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आबकारी विभाग में ‘बिना रिकॉर्ड’ की वर्चुअल मीटिंग! लाखों रुपये खर्च, लेकिन कोई दस्तावेजी सबूत नहीं

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आबकारी विभाग में ‘बिना रिकॉर्ड’ की वर्चुअल मीटिंग! लाखों रुपये खर्च, लेकिन कोई दस्तावेजी सबूत नहीं

लखनऊ। आबकारी विभाग में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। एक आरटीआई के लिखित जवाब में विभाग ने स्वीकार किया है कि प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में हर मंगलवार होने वाली वर्चुअल बैठकों का कोई भी ऑडियो या वीडियो रिकॉर्ड विभाग में सुरक्षित नहीं रखा जाता

यह जानकारी प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े करती है, क्योंकि—

♦ करोड़ों की परियोजनाओं और नीतिगत फैसलों वाली बैठकों का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं

विभाग खुद मान रहा है कि इन बैठकों—जिनमें ज़ोनल समीक्षा, निरीक्षण प्रगति, अनुज्ञापनों की स्थिति, प्रवर्तन कार्रवाई और वित्तीय निर्णयों पर चर्चा होती है—का कोई भी डिजिटल रिकॉर्ड मौजूद नहीं है

♦ लाखों रुपये खर्च, पर मीटिंग का सबूत नहीं

सूत्र बताते हैं कि विभाग हर महीने लाखों रुपये वर्चुअल बैठक व्यवस्था, आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीकी सपोर्ट और संचालन पर खर्च करता है।
लेकिन इन बैठकों का आउटपुट, चर्चा, निर्देश या निर्णय हवा में उड़ जाते हैं, क्योंकि:

  • कोई रिकॉर्डिंग नहीं
  • कोई ट्रांसक्रिप्ट नहीं
  • कोई मिनट्स ऑफ मीटिंग उपलब्ध नहीं

♦ गंभीर अनियमितता या सिस्टम की जानबूझकर ढील?

प्रशासनिक नियमों के तहत किसी भी विभागीय बैठक के

  • नोट्स,
  • दिशा-निर्देश,
  • कार्रवाई बिंदु
    लिखित रूप में सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है।

लेकिन आबकारी विभाग में इस नियम का खुलेआम उल्लंघन सामने आया है।

♦ बड़े सवाल

  1. जब रिकॉर्ड ही नहीं रखा जाता, तो बैठकों में दिए गए निर्देशों की जवाबदेही कौन लेगा?
  2. वित्तीय रूप से महंगी वर्चुअल मीटिंग्स का उद्देश्य क्या है, जब उनका कोई दस्तावेजी सबूत नहीं बनता?
  3. क्या यह प्रशासनिक ढिलाई है या किसी को बचाने के लिए ‘रिकॉर्ड न रखने’ की संस्कृति विकसित की गई है?

♦ क्या विभागीय मंत्री करेंगे संज्ञान?

आरटीआई के इस खुलासे ने विभाग के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अभी तक मंत्री स्तर से कोई टिप्पणी नहीं आई है, लेकिन प्रशासनिक विशेषज्ञ मानते हैं कि—

“ऐसा संवेदनशील विभाग, जहां रोज़ करोड़ों रुपये का राजस्व और प्रवर्तन से जुड़ी कार्रवाई होती है, वहां बैठकों का रिकॉर्ड न रखना बेहद गंभीर चूक है।”

अगर मंत्री स्तर से हस्तक्षेप होता है, तो यह मामला बड़े प्रशासनिक सुधार की दिशा में बढ़ सकता है।


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