नई दिल्ली। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव को हिंदू मुस्लिम बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जिसका यह प्रिय विषय है उसने चुप्पी साध ली है। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के रिश्ते पिछले 10 साल में अब तक सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। टिकट बंटवारे में पहले भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री जो प्राय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आते रहे हैं उन्हें काफी अहमियत दी जाती थी लेकिन इस बार टिकट बंटवारे में या पार्टी स्तर पर सीट्स निर्णय में राष्ट्रीय संगठन मंत्री दरकिनार हो गए हैं।
बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष उपेक्षित होकर घर बैठ गए हैं जिसकी वजह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी की समन्वय समिति की बैठक नहीं हो पा रही हैं इसका असर लोकसभा के प्रथम चरण के चुनाव में देखने को मिला। पन्ना प्रमुख को सक्रिय करने और घरों से मतदाताओं को निकाल कर बूथ तक निकल कर लाने में आरएसएस की बड़ी भूमिका रहती है लेकिन इस बार भाजपा से बेहतर तालमेल न होने की वजह से संघ के कार्यकर्ता घर में बैठ गए हैं जिसका असर यह हुआ है कि वोटिंग परसेंटेज में 10 से 15% तक गिरावट आई है और लोगों का मानना है कि सरकार से नाराज लोग अपना मतदान करने बूथ तक नहीं गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ के कुछ शीर्ष नेताओं को महत्व दिया बाकी जमीनी स्तर के संघ कार्यकर्ताओं की पूरी तरह अनदेखी शुरू हो गई। राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां हाल ही में भाजपा को प्रचंड जीत हासिल हुई है वहां पर संघ के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री अपने विवेक से निर्णय ले पाने की स्थिति में नहीं है। उन्हें सभी छोटे-बड़े निर्णय के लिए दिल्ली पर निर्भर करना पड़ता है या वहां से भेजे गए वरिष्ठ अधिकारियों का मुंह ताकना पड़ता है। हालात इतने खराब है कि संघ के किसी बड़े नेता की सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है जिससे कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं और घर बैठ गए हैं।
संघ के सहयोग के बिना ध्रुवीकरण संभव नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन बिना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ध्रुवीकरण करना संभव नहीं है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री का बयान टीवी मीडिया में सुर्खियां बना हुआ है लेकिन धरातल पर वैसी गर्मी नहीं है जैसा प्रधानमंत्री अपेक्षा करते हैं।
राष्ट्रवाद पर भारी पड़ रहा है जातिवाद
कहां यहां जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक अंदरूनी सर्वे किया है जिसमें किसी भी दशा में भाजपा की सरकार आती ही नहीं दिखाई दे रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आकलन है कि 2024 का चुनाव जातिवाद पर चला गया है। महंगाई बेरोजगारी और इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे मुद्दे लोगों के दिमाग में है जिसकी वजह से सरकार की छवि पर असर पड़ा है।
आने वाले समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लोगों की निगाहें हैं क्या हुआ तीसरी बार प्रधानमंत्री मोदी को जीतने के लिए सक्रिय होता है या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा।
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