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संजय भूसरेड्डी के अवैध आदेश से आबकारी महकमे में हड़कंप: विभागीय मंत्री और कैबिनेट मंजूरी के बिना बदल दी विभाग के दंड प्रावधान की नीति

लखनऊ। अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी ने बिना कैबिनेट मंजूरी के ही विभाग की एक महत्वपूर्ण नीति में मनमाना हस्तक्षेप करते हुए उसे बदल दिया और आदेश भी जारी कर दिया। 23 मई 2023 को जारी किए गए इस आदेश की कॉपी जब विभाग मुख्यालय पहुंचा तो हड़कंप मच गया। विभागीय अधिकारी संजय भूसरेड्डी के इस आदेश को लेकर संसद में है। संजय भूसरेड्डी ने जो आदेश जारी किया है उसे ना तो विभागीय मंत्री नितिन अग्रवाल की मंजूरी मिली है और ना ही इस संशोधित नीति को कैबिनेट मीटिंग से अप्रूवल मिली है। इतना ही नहीं आबकारी महकमे के कर्मचारियों को दंड प्रावधान संबंधी नीति के लिए जो आदेश जारी किए हैं उस की प्रतिलिपि तक विभागीय मंत्री तक को नहीं दी गई है।

संशोधित नीति को लेकर क्यों हो रहा है विवाद

आबकारी विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी द्वारा जारी इस संशोधित नीति के संबंध में जो आदेश जारी हुए हैं जानकार उसे अवैध और मनमाना बता रहे हैं। जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के शासकीय कर्मचारियों के अनुशासन नियमावली के प्रावधान पूरे प्रदेश पर लागू होते हैं किसी एक विभाग द्वारा इस संबंध में कोई अलग से अनुशासन नियमावली अथवा दंड प्रावधान की नीति नहीं बनाई जा सकती।

संजय भूसरेड्डी द्वारा जारी नई नीति में कहा गया है कि चपरासी से लेकर संयुक्त आबकारी आयुक्त तक के अनुशासन और दंड संबंधी नीति के तहत जांच अधिकारी केवल मंडलायुक्त होंगे। संजय भूसरेड्डी के इस आदेश पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। पुरानी नीति के तहत आरक्षी एवं मुख्य आरक्षी स्तर के शासकीय कर्मचारियों के अनुशासन और दंड संबंधी मामले में अप्पर आयुक्त प्रशासन जिम्मेदार होंगे जबकि उप निरीक्षक एवं निरीक्षक के मामले आबकारी आयुक्त देखेंगे और मैं तुम्हें के उपायुक्त और संयुक्त आयुक्त के मामले विभाग के प्रमुख सचिव अर्थात शासन स्तर पर निपटाए जाएंगे। संजय भूसरेड्डी ने इस महत्वपूर्ण नीति में मनमाना हस्तक्षेप और परिवर्तन करते हुए विभाग के सभी स्तर के शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों के मामले की जांच मंडलायुक्त से कराने की नीति को मंजूरी दी है जो विवाद का सबसे बड़ा कारण है। नियमानुसार इस संशोधन के लिए विभाग के मंत्री की मंजूरी और कैबिनेट की बैठक से भी मंजूरी ली जानी चाहिए थी जो नहीं किया गया है।

संजय भूसरेड्डी द्वारा जारी इस नवीन संशोधित नीति के अनुसार चपरासी से लेकर ज्वाइंट स्तर तक के सभी अधिकारियों के प्रकरण अब सीधे शासन को भेजे जाएंगे।

नई संशोधित नीति में एडीशनल कमिश्नर कमिश्नर के अधिकार छीन लिए गए

प्रदेश शासन के नियुक्ति और कार्मिक विभाग के दिशा निर्देश सभी विभागों पर बाध्यकारी होते हैं। नियुक्ति और कार्मिक विभाग के निर्देशों के अनुसार सभी स्केल के कर्मचारियों अधिकारियों के लिए जांच अधिकारी अलग-अलग तय किए गए हैं लेकिन संजय भूसरेड्डी के इस मनमानी नीति में जिला आबकारी अधिकारी एडीशनल कमिश्नर कमिश्नर सभी प्रकार के डिप्टी और जॉइंट के प्रशासनिक अधिकार छीन लिए गए हैं।

हाईकोर्ट के आदेश को ठेंगा: दंड से मुक्त होने वाले शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों का लंबित वेतन किया जा रहा राज्यसात, दी जा रही है महत्वहीन पोस्टिंग

संजय भूसरेड्डी अपने विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए अपने रिटायरमेंट के आखिरी समय तक पूरी दुश्मनी निभा रहे हैं। मिली जानकारी के मुताबिक ऐसे कई कर्मचारियों के प्रकरण सामने आए हैं जो लंबी कानूनी प्रक्रिया जांच के बाद दंड मुक्त हुए हैं उनकी पांच इंक्रीमेंट रोकी गई है उन और उनके लंबित वेतन को राज्यसात अर्थात निलंबन अवधि का वेतन राजकोष में जमा कर लिया गया है। जुल्म और अत्याचार यहीं नहीं थमा है बल्कि बहाली के बाद उन्हें बहुत ही महत्व इन पोस्टिंग दी गई है । संजय भूसरेड्डी की तानाशाही और मनमानी से पूरा महकमा करा रहा है।

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