
आबकारी विभाग में डीपीसी घोटाला! वरिष्ठ निरीक्षकों की प्रोन्नति पर साजिशन ‘ब्रेक’, जूनियर्स को फायदा पहुंचाने की तैयारी
लखनऊ।
उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग में विभागीय प्रोन्नति समिति (डीपीसी) को लेकर बड़ा बवाल खड़ा हो गया है। सहायक आबकारी आयुक्त पद पर प्रोन्नति हेतु विचाराधीन 45 आबकारी निरीक्षकों में से मात्र 15 को ही प्रमुख सचिव की टीम ने योग्य पाया है, जबकि 30 निरीक्षकों को विभागीय कार्रवाई प्रचलित दिखाकर 6 वर्षों से प्रोन्नति से वंचित रखा जा रहा है। विभागीय सूत्र इसे “लंबा खेल” बताते हैं, जिसकी जड़ें पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूसा रेड्डी के जमाने तक जाती हैं।
भूसा रेड्डी का “गुरुमंत्र” और मौजूदा प्रमुख सचिव
सूत्र बताते हैं कि भूसा रेड्डी ने मौजूदा प्रमुख सचिव को यही “गुरुमंत्र” दिया था कि योग्य निरीक्षकों को किसी न किसी तरह चार्जशीट देकर प्रोन्नति के लायक न छोड़ा जाए। इसी क्रम में 1996 और 2000 बैच के कुछ अफसर, जो आज सहायक एवं उप आबकारी आयुक्त हैं, अपने इशारे पर विभागीय खेल को आगे बढ़ा रहे हैं।
जूनियर निरीक्षकों को सर्किल और सेक्टर में बिठाकर वरिष्ठों को कार्मिक जैसे अहम विभाग में भेजा गया, जहां शैलेंद्र तिवारी, प्रसेन राय, ज्योत्स्ना शर्मा, कृष्ण मुरारी, आशुतोष उपाध्याय, सुनीता ओझा जैसे अफसरों के जरिए 2000, 2003 और 2007 बैच के अनुभवी इंस्पेक्टरों को साजिशन टारगेट किया गया। नतीजा—बिना कारण बताए सस्पेंशन, मनमानी अनुशासनिक कार्रवाइयां और प्रतिकूल गोपनीय प्रविष्टियां।
महिला अफसरों तक नहीं बख्शी गईं
आश्चर्य की बात यह है कि विभाग की मुखिया खुद महिला होने के बावजूद महिला निरीक्षकों से न तो मिलना पसंद करती हैं और न ही उनकी अपील सुनती हैं। चेतना सिंह (2000 बैच), सरिता सिंह, अपर्णा द्विवेदी, वंदना सिंह (2007 बैच) और वीआरएस ले चुकी शिल्पी सिंह जैसी महिला अफसर वर्षों से लगातार उत्पीड़न झेल रही हैं।
नियमों की धज्जियां—6 माह की कार्रवाई 6 साल तक
नियम कहता है कि कोई भी विभागीय कार्रवाई 6 माह में समाप्त हो जानी चाहिए, लेकिन विभाग में कई मामलों में 6-6 साल तक कार्रवाई लंबित रखी गई। यही नहीं, अपील की सुनवाई 90 दिनों में निपट जानी चाहिए, लेकिन यहां तो सालों तक फाइलें दबाकर रखी जाती हैं। अपील निस्तारण के नाम पर प्रमुख सचिव की तरफ से केवल एक लाइन में खारिजी आदेश थमा दिया जाता है—“कोई नया तथ्य नहीं बताया गया।”
वहीं, खास “लाडले” अफसरों के मामले आबकारी आयुक्त को रेफर करवा कर दंड न्यूनतम या समाप्त करा दिए जाते हैं। यही वजह है कि 2000, 2003 और 2007 बैच के अनुभवी निरीक्षकों को रोके रखते हुए 2015 बैच के जूनियर इंस्पेक्टर्स को आगे बढ़ाने की “गुप्त एजेंडा” चल रहा है।
मंत्री की मंशा भी दरकिनार
विभागीय मंत्री नितिन अग्रवाल ने निर्देश दिया था कि रिक्त पदों को देखते हुए लंबित विभागीय कार्यवाहियों को अभियान चलाकर निपटाया जाए और वरिष्ठ कर्मियों का उत्साह बनाए रखने के लिए डीपीसी में शामिल किया जाए। लेकिन प्रमुख सचिव ने मंत्री की मंशा को भी दरकिनार कर दिया।
सवालों के घेरे में प्रमुख सचिव
कभी छह-छह मलाईदार विभाग संभालने वाली प्रमुख सचिव के पास अब केवल आबकारी और केन बचा है। विभागीय कर्मचारियों का आरोप है कि यह “बुर्जुआ नीति” उनके करियर को बर्बाद कर रही है। डीपीसी के नाम पर चल रहा यह खेल वरिष्ठ निरीक्षकों की प्रोन्नति को तो रोक ही रहा है, साथ ही विभाग के भीतर असंतोष और विद्रोह की स्थिति पैदा कर रहा है।
👉 बड़ा सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक यह साजिशन खेल पहुंच पाया है?
👉 क्या वरिष्ठ निरीक्षकों का हक उन्हें मिलेगा या डीपीसी की आड़ में “भूसा रेड्डी मॉडल” ही चलता रहेगा?
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