
🚨 “2020 में बस एक कसर रह गई थी, इस बार पूरी करेंगे” — शाह के ऐलान से हिली नीतीश की कुर्सी!
फारबिसगंज (अररिया), 27 सितम्बर 2025 — बिहार विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह का बयान राजनीतिक हलकों में तूफ़ान मचा रहा है। सीमांचल के फारबिसगंज में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शाह ने ऐलान किया — “2020 में बस एक कसर रह गई थी, इस बार वो भी पूरी करेंगे।”
उन्होंने दावा किया कि 2020 के चुनाव में किशनगंज छोड़कर बाकी जिलों में भाजपा नंबर वन रही और इस बार पार्टी का लक्ष्य है कि एनडीए को दो तिहाई बहुमत मिले और बिहार को “घुसपैठ से मुक्त” बनाया जाए।
शाह का संदेश: जोश या छिपा इशारा?
पहली नज़र में शाह का यह बयान कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने वाला चुनावी नारा लगता है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसमें गहरी रणनीति छिपी है।
- भाजपा अब उन इलाकों में भी अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है जहाँ उसकी पैठ कमजोर रही है।
- शाह ने इस दौरे में संगठनात्मक बैठकों के जरिए साफ संकेत दिया कि टिकट वितरण से लेकर सीट-रणनीति तक अब पार्टी हाईकमान सीधे मॉनिटर करेगा।
नीतीश कुमार की कुर्सी पर खतरे की घंटी
शाह का यह बयान जद (यू) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए साफ संकेत है कि भाजपा इस बार सत्ता की साझेदारी में पीछे हटने को तैयार नहीं है।
- सीधा राजनीतिक संदेश
भाजपा को भरोसा है कि अगर वह पिछली बार से ज्यादा सीटें जीतती है तो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी उसी की होगी। महाराष्ट्र में हाल ही में जो हुआ, वही मिसाल बिहार के लिए भी बन सकती है। - गठबंधन पर दबाव
अगर भाजपा बड़ी संख्या में सीटें जीतती है तो जद (यू) को सत्ता-साझेदारी में समझौता करना पड़ेगा। शाह का बयान भले ही “नीतीश हटाओ” न कहे, लेकिन गठबंधन में असुरक्षा और खींचतान को हवा जरूर देता है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने शाह पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है।
- राजद और कांग्रेस का कहना है कि भाजपा “घुसपैठिया” मुद्दे को उठाकर सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है।
- विपक्ष ने यह भी कहा कि भाजपा सत्ता पाने के लिए डर और विभाजन की राजनीति कर रही है।
चुनावी गणित: संभावित परिदृश्य
- भाजपा सबसे ज्यादा सीटें लाती है → मुख्यमंत्री पद पर भाजपा का दावा और जद (यू) पर दबाव बढ़ेगा।
- भाजपा और जद (यू) बराबरी पर रहते हैं → गठबंधन में बैलेंस-ऑफ-पावर की स्थिति, लंबी खींचतान तय।
- जद (यू) अलग रुख अपनाता है → भाजपा से गारंटी की मांग या अलग चुनावी रणनीति, जिससे NDA में तनाव बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
अमित शाह का यह बयान सिर्फ कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने के लिए नहीं है, बल्कि यह भाजपा की सत्ता-रणनीति का स्पष्ट संकेत है। संदेश साफ है: “जहाँ सीटें होंगी, वहीं से सत्ता की दावेदारी उठेगी।”
नीतीश कुमार की कुर्सी भले अभी सुरक्षित हो, लेकिन चुनावी नतीजे आने के बाद भाजपा का बढ़ता आत्मविश्वास और सीट-गणित निश्चित रूप से सत्ता की गाड़ी की दिशा बदल सकता है।
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