लखनऊ। शराब माफिया से मिली भगत कर बिना सिक्योरिटी के कई दुकान को संचालित करवाने की वजह से चर्चा में आए प्रदीप दुबे की मासूम सफाई किसी के गले नहीं उतर रही है। उन्होंने अपने को बचाने के लिए सारा इल्जाम लाइसेंसी पर मढ़ दिया है। कहा जा रहा है कि लाइसेंसी ने जो एफडीआर सिक्योरिटी मनी के रूप में जमा किया उसमें एफडीआर सर्टिफिकेट में अंकित धन राशि केवल अंकों में थी और लाइसेंसी ने फर्जी ढंग से जीरो बढ़कर अंक को हजार से लाख में पहुंचा दिया। इस तरह कुल ₹300000 की राशि एफडीआर हुई और जिला आबकारी अधिकारी कार्यालय में वही एफडीआई 30 लाख रुपए का बना दिया गया। अब सवाल यह होता है कि जब कोई भी एफडी जो बैंक द्वारा जारी होता है उसमें अंकित धनराशि अंकों और शब्दों दोनो में होती है तो तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी और वर्तमान में जॉइंट डायरेक्टर स्टेटस और डिप्टी एक्साइज कमिश्नर वाराणसी प्रदीप दुबे ने ने प्रपत्र की स्क्रुटनी क्यों नहीं की और अनुचित धनराशि वाला एफडीआई जमा क्यों कराया। कुल मिलाकर उन्होंने लाइसेंसी के साथ अपनी दोस्ती निभाई और नियमों के विरुद्ध काम सिक्योरिटी मनी पर दुकान चलाने की अनुमति दी। अब जब यह साबित हो गया है कि लाइसेंसी ने अपने प्रपत्र में हेरा फेरी की तो तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी होने के नाते वर्तमान ज्वाइन डायरेक्टर स्टैटिक और डिप्टी एक्साइज कमिश्नर वाराणसी प्रदीप दुबे को भी चार्ज सीट दी जानी चाहिए और इनसे भी पूछताछ की जानी चाहिए। फिलहाल सिक्योरिटी मनी में हेरा फेरी करने के आरोप में नौ दुकान निलंबित हैं और लाइसेंसी के विरुद्ध प्राथमिक दर्ज है ऐसे में तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी जो वर्तमान में डिप्टी एक्साइज कमिश्नर वाराणसी के साथ साथ जॉइंट डायरेक्टर स्टेटिक के पद पर अवैध रूप से तैनात किए गए हैं उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है।
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