अदानी के कहने पर हुई थी माधवी बच की सेबी के अध्यक्ष के रूप में पोस्टिंग
नई दिल्ली। अभी हिंदेनबर्ग की नई रिपोर्ट से बवाल मचा हुआ है। उसको आसान शब्दों में समझें।
पिछले कुछ साल में भारत में REIT कंपनी खोलने की शुरुआत हुई। REIT मतलब होता है Real Estate Investment Trust. जैसे mutual funds शेयर में पैसा लगाते हैं , वैसे REIT real estate में पैसा लगाते हैं। उनसे होने वाली किराए की आय ही इनका आय स्रोत होती है। विदेशों में ये काफ़ी प्रचलित है – वहाँ बड़ी बड़ी rental organisations होती हैं जो सिर्फ़ किराए पर देने के लिए कमर्शियल और रहने के फ़्लैट्स बनाते हैं।
Blackstone दुनिया की सबसे बड़ी REIT investor और sponsor कंपनियों में से है। Blackstone ने भारत में दो REIT कंपजी को स्पान्सर किया। SEBI चेयरमैन माधवी बुच के पति धवल बुच इसी Blackstone ग्रुप में एडवाइजर नियुक्त किए गए थे।
अब कहानी ये है कि श्रीमान धवल को प्रॉपर्टी बिज़नेस का कोई आईडिया नहीं था। ना ही फाइनेंस का था। वो पेशे से इंजीनियर हैं और हिंदुस्तान लीवर में Chief Procurement officer थे। पर माधवी बुच को सेबी का सदस्य बनाने के पहले उनको ब्लैकस्टोन नेअपना एडवाइज़र बना लिया।
माधवी बुच सेबी की सदस्य रहने के बाद उसकी चेयरमैन भी बन गईं। इस दौरान उन्होंने देश में REITs से संबंधित कई regulatory changes किए जिनका सीधा फ़ायदा blackstone जैसे ग्रुप्स को हो रहा था।
इसी दौरान Sebi ने ब्लैकस्टोन की दो कंपनी Mindspace और Nexus Select ट्रस्ट को IPO की मंज़ूरी भी दी। सात महीने पहले दिसंबर 2023 में ब्लैकस्टोन ने एक और REIT कंपनी Embassy REIT में अपना सारा हिस्सा क़रीब 710 करोड़ में बेच दिया। आरोप ये है कि जिस ग्रुप को सेबी के निर्देशों से फ़ायदा हो रहा था उसी ग्रुप ने सेबी की चेयरमैन के पति को अपना एडवाइज़र बना रखा था। माधवी बुच ने ये कहा है कि उनके पति अपनी expertise के चलते एडवाइज़र बने थे , उनके सेबी में आने से पहले बन गये थे और उन्होंने blackstone संबंधित मामलों से ख़ुद को recuse किया हुआ था।
माधवी बुच पर दूसरा आरोप गंभीर है। IIFL नामक एक भारतीय कंपनी ने Bermuda में एक फण्ड बनाया GOF. इस GOF ने एक sub fund बनाया GDOF. Hindenburg के अनुसार विनोद अड़ानी ने GDOF में पैसा लगाया। GDOF ने इस मॉरीशस के एक छोटे, गुमनाम फण्ड IPE Plus Fund में लगाया।
फिर इस पैसे को IPE ने भारत के शेयर बाज़ार में लगाया। आरोप है कि मार्केट में इससे unnatural तेज़ी आई।
इस IPE fund का फाउंडर-चीफ था अनिल आहूजा। आरोप है कि माधवी बुच का भी इस GDOF और IPE में पैसा लगा हुआ था। माधवी के अनुसार अनिल आहूजा उसके पति के बचपन के दोस्त हैं और वो Citibank, JP Morgan आदि में काम कर चुके थे।
खेल यहीं शुरू होता है। कहा जा रहा है कि अनिल आहूजा पहले Adani Power और Adani Enterprises दोनों में डायरेक्टर थे। हैरानी की बात है कि SEBI चेयरमैन माधवी बुच को ये नहीं पता था !!
माधवी बुच के सेबी सदस्य बनने से पहले माधवी ने अपने पति को GDOF का कंट्रोल ट्रांसफ़र कर दिया था। इसके एक साल बाद उनके पति ने सारा पैसा निकाल लिया। पर हैरानी की बात ये है कि पैसा निकालने की ईमेल माधवी बुच ने अपनी पर्सनल ईमेल से भेजी। अगर उन्होंने फण्ड पति को ट्रांसफ़र कर दिया था तो अपनी ईमेल क्यों भेजी ? ये सब डॉक्यूमेंट उपलब्ध हैं।
एक आरोप ये भी है कि उनका सिंगापुर में एक और फण्ड है Agora Partners जो 100% उनका है। सेबी चेयरमैन बनने के बाद इसके सारे शेयर उन्होंने अपने पति को ट्रांसफ़र कर दिए। इसमें कुछ ग़लत नहीं है पर लोग पूछ रहे हैं कि भारत में दुनिया भर के mutual fund हैं , रोज़ आप पब्लिक को सलाह देते हो कि “mutual fund सही है” पर अपना ख़ुद का पैसा सेबी चेयरमैन मॉरीशस , बरमूडा , सिंगापुर की shady companies में लगाती हैं।
अब बात बजट में खेल की। Long Term Capital Gains Tax का फ़ायदा उठाने के लिए पहले REIT यूनिट्स को 36 महीने तक रखना पड़ता था। उसके पहले बेचने पर आय अनुसार इनकम टैक्स लगता था। इस बजट में सरकार ने इस 36 महीने के period को कम करके 12 महीने कर दिया। यानी कि किसी भी Blackstone जैसी बड़ी कंपनी को सिर्फ़ 12 महीने बाद यूनिट्स बेचकर 35% corporate tax की जगह सिर्फ़ 12.50% LTCG टैक्स देना पड़ेगा।
अब जाँच इस बात की होनी चाहिए कि भारत की REIT कंपनियों में किस किस का पैसा लगा है और किसको इस LTCG पीरियड 12 महीने करने वाले ऑर्डर से फ़ायदा होगा।
सनद रहे कि माधवी बुच का SEBI से पूर्व में कोई लेना देना नहीं था। प्राइवेट सेक्टर से इस पद पर appoint होने वाली वो पहली चेयरमैन हैं। उनको सीधा सरकार ने बाहर से ला कर सेबी सदस्य और बाद में चेयरमैन बना दिया था।
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