हाकी और कुश्ती में अंतरराष्ट्रीय साजिश का शिकार हुआ भारत
नई दिल्ली। ओलंपिक खिलाड़ियों के साथ जिस तरह से पेरिस ओलंपिक में अन्याय हुआ है उससे अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत की कमजोरी स्थिति का आकलन किया जा सकता है।
पहले क्वाटर फाइनल में हॉकी टीम के साथ अन्याय हुआ और जबरन हमारे स्टार खिलाड़ी को रेड कार्ड जारी किया जिसके नतीजे में हमें एक हार हमें बेवजह झेलनी पड़ी लेकिन हमारी ओलंपिक समिति इतनी कमजोर थी कि उसने इसका कोई औपचारिक विरोध भी नहीं किया जबकि अगर इसी तरह का निर्णय जर्मनी ऑस्ट्रेलिया या अन्य ताकतवर देशों के साथ हुआ होगा तो वह पूरा आसमान सर तो उठा लेते। अब यह जानकारी आ रही है कि कुश्ती के फाइनल मुकाबले में दिनेश फोगाट को बाहर रखने के लिए एक बड़ी साजिश रची गई। दिनेश फोगाट को जब वजन के दौरान 50 किलो से 100 ग्राम अधिक ओवरवेट माना गया तो फौगाट ने दोबारा वजन कराए जाने की मांग की जिसको ठुकरा दिया गया क्योंकि ओलंपिक समिति ने फोगाट का साथ नहीं दिया। मुकाबला अमेरिका जैसे ताकतवर देश के साथ था इसलिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संगठन अमेरिका की ओर झुका दिखाई दिया भारत में यहां पर औपचारिक विरोध तक नहीं दर्ज करवाया यह एक कमजोर सरकार की ही निशानी है।
ओलंपिक में दिखता है ताकतवर देश का जलवा
यदि भारत आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई ताकत बन गया होता तो आज अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति उसके विरुद्ध को सुनने के लिए मजबूर होती लेकिन भारत की स्थिति इस समय वह कमजोर है ऐसी स्थिति में कमजोर देश के साथ जो होता है वही ओलंपिक दल के साथ हुआ है। आखिर क्या कारण है कि जिस फ्रांस से हमने हजारों करोड़ का रक्षा सौदा किया और आर्थिक रूप से लाभान्वित किया इसकी मेजबानी में ओलंपिक खेलों में भारत के साथ अन्याय हुआ और उसने भी हमारा साथ नहीं दिया। कहां जा रहा है कि इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय कारण है। रूस का साथ देने के चलते अमेरिका और यूरोप भारत से बेहद नाराज हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अब भारत का कोई समर्थन नहीं करते। याद होगा कि मोदी सरकार आने से पहले दुनिया के कई ताकतवर देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के रूप में भारत की सदस्यता की वकालत करते थे अब यह बातें सुनने में नहीं आ रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रबल शत्रु चीन भारत के दुश्मनों का सब अच्छा सफलतापूर्वक कर रहा है और भारत लाचार है क्योंकि उसके साथ में इस समय दुनिया का कोई भी देश नहीं खड़ा है। सबसे ज्यादा और मजबूत व्यापारिक संबंध रूस के साथ है लेकिन वह भी भारत के प्रबल शत्रु चीन और पाकिस्तान के साथ गलबहियां कर रहा है। भारत इसका कोई भी कूटनीतिक जवाब देने की स्थिति में नहीं है।
डॉलर पाउंड और येन का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवा
डॉलर के मुकाबले जैसे-जैसे भारत के रुपया कमजोर हो रहा है उसी तरह भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साख भी कमजोर हो गयी है। इस समय पूरी दुनिया व्यापारिक रूप से मजबूत राष्ट्रों की ही जय बोल रही है। देश में भले ही गोदी मीडिया भारती अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर दिखा रही है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताकतवर यूरोपीय और अमेरिकी देश भारतीय अर्थव्यवस्था की गहराई और ऊंचाई जानते हैं इसीलिए भारत में विदेशी निवेश बेहद कमजोर हो गया है। अमेरिका जैसे देश जिस देश में निवेश करते हैं उसकी साख और शक्ति में इजाफा हो जाता है। यूरोपीय देश और जापान तथा कोरिया जैसे देश भी उसी के पीछे चलते हैं। दुर्भाग्य से भारत जी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस समय व्यापारिक साझेदार के रूप में बेहद ही कमजोर भूमिका है।
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