नई दिल्ली। तोते की जान पिंजरे में है। यह कहावत सही होती प्रतीत हो रही है। अडानी के बर्बादी को भाजपा अपनी बर्बादी के रूप में देख रही है। सूत्रों का कहना है कि केंद्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा को हजारों करोड़ का इलेक्टोरल बांड मिला हुआ है और यह बांड ज्यादातर अदानी ग्रुप की कंपनियों की ओर से मिले हैं। यह वही कंपनियां है जिसका जिक्र हिंडोन बर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में किया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इन कंपनियों की जांच शुरू हो गई है वहीं दूसरी ओर अदानी ग्रुप की कंपनियों की बांड वैल्यू 70% तक कम हो गई है जिसका सीधा नुकसान बांड धारकों को होगा।
पिछले कई सालों से बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मिल रहे पारदर्शी चंदे में पहला स्थान मिला है. निर्वाचन आयोग के मुताबिक 2019-20 में कुल 3427 करोड़ के बॉन्ड बीजेपी को मिले जबकि नौ फीसदी यानी 318 करोड़ रुपए कांग्रेस की झोली में गए. कांग्रेस के बॉन्ड्स वाले चंदे में 17 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. जबकि बीजेपी को 2018-19 के दौरान 1450 करोड़ रुपए और कांग्रेस को 383 करोड़ रुपए मिले थे.
बीजेपी की फॉरेन फंडिंग के रास्ते हुए बंद:
सरकार बनने के बाद भाजपा को सबसे ज्यादा आर्थिक आय फॉरेन फंडिंग के जरिए हुई थी। या आय अदानी ग्रुप की कंपनियों के माध्यम से होती थी जब कंपनियां जांच के दायरे में आ गई तो यह रास्ता स्वत: ही बंद हो गया है। सेबी द्वारा जांच शुरू होने के बाद ग्रुप की सभी कंपनियों की लेन-देन के निगरानी होगी जो अब रिकॉर्ड पर होगा।
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