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सरकार की आलोचना राष्ट्रद्रोह नहीं: मलयालम न्यूज़ चैनल पर केंद्र सरकार के प्रतिबंध को अवैध बताया

नयी दिल्ली…सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मीडिया द्वारा सरकार की नीतियों की आलोचना को राष्ट्रविरोधी नहीं करार दिया जा सकता है…

मीडिया की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो सच को सामने रखें। लोकतंत्र की मज़बूती के लिए इसका स्वतंत्र रहना जरूरी है… मीडिया से सिर्फ सरकार का पक्ष रखने की उम्मीद नहीं की जाती।

केरल के मीडिया वन चैनल पर प्रतिबंध के केंद्र के फैसले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की है!! सुप्रीम कोर्ट ने कहा-राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई यूँ ही नहीं दी जा सकती, सीलबंद कवर का बेहद कम मामलो में इस्तेमाल होना चाहिए और इसके लिए सरकार को कोर्ट को आश्वस्त करना होगा। सरकार को ये विशेषाधिकार नहीं है कि वो कोर्ट में उसके खिलाफ आये पक्ष को जानकारी ही नहीं दे। ये लोगों के अधिकार का हनन है।

सुप्रीम कोर्ट ने केरल के न्यूज़ चैनल मीडिया वन पर बैन मामले में सुप्रीम कोर्ट (CJI) ने कहा कि – मीडिया का कर्तव्य है कि वह सत्ता से सवाल पूछे और नागरिकों को हार्ड फैक्ट्स (वस्तुस्थिति) से अवगत कराए।
मीडिया का कर्तव्य है कि वह सत्ता से सवाल पूछे और नागरिकों को हार्ड फैक्ट्स (वस्तुस्थिति) से अवगत कराए – सुप्रीम कोर्ट। सुप्रीम कोर्ट ने केरल के न्यूज़ चैनल ‘मीडिया वन’ पर बैन के फैसले को ग़लत ठहराया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा -एक मजबूत लोकतंत्र के लिए एक स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। सीलबंद कवर में कोर्ट में रिपोर्ट दायर करना प्राकृतिक न्याय और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी आधार के राष्ट्रीय सुरक्षा का दावा करने के लिए गृह मंत्रालय की खिंचाई की.

सीजेआई ने फैसले में कहा कि किसी मीडिया संगठन द्वारा आलोचनात्मक रिपोर्टिंग को सरकार विरोधी नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार मीडिया की इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट के खिलाफ पूर्ण संरक्षण का दावा नहीं कर सकती, जबकि ऐसी रिपोर्ट लोगों और संस्थाओं के अधिकारों के मद्देनजर हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया नहीं जा सकता। जैसा इस मामले में गृह मंत्रालाय द्वारा उठाया गया था। मीडिया द्वारा सरकार की आलोचना करने को देश विरोधी नहीं कहा जा सकता है।

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