प्रयागराज। 2010 में तत्कालीन डिप्टी कार्मिक रामसागर तिवारी और वर्तमान में अपर आबकारी आयुक्त लाइसेंस हरीश चंद्र श्रीवास्तव के पाप की सजा आबकारी विभाग को भुगतना पड़ सकता है। मिली जानकारी के मुताबिक 2010 में लिपिक संवर्ग में हुई भर्ती में व्यापक धांधली हुई थी। डिप्टी कार्मिक की अध्यक्षता में हुई इस भर्ती में लिखित परीक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने वालों को इंटरव्यू में जानबूझकर काफी कम नंबर दिए गए थे जिसकी वजह से कई अभ्यर्थी चयन प्रक्रिया से बाहर हो गए थे। इसको लेकर असफल अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर रखी थी जिसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आबकारी विभाग से चयन प्रक्रिया से जुड़ी सभी पत्रावली कोर्ट में तलब कर लिया लेकिन विभाग द्वारा पत्रावली समय से अदालत में नहीं पहुंचाई गई जिसके बाद अदालत ने कंटेंप्ट की कार्रवाई शुरू कर दी और आज इसकी फाइनल हियरिंग होने वाली है।
कहा जा रहा है कि उस समय नियुक्ति पाने वाले ज्यादातर लिपिक अवकाश प्राप्त कर चुके हैं जबकि प्रकरण में मुख्य आरोपी अपर आबकारी आयुक्त लाइसेंस हरीश चंद्र श्रीवास्तव का रिटायरमेंट 1 वर्ष से भी कम समय में होने वाला है। लिपिकों की नियुक्ति में व्यापक धांधली करते हुए हरीश चंद्र श्रीवास्तव ने अपने चहेते लोगों को इंटरव्यू के दौरान अधिक अंक दिलवाए और लाखों रुपए की वसूली की। यही वजह है कि हाई कोर्ट द्वारा बार-बार पत्रावली मांगे जाने के बावजूद विभाग की ओर से नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़ी कोई पत्रावली हाईकोर्ट को नहीं उपलब्ध कराई गई। अभ्यर्थियों ने कंटेंप्ट की कार्रवाई की याचिका डाली जिस पर आज अंतिम सुनवाई है।
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