नई दिल्ली: नीतीश कुमार के बाद जयंत चौधरी के पाला बदलने के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में मोदी केवल प्रभु राम के भरोसे नहीं रहना चाहते। उन्हें ऐसा लगता है कि भगवान राम के भरोसे उनका बेड़ा पार नहीं होगा। यही वजह है कि प्राण प्रतिष्ठा के अगले दिन ही उन्हें नीतीश कुमार की शरण लेनी पड़ी। बिहार से उन्हें फीडबैक लगातार मिल रहा था कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का बिहार में कोई खास असर नहीं हो रहा है । फीडबैक के आधार पर अमित शाह और नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार को लेकर अपने ही पुराने स्टैंड में बदलाव करना पड़ा। स्थानी भाजपा नेतृत्व के ना नुकर के बावजूद उन्हें नीतीश कुमार को अपने साथ लेना ही पड़ा।
उत्तर प्रदेश में परिस्थितियों थोड़ी अलग हैं यहां पर योगी आदित्यनाथ काफी मजबूत हैं बावजूद इसके केंद्रीय हाई कमान को प्रभु राम और योगी आदित्यनाथ पर पूरा भरोसा नहीं है। योगी आदित्यनाथ को केंद्रीय हाई कमान शक की नजर से देख रहा है। जानकार बताते हैं कि हाल के दिनों में योगी और केंद्रीय हाई कमान के बीच तल्ख़ियां बढ़ी है। योगी आदित्यनाथ की मर्जी के खिलाफ ओमप्रकाश राजभर की वापसी कराई गई उनकी मर्जी के खिलाफ दारा सिंह चौहान को टिकट दिया गया। योगी आदित्यनाथ की मर्जी के खिलाफ दारा सिंह के चुनावी हार के बावजूद एमएलसी मनोनीत किया गया। योगी आदित्यनाथ से पूछे बिना जयंत चौधरी को एनडीए का साझेदार बनाया गया। कुल मिलाकर केंद्रीय नेतृत्व को योगी आदित्यनाथ पर पूरा भरोसा नहीं है। भाजपा हाई कमान को लगता है कि विपक्ष द्वारा पिछड़ा दलित और आदिवासी वोटो पर जिस तरह से दावा किया जा रहा है उसमें योगी आदित्यनाथ का चेहरा आगे करके चुनाव लड़ना नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि योगी आदित्यनाथ की उपेक्षा अगर लगातार जारी रही तो इसका बड़ा नुकसान भी हो सकता है।
जयंत चौधरी के आने से भाजपा को फायदा या नुकसान:
लंबे समय से इंडिया गठबंधन से दूरी बनाए हुए जयंत चौधरी के आने से क्या वास्तव में भारतीय जनता पार्टी या एनडीए को फायदा पहुंचा सकता है ।इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। बताया जा रहा है कि जयंत चौधरी ने तो एनडीए गठबंधन को सपोर्ट करने के लिए अपना मैक्सिमम सपोर्ट प्राइस ले लिया लेकिन अपने फसल के लिए एमएसपी की लड़ाई लड़ रहे और आंदोलन में लगभग 800 किसान अपनी जान गवा चुके हैं उनको अभी भी इस मुद्दे पर निराशा का सामना है ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जिस मुद्दे के लिए सैकड़ो किसानों ने अपनी जान दी है क्या वह जयंत चौधरी के साथ उसे भाजपा को सपोर्ट करेंगे जिसने उनकी सुनी नहीं और बार-बार अपमानित किया।
जेजेपी जैसी हाल ना हो जाए आरएलडी का:
किसानों के मुद्दे को हल करने का दावा करते हुए जननायक जनता पार्टी ने हरियाणा सरकार को समर्थन दिया था लेकिन उसकी दुर्दशा अब जग जाहिर है लोग इसी तरह की आशंका आरएलडी को लेकर कर रहे हैं।
आज हरियाणा में दिग्विजय सिंह चौटाला और जननायक जनता पार्टी दोनों की साख मिट्टी में मिल गई है। आरएलडी भी उसी राह पर है। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिल रहा है। आरएलडी को दो सीटों का ऑफर मिल रहा है लेकिन आरएलडी के साथ अधिकतम समर्थन मूल्य की लड़ाई लड़ रहे किसान अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इसका क्या परिणाम होगा अभी कह पाना मुश्किल है।
More Stories
चल निकली है दिव्य प्रकाश गिरी की ट्रांसफर पोस्टिंग की दुकान:
डिफेंस कॉरिडोर में करोड़ों का घोटाला:
ग्रेटर नोएडा में जंगल राज: