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आबकारी विभाग की लापरवाही का नतीजा है कोडीन कफ सिरप कांड:


💥 वाराणसी कोडीन सिरप कांड के बाद आबकारी विभाग NDPS एक्ट पॉलिसी न बनाने को लेकर सवालों के घेरे में! 💥

अवध भूमि न्यूज़ | विशेष जांच रिपोर्ट

वाराणसी में हाल ही में करीब दो करोड़ बोतल कोडीन आधारित कफ सिरप का अवैध भंडारण पाए जाने के बाद पूरे प्रदेश में सनसनी फैल गई है।
सूत्रों के अनुसार यह केवल अवैध कारोबारियों की लापरवाही का परिणाम नहीं, बल्कि आबकारी विभाग की प्रणालीगत खामियों और नीति की कमी का नतीजा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि NDPS एक्ट के तहत आबकारी विभाग ने समय पर स्पष्ट पॉलिसी बनाई होती, तो यह नेटवर्क इतने बड़े पैमाने पर नहीं पनप पाता।


🔴 NDPS एक्ट को पॉलिसी में शामिल न करना — घोर चूक

उत्तर प्रदेश की आबकारी पॉलिसी में पिछले चार वर्षों से NDPS श्रेणी की दवाओं (जैसे कोडीन सिरप, फेंसिडिल, डेक्स्ट्रो, सिडेमॉल आदि) के भंडारण, ट्रांसपोर्ट, लाइसेंसिंग और इंटर-स्टेट मूवमेंट पर कोई स्पष्ट SOP दर्ज नहीं था।

विशेषज्ञों का मानना है:

  • भंडारण और गोदाम निरीक्षण का कोई स्पष्ट नियम नहीं
  • इंटर-स्टेट ट्रांसपोर्ट और ट्रैकिंग सिस्टम अनुपस्थित
  • डिजिटल स्टॉक मॉनिटरिंग नहीं होने के कारण वास्तविक स्थिति का पता नहीं

यही खामियां अवैध कारोबारियों के लिए खुला रास्ता बन गईं।


  • कोडीन सिरप नशीली दवा के अंतर्गत आता है और इसके निर्माण, भंडारण और बिक्री के लिए विशेष लाइसेंस आवश्यक है।
  • आबकारी विभाग राज्य स्तर पर लाइसेंस जारी करने, निरीक्षण करने और निगरानी रखने का मुख्य अभिकरण है।
  • लाइसेंस प्राप्त करने के लिए कंपनियों को सुरक्षा उपाय, गोपनीयता और रिकॉर्डिंग की शर्तें पूरी करनी होती हैं।
  • विभाग समय-समय पर गोदाम और स्टॉक रजिस्टर की जाँच करता है और असामान्य गतिविधियों (ओवरस्टॉकिंग, चोरी, कालाबाजारी) पर कार्रवाई करता है।
  • NDPS Act और Drugs & Cosmetics Act के अनुरूप निर्माण, पैकिंग, लेबलिंग और बिक्री सुनिश्चित करना आबकारी विभाग की जिम्मेदारी है।
  • आबकारी विभाग को राज्य स्तर पर NDPS एक्ट लागू करने और पॉलिसी बनाने का अधिकार है; इसमें लाइसेंसिंग, भंडारण, निरीक्षण और उल्लंघन पर कार्रवाई के नियम तय किए जाते हैं।
  • वार्षिक आबकारी पॉलिसी में कोडीन सिरप और अन्य नियंत्रित दवाओं के लिए स्पष्ट प्रावधान होना आवश्यक है।
  • पुरानी पॉलिसी होने पर मॉनिटरिंग, स्टॉक नियंत्रण और सुरक्षा मानक कमजोर हो जाते हैं।
  • पॉलिसी में जिम्मेदार अधिकारियों, निरीक्षकों और सहायक अधिकारियों की भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से तय होनी चाहिए।
  • पॉलिसी अपडेट न होने पर ड्रग माफियाओं को अवैध निर्माण, भंडारण और काले बाजार में वितरण का फायदा मिलता है।
  • पुराने नियमों का उपयोग करके माफिया फर्जी स्टॉक रजिस्टर बना सकते हैं, गोदामों में हेराफेरी कर सकते हैं और कानूनी कार्रवाई से बच सकते हैं।
  • पॉलिसी के अद्यतन होने से लाइसेंसिंग प्रक्रिया, स्टॉक रिकॉर्डिंग, निरीक्षण मानक और उल्लंघन पर दंड स्पष्ट होता है।
  • अद्यतन पॉलिसी से निगरानी प्रभावी होती है, कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित होती है और ड्रग माफियाओं की गतिविधियों को रोका जा सकता है।


