
लखनऊ। आबकारी विभाग मुख्यालय में अराजकता का एक और उदाहरण सामने आया है। आबकारी निरीक्षक शैलेंद्र तिवारी का एक व्हाट्सएप चैट तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वह बिना आबकारी आयुक्त की अनुमति के सीधे आबकारी आयुक्त के आदेश पर सफाई देते नज़र आ रहे हैं।
इस चैट में तिवारी यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका बयान ही आबकारी आयुक्त की ओर से जारी “आधिकारिक स्पष्टीकरण” है। जाहिर है, यह एक साधारण निरीक्षक के अधिकार क्षेत्र से परे है और सीधे तौर पर विभागीय अनुशासन का उल्लंघन है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आबकारी निरीक्षक द्वारा इस तरह आबकारी आयुक्त की ओर से आदेश पर सफाई देना न केवल पद की गरिमा के खिलाफ है, बल्कि इससे मुख्यालय की विश्वसनीयता और अनुशासन व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
कौन-कौन से नियमों का उल्लंघन?
सेवा आचरण नियमावली और अनुशासन अधिनियम के तहत शैलेंद्र तिवारी की यह हरकत निम्न प्रावधानों का सीधा उल्लंघन करती है—
- उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 1956
- नियम 3(1): प्रत्येक सरकारी सेवक को ईमानदारी, निष्ठा और निष्पक्षता से कार्य करना चाहिए।
- नियम 3(2): सरकारी सेवक ऐसा कोई आचरण नहीं करेगा जिससे उसकी सेवा की गरिमा और सरकार की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
- अनुशासन एवं अपील नियमावली, 1999
- नियम 4: पद का दुरुपयोग कर अनुचित लाभ लेना या वरिष्ठ अधिकारियों के नाम का गलत इस्तेमाल करना दंडनीय अपराध है।
- नियम 7: यदि कोई अधिकारी अपने पद का अतिक्रमण कर “वरिष्ठ अधिकारी” के आदेश की तरह बयान देता है, तो यह गंभीर कदाचार की श्रेणी में आता है।
- आईपीसी की धारा impersonation से संबंधित प्रावधान
- यदि कोई व्यक्ति खुद को किसी सक्षम अधिकारी की ओर से बोलने का अधिकारी बताता है, तो यह कदाचार व फ्रॉडulent misrepresentation की श्रेणी में आ सकता है।
विभाग की प्रतिष्ठा पर धब्बा
आबकारी मुख्यालय में यह घटना विभागीय अनुशासन की धज्जियां उड़ाने वाली है। एक निरीक्षक द्वारा आयुक्त की चमचागिरी करके खुद को उनका प्रवक्ता साबित करने की कोशिश सीधे तौर पर विभाग की साख को चोट पहुंचा रही है। यदि इस पर तुरंत कार्रवाई नहीं की गई तो यह प्रवृत्ति अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों में भी फैल सकती है।
क्या होना चाहिए?
आबकारी आयुक्त को चाहिए कि इस बहरूपियेपन की प्रवृत्ति को तुरंत पहचानकर शैलेंद्र तिवारी पर विभागीय जांच बैठाई जाए। इससे न केवल विभागीय अनुशासन मजबूत होगा, बल्कि मुख्यालय की गरिमा भी बनी रहेगी।
निष्कर्ष
शैलेंद्र तिवारी का यह व्हाट्सएप चैट केवल एक सामान्य संदेश नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे एक निरीक्षक अपने पद का दुरुपयोग करके खुद को आयुक्त का प्रवक्ता बना बैठा है। यह सीधा-सीधा अनुशासन आचरण नियमावली का उल्लंघन है, जिस पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि विभागीय प्रतिष्ठा को और अधिक क्षति न पहुंचे।

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