प्रयागराज। इस बार उत्तर प्रदेश में आबकारी विभाग का राजस्व आंकड़ा बेहद निराशा जनक रहा है। मिली जानकारी के मुताबिक द्वितीय वर्ष 2023 – 24 के 50000 करोड़ रुपए के लक्ष्य के सापेक्ष महज 42 हजार करोड़ रूपया ही विभाग को राजस्व के रूप में प्राप्त हुआ है। इस आंकड़े में भी भारी हेरा फेरी हुई है।
फार्मेसी और भांग की दुकानों की लाइसेंस फीस से होने वाले राजस्व आंकड़े को पूरी तरह गायब कर दिया गया है। जबकि एक अनुमान के मुताबिक लगभग 200 करोड़ रूपया भांग की लाइसेंसी दुकानों से ही आ जाता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि भांग से होने वाली आय को राजस्व आंकड़ों से अलग या छुपाया क्यों गया है।
भांग और फार्मेसी से होने वाली आय का होता है बंदरबांट:
कई जानकार सूत्रों का कहना है कि भांग की दुकानों और फार्मेसी के लाइसेंस से होने वाली आय कभी भी विभाग के अधिकृत पोर्टल पर उपलब्ध नहीं रहता। कई सालों से भांग की दुकान और फार्मेसी से होने वाली इनकम को आबकारी विभाग के किसी भी मद में नहीं दर्शाया जाता मतलब यह आमदनी विभाग के कमिश्नर एडिशनल कमिश्नर और अन्य अधिकारियों के बीच बंदर बांट हो जाता है।
1300 लाख कुंतल शीरा के सापेक्ष शराब उत्पादन का आंकड़ा संदेह के दायरे में
जानकार सूत्रों का मानना है कि देसी मदिरा बनाने वाली अग्रणी शराब कंपनी रेडिको ग्रुप को सस्ती दर पर 518 लाख कुंतल शीरा का कोटा आवंटित हुआ इसी तरह आईजीएल ग्रुप को भी 504 लाख कुंतल मोलासेस का आवंटन हुआ। देसी शराब बनाने वाली सभी कंपनियों को कुल मिलाकर लगभग 1300 कुंतल मोलासेस का कोटा आवंटित हुआ।
42.8 स्ट्रैंथ की देसी शराब अनाज से बनी तो मोलासेस आवंटन में कटौती क्यों नहीं की गई
सबसे बड़ा और अहम सवाल यह है कि अगर 42.8 स्ट्रैंथ वाली देसी शराब मिलेट्स से बन रही है जो कुल बनने वाली शराब का लगभग 30% है फिर 42.8 स्ट्रैंथ वाली शराब जो कि अनाज से बनती है उसके लिए सस्ता मोलासेस शराब कंपनियों को क्यों आवंटित किया गया।
पूर्वआबकारी आयुक्त और जोगिंदर सिंह ने किया खेल:
कहां जा रहा है कि पूर्व आबकारी आयुक्त सेंथिल पांडियन सी और कथित तौर पर फर्जी डायरेक्टर जोगिंदर सिंह ने मिलकर या खेल किया है। शराब कंपनियों को 42.8 स्ट्रैंथ वाली शराब के हिस्से का मोलासेस की कटौती न करके लाखों कुंतल मोलासेस मात्र 110 रुपए कुंतल की दर पर दे दिया गया जबकि यही मोलासेस खुले बाजार में ₹1200 प्रति कुंतल के दर से मिल रहा है इस तरह देखा जाए तो प्रति कुंतल शराब कंपनियों को ₹1100 का लाभ दिया गया और इस लाभ का एक बड़ा हिस्सा जो कई सौ करोड़ रूपया बनता है पूर्व आबकारी आयुक्त सहित कई अधिकारियों में बंदर बांट हो गया। यदि इस मामले की सीबीआई जांच होगी तो बहुत बड़ा घोटाला सामने आ जाएगा।
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