🔴 वाराणसी में दो करोड़ बोतलें — सिस्टम फेल्योर

पूर्व अतिरिक्त आयुक्त प्रशासन ज्ञानेश्वर त्रिपाठी की रिपोर्ट के अनुसार, आबकारी विभाग की प्रवर्तन टीमें समय-समय पर मेडिकल स्टोर्स की जांच और कार्रवाई करती थीं।
लेकिन सूत्र बताते हैं कि यह रिपोर्ट वास्तविक निरीक्षण से मेल नहीं खाती, और इसमें स्टॉक और भंडारण की वास्तविक स्थिति को पूरी तरह उजागर नहीं किया गया

विशेषज्ञों के अनुसार, यह विवादित रिपोर्ट विभागीय जवाबदेही और कागजी कार्रवाई की सीमा पर सवाल खड़ा करती है।


🔴 आबकारी विभाग की जिम्मेदारी — लाइसेंसिंग और मॉनिटरिंग

कोडीन आधारित दवाओं के भंडारण और बिक्री पर आबकारी विभाग की भूमिका कानून और SOP के तहत स्पष्ट रूप से निर्धारित है।

मुख्य जिम्मेदार विंग और अधिकारी:

  1. लाइसेंसिंग विंग (Excise Licensing Wing)
    • भंडारण और बिक्री के लिए लाइसेंस जारी करना
    • लाइसेंस की वैधता, अवधि और शर्तों की निगरानी
    • स्टॉक रजिस्टर की जाँच
  2. प्रवर्तन / Enforcement Wing
    • मेडिकल स्टोर्स और गोदामों का निरीक्षण
    • कानून उल्लंघन की स्थिति में कार्रवाई और रिपोर्टिंग
    • स्टॉक मिलान और क्रॉस-चेकिंग
  3. टेक्निकल विंग (Technical Wing / Scientific Division)
    • NDPS श्रेणी की दवाओं की रासायनिक जांच
    • फार्मूलेशन, कोडीन की मात्रा और लैब रिपोर्ट का क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन
    • स्टॉक की वास्तविकता और गुणवत्ता का निरीक्षण
  4. जिला आबकारी अधिकारी (District Excise Officer)
    • रिव्यू और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी
    • निरीक्षण टीमों की समय-सीमा सुनिश्चित करना
    • रिपोर्ट के आधार पर आवश्यक आदेश देना
  5. राज्य मुख्यालय / आबकारी आयुक्त (State Excise Commissioner)
    • NDPS एक्ट के तहत पॉलिसी और SOP जारी करना
    • विभागीय रिपोर्टों की समीक्षा और जवाबदेही तय करना
    • कृत्रिम या असंगत रिपोर्ट की पहचान

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🔴 तकनीकी विंग की भूमिका — कमजोरी या भ्रष्टाचार?

सूत्रों के अनुसार, आबकारी विभाग के टेक्निकल पदों पर ऐसे अधिकारी तैनात थे, जिनकी विशेषज्ञता फार्मास्यूटिकल या रसायन विज्ञान में नहीं थी।

इसका असर:

  • NDPS सामग्री का वैज्ञानिक निरीक्षण कमजोर
  • लाइसेंसिंग और स्टॉक क्रॉस-चेकिंग अधूरी
  • ड्रग माफिया और इंटर-स्टेट सप्लाई गिरोह को अप्रत्यक्ष लाभ

विशेषज्ञ मानते हैं कि टेक्निकल विंग की कमजोरी और प्रशासनिक पदों की नियुक्ति ने अवैध नेटवर्क के विस्तार को संभव बनाया।


🔴 विभागों के बीच तालमेल की कमी

जांच में यह भी सामने आया कि विभागों के बीच तालमेल की कमी ने मामले को गंभीर बना दिया।

