
लखनऊ।
आबकारी विभाग में आज होने वाली विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक अचानक टाल दी गई। भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक यह फैसला 2003 और 2007 बैच के इंस्पेक्टरों को सहायक आबकारी आयुक्त बनने से रोकने के लिए लिया गया। विभागीय कार्रवाई लंबित होने का बहाना बनाकर पदोन्नति की फाइल का लिफाफा बंद कर दिया गया, जबकि सुनवाई प्रमुख सचिव को करनी थी।
लंबित कार्रवाई बनी हथियार
पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी के समय से विभागीय कार्रवाई फाइलों में धूल फांक रही है। नियम है कि छह महीने में प्रकरण का निस्तारण नहीं होने पर वह स्वतः समाप्त हो जाता है। इसके बावजूद 3 साल 9 महीने तक कार्रवाई को टालकर रखा गया। सवाल उठ रहा है कि इतनी बड़ी चूक पर प्रमुख सचिव से जवाबदेही क्यों नहीं तय की जा रही?
सिंडिकेट का खेल!
आबकारी मुख्यालय में ट्रांसफर-पोस्टिंग और पदोन्नति के खेल में सक्रिय एक सिंडिकेट का नाम खुलकर सामने आ रहा है। इसमें 15 साल से मुख्यालय में जमे प्रसेन राय और सेवा काल में अवैध संपत्ति अर्जित करने वाले डिप्टी कार्मिक प्रभात चंद्र की भूमिका चर्चा में है। आरोप है कि यही लोग प्रमुख सचिव के इर्द-गिर्द रहकर फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं।
पसंदीदा 15 की पदोन्नति की तैयारी
ताजा घटनाक्रम में प्रमुख सचिव 30 निरीक्षकों का लिफाफा बंद करने और अपनी पसंद के 15 इंस्पेक्टरों को पदोन्नति दिलाने की तैयारी में हैं। यह कदम विभागीय पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़े कर रहा है।
सबसे बड़ा सवाल
- जब नियम है कि छह माह से अधिक लंबित रहने पर प्रकरण स्वतः समाप्त हो जाता है, तो 3 साल 9 महीने तक इन्हें क्यों रोका गया?
- डीपीसी टालने की जिम्मेदारी किसकी है?
- प्रमुख सचिव की जवाबदेही क्यों तय नहीं हो रही?
डीपीसी टलने से विभाग के भीतर गहरी नाराजगी और असंतोष है। अब देखना होगा कि सरकार प्रमुख सचिव की भूमिका और कथित सिंडिकेट पर क्या कदम उठाती है।
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