अवधभूमि

हिंदी न्यूज़, हिंदी समाचार

नजरिया: नई संसद के बाद क्या संविधान भी बदल जाएगा: राजदंड के बाद राजतंत्र की वापसी की आशंका:

नई दिल्ली। नई संसद के उद्घाटन समारोह में महामहिम राष्ट्रपति लोकप्रिय मुर्मू को निमंत्रण नहीं भेजने से केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ 20 से ज्यादा विपक्षी दलों ने समारोह के बहिष्कार की घोषणा की है जिसको लेकर हंगामा मचा हुआ है। भारतीय जनता पार्टी जहां विपक्ष के बहिष्कार की आलोचना कर रही है वही केंद्र सरकार के इस रवैए की आलोचना करते हुए विपक्ष ने इसे संसदीय लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। विपक्ष में आरोप लगाया है कि सरकार के अहंकार के चलते संसद की गरिमा और लोकतंत्र दोनों के लिए खतरा पैदा हो गया है। कई नेताओं ने आशंका जाहिर की है कि नई संकट के बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का भी संविधान बदलने की तैयारी की जा रही है। बड़े पैमाने पर जल जंगल और जमीन पर काबिज आदिवासी जनजातियों की जमीन और उन्हें प्राप्त विशेषाधिकार समाप्त करने की तैयारी चल रही है।

चोल राजवंश का न्याय दंड संसद में स्थापित करने के बाद सवाल पूरे देश में गूंज रहा है वह यह कि क्या पुनः राजतंत्र की वापी होने वाली है। क्योंकि जिस न्याय दंड की बात कही जा रही है वह वास्तव में मजबूत राजतंत्र का प्रतीक रही है। कुछ लोग तो यहां तक मान रहे हैं कि संविधान अपना अस्तित्व खो चुका है और मात्र प्रतीकात्मक रूप से लागू है। फिलहाल तमाम सवालों और आशंकाओं के बीच आज संसद का उद्घाटन हो रहा है।

जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को भी निमंत्रण नहीं तो विपक्ष की क्या हैसियत:

सरकार और भारतीय जनता पार्टी कुछ भी कह लेकिन आम आदमी के गले के नीचे या बात नहीं उतर रही है कि आखिर राष्ट्रपति द्रौपदी मुरमू और उपराष्ट्रपति धनखड़ तक को इस ऐतिहासिक अवसर पर निमंत्रण नहीं दिया गया क्या केवल इसलिए यदि राष्ट्रपति यहां मौजूद रहेंगी तो प्रधानमंत्री को उनके प्रोटोकॉल में सम्मान देना पड़ेगा और झुकना पड़ेगा। यही नही यदि राष्ट्रपति मौजूद रहेंगी तो प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन को अनुचित माना जाएगा। फिलहाल इस मामले में भाजपा और उनके प्रकार की फजीहत हो रही है

About Author