
डिप्टी एक्साइज कमिश्नर प्रदीप दुबे पर सवाल
राजधानी और वंदे भारत जैसी ट्रेनों से शराब तस्करी की घटनाओं ने पूरे आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। खासकर वाराणसी के डिप्टी एक्साइज कमिश्नर प्रदीप दुबे की भूमिका संदेह के घेरे में है।
प्रदीप दुबे की मूल नियुक्ति डिप्टी एक्साइज कमिश्नर वाराणसी के रूप में है, लेकिन वह लंबे समय से लखनऊ में खुद को जॉइंट डायरेक्टर स्टैटिस्टिक्स बताकर बैठे हुए हैं। हैरानी की बात यह है कि इस पद पर उनकी कोई वैध नियुक्ति का आदेश कभी जारी ही नहीं हुआ। इस प्रकार यह फर्जी पोस्टिंग मानी जा रही है।
वाराणसी जैसे संवेदनशील जनपद की जिम्मेदारी होने के बावजूद प्रदीप दुबे शायद ही अपने कार्यक्षेत्र में दिखाई देते हैं। उनके कार्यालय की सीसीटीवी फुटेज से यह साबित हो चुका है कि वह वाराणसी से लगातार गायब रहते हैं। नतीजा यह है कि शराब माफिया को खुला मैदान मिल गया है।
सबसे अहम बात यह है कि वाराणसी मंडल की प्रवर्तन टीम सीधे प्रदीप दुबे के नेतृत्व में काम करती है। इसके बावजूद तस्कर न केवल वाराणसी में सक्रिय हैं बल्कि राजधानी और वंदे भारत जैसी हाई-प्रोफाइल ट्रेनों में शराब का जखीरा लेकर बिहार तक पहुंच रहे हैं। यह स्थिति साफ दर्शाती है कि पूरा बनारस खुलेआम तस्करी का अड्डा बन गया है और रोकथाम करने वाला कोई नहीं है।
बिहार चुनावों के चलते शराब की मांग बढ़ी और तस्कर निडर होकर अब राजधानी और वंदे भारत जैसी ट्रेनों के एसी कोच से शराब भेजने लगे। यह स्थिति केवल तभी संभव है जब जिला स्तर पर आबकारी विभाग पूरी तरह निष्क्रिय हो या फिर मिलीभगत कर रहा हो।
वाराणसी क्षेत्र की स्थिति और भी भयावह है। चर्चा है कि यहां की लगभग हर भांग की दुकान पर खुलेआम गांजा बिक रहा है और इसका बड़ा हिस्सा आबकारी विभाग के अफसरों तक पहुंच रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रदीप दुबे जैसे अधिकारी आखिर किसकी सुरक्षा कर रहे हैं—कानून की या तस्करों की?
जिम्मेदारी से बचने और वाराणसी से दूरी बनाने का खेल साफ दिखाता है कि प्रदीप दुबे ने अपने मूल दायित्व से जानबूझकर पल्ला झाड़ लिया है। शराब तस्करों को यह भलीभांति मालूम है कि जिले का मुखिया लखनऊ में बैठा है और यहां कोई कार्रवाई करने वाला नहीं।
यही कारण है कि आज वाराणसी से लेकर बिहार तक शराब का इतना बड़ा नेटवर्क बिना किसी डर के सक्रिय हो गया है। यह सीधा-सीधा प्रदीप दुबे की लापरवाही और उनकी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश का नतीजा है।
विभागीय मंत्री की नजर इस मामले पर है और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस पूरे मामले में बड़ी कार्रवाई तय है। अगर वास्तव में तस्करी पर लगाम कसनी है तो सबसे पहले प्रदीप दुबे जैसे अफसरों पर विभाग को कड़ी कार्यवाही करनी होगी।
वाराणसी में शराब तस्करों की चांदी
- शराब तस्करी का नया तरीका
- पहले साधारण ट्रेनों से शराब की तस्करी होती थी।
- अब तस्कर राजधानी एक्सप्रेस जैसी वीआईपी ट्रेनों के एसी कोच से बिहार शराब पहुँचा रहे हैं।
- पकड़ी गई शराब
- पिछले पाँच दिनों में कुल 330 बोतल शराब राजधानी ट्रेन में पकड़ी गई।
- 11 सितंबर: बी-12 कोच से 240 बोतल
- 13 सितंबर: ए-1 कोच से 65 बोतल
- 14 सितंबर: ए-1 कोच से 25 बोतल
- गिरफ्तारी
- इस कार्रवाई में तीन तस्कर गिरफ्तार हुए।
- तस्करों का खुलासा
- वीआईपी ट्रेनों के एसी कोच में जाँच बहुत कम होती है।
- इसलिए इन ट्रेनों से शराब ले जाना आसान है।
- बिहार चुनाव से जुड़ा कनेक्शन
- चुनाव के समय शराब की माँग बढ़ जाती है।
- 1000 रुपये की बोतल, बिहार में 2000 रुपये तक बिक रही है।
- अधिकारियों का बयान
- कैंट रेलवे स्टेशन के आरपीएफ इंस्पेक्टर संदीप यादव ने बताया कि राजधानी गाड़ियों से इन दिनों शराब भेजी जा रही है।
- बिहार जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस में विशेष अभियान चलाकर जांच की जा रही है।
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