  • औषधि विभाग और आबकारी विभाग के बीच कोई डेटा-शेयरिंग तंत्र नहीं था।
  • इंटर-स्टेट ट्रांसपोर्ट की निगरानी ज्यादातर स्थानीय स्तर पर मैन्युअल थी।
  • जिला प्रशासन और मजिस्ट्रेट स्तर पर नियमित रिव्यू और रिपोर्टिंग नहीं हुई।

यह पूरा तंत्र नेटवर्क को प्रभावी रूप से छुपाने और चलाने के लिए अनुकूल बना।


🔴 प्रवर्तन और निरीक्षण में चूक — वाराणसी केस

वाराणसी में दो करोड़ बोतलें पाई गईं, जबकि रिपोर्ट के अनुसार:

  • प्रवर्तन टीमें नियमित निरीक्षण का दावा करती थीं।
  • मेडिकल स्टोर और गोदाम का निरीक्षण समय-समय पर होता था।
  • फिर भी इतनी बड़ी खेप पकड़ में क्यों नहीं आई?

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विभागीय प्रणालीगत कमजोरी, SOP के अभाव और विवादित रिपोर्ट का परिणाम है।


🔴 जवाबदेही तय होनी चाहिए — किन स्तरों पर?

1️⃣ क्षेत्रीय प्रवर्तन अधिकारी

  • मेडिकल स्टोर और गोदाम निरीक्षण में चूक
  • स्टॉक वेरिफिकेशन अधूरा

2️⃣ तकनीकी अधिकारी / विंग

  • NDPS एक्ट को पॉलिसी में शामिल न करना
  • लाइसेंसिंग और स्टॉक मॉनिटरिंग में ढिलाई

3️⃣ जिला आबकारी अधिकारी

  • अनियंत्रित व्यापार रोकने में विफल
  • नियमित समीक्षा और रिपोर्टिंग न करना

4️⃣ राज्य मुख्यालय

  • नीति निर्माण और SOP जारी करने में देरी
  • पूर्व अतिरिक्त आयुक्त की रिपोर्ट में वास्तविक आंकड़ों की सत्यता पर सवाल

🔴 कानूनी और विभागीय कार्रवाई के विकल्प

  • निलंबन, कारण बताओ नोटिस और चार्जशीट
  • पदस्थापन या सेवा से बर्खास्तगी
  • NDPS Act की धारा 25, 27A, 29 के तहत कानूनी कार्रवाई
  • IPC 409, 420, 120B और Prevention of Corruption Act के तहत जांच

🔴 सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव

  • इस कांड से सार्वजनिक विश्वास पर गहरा असर पड़ा।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि सिस्टम में सुधार, SOP का निर्माण और तकनीकी पदों पर योग्य अधिकारियों की तैनाती ही भविष्य में ऐसे नेटवर्क रोक सकती है।
  • इंटर-डिपार्टमेंटल डेटा शेयरिंग और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू करना जरूरी है।

🔴 निष्कर्ष: सिस्टम फेल्योर और विवादित रिपोर्ट

अवध भूमि न्यूज़ की विशेष पड़ताल में सामने आया कि:

  • NDPS आधारित दवाओं के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं थी।
  • तकनीकी निरीक्षण और ट्रैकिंग प्रणाली कमजोर थी।
  • विभागों के बीच तालमेल और डेटा-शेयरिंग का अभाव था।
  • पूर्व अतिरिक्त आयुक्त की रिपोर्ट में वास्तविक निरीक्षण के आंकड़े सही नहीं प्रस्तुत किए गए।
  • टेक्निकल विंग में प्रशासनिक पदों के कारण विशेषज्ञता का अभाव रहा।
  • लाइसेंसिंग और मॉनिटरिंग विंग ने भी पर्याप्त कार्रवाई नहीं की।

यही खामियां और विवादित रिपोर्ट अवैध नेटवर्क के विस्तार का मुख्य कारण बनीं।

अब सवाल यह है:

  • NDPS एक्ट को आबकारी पॉलिसी में क्यों शामिल नहीं किया गया?
  • वाराणसी में दो करोड़ बोतलें कैसे जमा हो गईं?
  • क्या निरीक्षण केवल कागजों तक सीमित थे?
  • पूर्व अतिरिक्त आयुक्त की रिपोर्ट कितनी विश्वसनीय थी?
  • जवाबदेही किस स्तर पर तय होगी?

💥 जवाबदेही तय होने के बाद ही इस पूरे प्रकरण का अगला बड़ा अध्याय लिखा जाएगा। 💥


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