाल्टर हो गए हैं और डिफाल्टर हो गए इसी प्रोजेक्ट के अध्ययन के लिए यूपी रेरा में एक बोर्ड का गठन किया गया। इस बोर्ड में उत्तर प्रदेश रेरा प्रमुख संजय भूसा रेड्डी के बेटे जयेश भूसा रेड्डी को भी आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल कर लिया गया जबकि नियमानुसार संस्था प्रमुख अपने बेटे को किसी भी समिति में किसी पद पर नामित नहीं कर सकता लेकिन संजय भूस रेड्डी की बात ही कुछ और है उनकी पहचान ही इसी तरह की अराजकता और अनियमित के लिए जानी जाती है। आबकारी विभाग में भी उन्होंने मनमानी करते हुए बिना कैबिनेट अप्रूवल के सर्कल को सेक्टर में बांट दिया और अपने चाहते निरीक्षकों की पोस्टिंग कर दी आज तक इस प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी नहीं मिली है अगर इसकी जांच हो तो संजय भूस रेड्डी को जेल की यात्रा करनी पड़ सकती है। भूसा रेड्डी पर टपरी शराब कांड की साजिश रचने का भी आरोप है। बताया जा रहा है कि संजय भूसा रेड्डी की देखरेख में 2 वर्षों तक कोरोना काल में सहारनपुर की टपरी में अवैध रूप से शराब का उत्पादन हुआ निकासी हुई तथा बदायूं संभल उन्नाव कानपुर और जौनपुर में सरकारी गोदाम से अवैध रूप से बेची गई यह मामला लगभग 200 करोड रुपए का था। इस मामले की प्रवर्तन निदेशालय ने जांच की थी और इसमें उच्च अधिकारियों की मिली भगत की ओर इशारा किया था।
उन मामलों की जांच हो जिसमें जयेश भूस रेड्डी कंपनियों की ओर से रेरा में प्रस्तुत हुए:
बताया जा रहा है कि एक सीनियर अधिवक्ता के असिस्टेंट के रूप में जयेश रेड्डी ने जिन कंपनियों की रेरा में पैरवी की उन्हें राहत जरूर मिली। दरअसल कई कंपनियों ने राहत पाने के लिए रेरा प्रमुख संजय भूस रेड्डी के बेटे जयेश भूस रेड्डी को अपना अधिवक्ता नियुक्त कर दिया ताकि पॉजिटिव रिजल्ट मिल सके । ऐसे में यह जरूरी है कि पूरे मामले की जांच हो जिससे यह पता चल सके कि आखिर इस खेल में कितने लोग शामिल हैं और उनकी क्या भूमिका है।
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