अवधभूमि

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग में भ्रष्टाचार और मनमानी का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। कार्मिक अनुभाग में पिछले 15 वर्षों से जमे निरीक्षक प्रसेन राय ने डीपीसी (Departmental Promotion Committee) की बैठक से पहले ही पात्रता सूची तैयार कर डाली

नियम साफ कहते हैं कि डीपीसी की बैठक बुलाए जाने से पहले किसी भी अधिकारी का “बंद लिफाफा” नहीं खोला जा सकता। लेकिन प्रसेन राय ने इस संवेदनशील प्रक्रिया की धज्जियाँ उड़ाते हुए अपने चहेते निरीक्षकों को फायदा पहुँचाने के लिए पूरा खेल रच डाला।

मेजर पनिशमेंट वालों को भी बना दिया ‘निर्दोष’

सबसे बड़ा खुलासा यह है कि प्रसेन राय ने पात्रता सूची में आधा दर्जन ऐसे आबकारी निरीक्षकों के नाम शामिल कर दिए जिन्हें मेजर पनिशमेंट (गंभीर दंड) मिल चुका है। और तो और, सूची के टिप्पणी कॉलम में साफ-साफ गलत लिखा गया—

“कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की गई है और न ही कोई विभागीय कार्रवाई प्रचलित है।”

यानी जिनके खिलाफ विभागीय दंड साबित हो चुका था, उन्हें निर्दोष बताकर डीपीसी में शामिल करा दिया गया।

गोपनीय रिपोर्टों से लेकर प्रमोशन तक धांधली

प्रसेन राय पर आरोप है कि वह सालों से वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में हेराफेरी कर अधिकारियों को परेशान करते हैं। प्रमोशन की प्रक्रिया में अड़ंगे लगाना, मनपसंद अधिकारियों को लाभ दिलाना और बाकियों का शोषण करना उनका ‘धंधा’ बन चुका है।

प्रमुख सचिव और आयुक्त पर गंभीर सवाल

इस खेल में प्रसेन राय अकेले नहीं हैं। सूत्र बताते हैं कि वर्तमान आबकारी आयुक्त और प्रमुख सचिव की जानकारी और संरक्षण में ही यह पूरा गोरखधंधा चलता है। उनके साथ कार्मिक अनुभाग के डिप्टी कुमार प्रभात चंद का नाम भी सामने आ रहा है, जिन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का गंभीर आरोप है।

यानी फाइलों और लिफाफों के इस गुप्त खेल से लेकर संपत्ति कमाने तक की पूरी चेन अब सामने आ रही है।

शासन की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को ठेंगा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति लागू की है, लेकिन आबकारी विभाग में प्रमुख सचिव और आयुक्त की नाक के नीचे हो रहा यह महाघोटाला साफ दिखाता है कि विभाग में नीति नहीं, दलाली चल रही है।

अब ज़रूरी है कार्रवाई

प्रसेन राय और कुमार प्रभात चंद के खिलाफ तत्काल जांच और कड़ी कार्रवाई किए बिना यह संदेश जाएगा कि विभाग में बैठे बड़े अफसर मनमानी कर सकते हैं और शासन मौन दर्शक बना रहेगा।


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